सरकार ऐसा कानून बनाए कि ‘आधार’ का डाटा गलत हाथों में न जा पाए

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Jan, 2018 03:51 AM

the law made that the aadhar data could not go wrong

2009 में भारत के विशिष्ट पहचान प्राधिकार (यू.आई.डी.आई.ए.) की स्थापना की गई, तभी से आधार की अवधारणा और इससे संबंधित सुरक्षा पहलुओं को लेकर लगातार विवाद छिड़ा हुआ है। सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि कार्ड बनाने वाली एजैंसी को उपलब्ध करवाई गई...

2009 में भारत के विशिष्ट पहचान प्राधिकार (यू.आई.डी.आई.ए.) की स्थापना की गई, तभी से आधार की अवधारणा और इससे संबंधित सुरक्षा पहलुओं को लेकर लगातार विवाद छिड़ा हुआ है। सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि कार्ड बनाने वाली एजैंसी को उपलब्ध करवाई गई व्यक्तिगत जानकारियों का कहीं दुरुपयोग न हो और इससे सुरक्षा में सेंध न लग जाए। 

यह दुनिया भर में अपनी तरह की सबसे बड़ी कवायद तो थी ही, साथ ही मनमोहन सिंह सरकार की एक बहुत ही गरिमापूर्ण अवधारणा भी थी, जिसको सफल बनाने के लिए इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि जैसे दिग्गज की सेवाएं ली गई थीं। 9000 करोड़ रुपए का बजट खर्च करने और 125 करोड़ आबादी में से लगभग 120 करोड़ नागरिकों के बायोमीट्रिक एवं अन्य विवरण इक्टठे करने के बाद यह परियोजना निश्चय ही मौजूद रहेगी। बेशक सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में जल्दी ही इसके सुरक्षा पहलुओं की समीक्षा करने जा रही है। 

आधार प्रणाली में नवीनतम सुरक्षा सेंध उत्तर भारत के एक अग्रणी अंग्रेजी दैनिक ‘द ट्रिब्यून’ से संबंधित रचना खैहरा ने लगाई, जिसने एक बहुत सटीक स्टिंग आप्रेशन करके बहुत उम्दा जांच रिपोर्ट तैयार की। आधार शुरू होने से अब तक इसके संबंध में सेंध लगने की यही एकमात्र रिपोर्ट मीडिया में प्रकाशित हुई है। व्यक्तिगत स्तर पर कई लोगों द्वारा शिकायतें की गई थीं लेकिन यह पहला मौका था, जब संगठित ढंग से मीडिया के लोगों द्वारा सेंध लगाने के घोटाले को अंजाम दिया गया था। यू.आई.डी.आई.ए. ने किसी सुरक्षा सेंध के लगने से तत्काल इंकार किया और यह दावा किया कि कार्ड धारकों के बायोमीट्रिक डाटा तक पहुंच बनाए बिना किसी तरह की जानकारी लीक करने से किसी को लाभ होने वाला नहीं। फिर भी गैर-बायोमीट्रिक सूचना को बाजार में बेचा जा सकता है और निहित स्वार्थों द्वारा इसकी खरीद की जा सकती है। 

यह कोई हैरानी की बात नहीं कि यदि इस स्टिंग आप्रेशन पर तूफान उठ खड़ा हुआ और बहुत सम्मानित ‘एडीटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ सहित विभिन्न मीडिया संगठनों ने यू.आई.डी.आई.ए. को सीधे टक्कर देने का इरादा कर लिया। कई मीडिया संगठनों ने यू.आई.डी.आई.ए. की रचना खैहरा के विरुद्ध कार्रवाई को प्रैस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला करार देते हुए रोष आयोजित किए। बेशक तूफान थम गया है लेकिन सुरक्षा में सेंध को लेकर सवाल जस के तस हैं और व्यक्तिगत जानकारियों की संभावित लीकेज से संबंधित आशंकाएं भी बनी हुई हैं। विडम्बना देखिए कि एक जमाने में आधार योजना के सुरक्षा पहलुओं को लेकर इसका सबसे अधिक विरोध करने वाली भाजपा ही अब इसकी सबसे सशक्त समर्थक बनी हुई है। 

वास्तव में इसने यू.आई.डी.आई.ए. की संस्थापना के संबंध में मनमोहन सिंह सरकार के कानून पारित करने के कदम को अवरुद्ध कर दिया था। तब इसने आधार योजना को ‘फ्रॉड योजना’ करार दिया था तथा इसके सुरक्षा पहलुओं को लेकर प्रश्रचिन्ह लगाया था। इसी कारण से पूर्व गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने भी अपनी ही सरकार के इस फैसले का विरोध किया था और सरकार इस योजना को आगे नहीं बढ़ा पाई थी। यह एक तथ्य है कि अमरीका और ब्रिटेन सहित अनेक देशों ने सुरक्षा कसौटियों के आधार पर इस प्रकार की स्कीम को रद्द कर दिया है। 

अब यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है, जो याचिकाओं की एक पूरी शृंखला पर सुनवाई कर रही है यानी वित्तीय एवं अन्य सबसिडियों, अनुलाभों एवं सेवाओं के रक्षित निष्पादन कानून 2016 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई होनी बाकी है। कई याचिकाकत्र्ताओं ने सुरक्षा पहलुओं के साथ-साथ ये भी सवाल उठाए हैं कि आबादी के हाशिए पर जीने वाले वर्गों को सेवाएं प्रदान करने से इंकार हो रहा है। पहचान की चोरी, जासूसी एवं निजता में सेंध जैसे मुद्दों को संविधान की विभिन्न धाराओं के अन्तर्गत सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लाए जाने की संभावना है। 

सुप्रीम कोर्ट को अवश्य ही व्यापक डाटा सुरक्षा कानून के लिए आह्वान करना होगा। निजी डाटा लीक न हो, इसके लिए सरकार को कड़े कदम अवश्य सुनिश्चित करने होंगे। इसके अलावा ऐसे सुरक्षा मानक लागू करने होंगे कि सरकारी एजैंसियां तक भी नागरिकों के निजी जीवन के बारे में जासूसी न कर सकें। समस्त नागरिकों का यह अधिकार है कि वे इस चीज को सुनिश्चित बनाएं कि उनका व्यक्तिगत डाटा न तो गलत हाथों में जाए और न ही इसका दुरुपयोग हो सके।-विपिन पब्बी

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