आज विजय दिवस पर विशेष: भारत ने कैसे जीता 1971 का युद्ध

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Dec, 2017 04:14 AM

special on vijay day today how india won the 1971 war

पंजाब के राज्यपाल श्री वी.पी. सिंह बदनौर तथा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के सहयोग, निजी दिलचस्पी तथा अनन्य प्रयत्नों द्वारा पंजाब के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब उच्च स्तरीय सैन्य साहित्य उत्सव चंडीगढ़ में गत 8-9 दिसम्बर को करवाया गया। इस...

पंजाब के राज्यपाल श्री वी.पी. सिंह बदनौर तथा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के सहयोग, निजी दिलचस्पी तथा अनन्य प्रयत्नों द्वारा पंजाब के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब उच्च स्तरीय सैन्य साहित्य उत्सव चंडीगढ़ में गत 8-9 दिसम्बर को करवाया गया। इस अनूठे सैन्य उत्सव में उच्च सैन्य/पूर्व सैन्य अधिकारियों, सर्वोच्च बहादुरी पुरस्कार विजेताओं (पी.वी.सी.) तथा विशिष्ट सैन्य विद्वानों, इतिहासकारों ने शिरकत की तथा देश की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों और युद्ध  के विषय में विचार सांझे किए। 

याद रहे कि समूचे भारत में 16 दिसम्बर को ‘विजय दिवस’ मनाया जा रहा है। इसलिए हमारे लिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि पाकिस्तान ने भारत को युद्ध लडऩे के लिए मजबूर कैसे किया तथा हमने युद्ध कैसे जीता? पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा समूचे विकास की सतत् अनदेखी के कारण मतभेद बढ़ते गए और लोकतांत्रिक प्रणाली को आघात लगता गया। जनवरी 1969 में ढाका में मुख्य विपक्षी पार्टियों ने एक मीटिंग करके संयुक्त रूप में लोकतंत्र बहाल करने की मांग रखी थी। पाकिस्तान में जब हालात बेकाबू होने लगे तो वहां के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान  24 मार्च 1969 को राजसत्ता जनरल याहिया खान को सौंप कर खुद एक तरफ हो गए। याहिया खान ने तुरन्त मार्शल लॉ की घोषणा कर दी। 

3 दिसम्बर 1970 को पाकिस्तान में आम चुनाव करवाए गए। पूर्वी पाकिस्तान (बाद में बंगलादेश) की राजनीतिक पार्टी अवामी लीग ने 169 में से 167 सीटें जीत लीं और इस तरह 313 सदस्यों वाली पाकिस्तान की संसद ‘मजलिस-ए-शूरा’ में भी बहुमत हासिल कर लिया। अवामी लीग के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने सरकार बनाने की पेशकश की थी जो पी.पी.पी. के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो को स्वीकार नहीं थी। याहिया खान ने पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोहियों को कुचलने के लिए पश्चिमी पाकिस्तान के प्रमुख सेनापति को आदेश जारी किए। 

बस फिर पाकिस्तानी सेना ने 25 मार्च 1971 को ढाका और आसपास के क्षेत्र में अनुशासनीय कार्रवाई शुरू कर दी। सबसे पहले 25-26 मार्च की रात को मुजीब-उर-रहमान को कैद करके पाकिस्तान ले जाया गया। अवामी लीग के कार्यकत्र्ता बिखरने शुरू हो गए। अल्पसंख्यक वर्ग पर कई प्रकार के अत्याचार जैसे कि नस्लकुशी, बलात्कार और लूटपाट इत्यादि शुरू हो गए। वहां के लोगों ने लाखों की गिनती में पश्चिम बंगाल और असम, मेघालय तथा त्रिपुरा जैसे  प्रांतों में शरण लेनी शुरू कर दी और उनके लिए शरणार्थी शिविरों की व्यवस्था करनी पड़ी। इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर बोझ बढऩे से अनेक समस्याएं पैदा हो गईं जो आज तक सुलझाई नहीं जा सकीं। भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को हस्तक्षेप करने की जोरदार अपील की लेकिन कोई सार्थक प्रतिक्रिया न मिली। 

आखिर 27 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना के विद्रोही सैन्य अधिकारी जिया-उर-रहमान (जो बाद में बंगलादेश के राष्ट्रपति बने) ने शेख मुजीब-उर-रहमान की ओर से बंगलादेश की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और बहुत से अद्र्धसैनिक बल बगावत करके मुक्ति वाहिनी में शामिल हो गए। स्मरण रहे कि मुक्ति वाहिनी ने भारतीय सेना के साथ मिलकर युद्ध में जीत हासिल की थी। भारत और पाकिस्तान  में युद्ध की शुरूआत 3 दिसम्बर 1971 को उस समय हुई जब पाक की वायुसेना ने भारत के 11 हवाई अड्डों पर बमबारी शुरू कर दी। 13 दिन तक चले इस युद्ध दौरान भारत की सशस्त्र सेनाओं ने चमत्कारिक जीत हासिल की जिसके फलस्वरूप एक नए देश ‘बंगलादेश’ का सृजन हुआ।

पूर्वी पाकिस्तान की सेना के कमांडर लैफ्टिनैंट जनरल ए.ए.के. नियाजी ने अपनी सेना के लगभग 93,000 सैनिकों सहित 16 दिसम्बर को भारतीय सेना के लैैफ्टिनैंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष घुटने टेक दिए। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह पहला मौका था जब किसी देश की सशस्त्र सेना ने एक सीमित युद्ध  के बाद इतनी भारी संख्या में प्रतिद्वंद्वी सेना के सामने आत्मसमर्पण किया हो। भारत की इस विश्वस्तरीय विजय की स्मृति में 16 दिसम्बर को ‘विजय दिवस’ मनाया जाता है।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों 

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