डा. मुखर्जी की मृत्यु का रहस्य दशकों बाद भी बरकरार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jun, 2017 11:34 PM

the secret of dr mukherjees death remains intact even decades later

दशक बीत गए किन्तु यह रहस्य अब भी बना हुआ है कि श्रीनगर में नजरबंदी के.....

दशक बीत गए किन्तु यह रहस्य अब भी बना हुआ है कि श्रीनगर में नजरबंदी के दौरान देश के महान नेता डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु प्राकृतिक थी या एक बड़े राजनीतिक षड्यंत्र का परिणाम क्योंकि कोई छानबीन नहीं हुई यद्यपि यह मांग करने वालों में उनकी बूढ़ी मां श्रीमती योगमाया भी शामिल थीं। 50 के दशक के आरंभ में ही जब भारत के संविधान का निर्माण हो रहा था तो राज्य के सत्ताधारियों की चालों को भांपते हुए राज्य में पंडित प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में प्रजा परिषद ने संघर्ष शुरू कर दिया कि भारत का संविधान देश के अन्य भागों की भांति ही जम्मू-कश्मीर में भी लागू होना चाहिए और अलगाववाद की कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए। 

श्री डोगरा और उनके साथियों ने इस संबंध में देश के सभी राष्ट्रीय नेताओं से सम्पर्क पैदा किया जिनमें डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी थे जिन्होंने गंभीरता के साथ विषयों का अध्ययन किया किन्तु वह बातचीत द्वारा प्रत्येक बात को सुलझाने में अधिक विश्वास रखते थे इसलिए अगस्त 1952 में जम्मू पहुंचे तो रास्ते में स्थान-स्थान पर लाखों लोगों ने भव्य स्वागत किया किन्तु डा. मुखर्जी के कहने पर अगले दिन जम्मू में आयोजित होने वाली बड़ी रैली को स्थगित कर दिया गया और वह राज्य के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला से मिलने श्रीनगर चले गए। वहां दोनों के बीच क्या बातचीत हुई इसका कोई उल्लेख सामने नहीं आया। अपितु श्रीनगर से वापसी पर जम्मू की रैली में डा. मुखर्जी ने वायदा किया कि विधान दिलाऊंगा या प्राण दूंगा। 

राज्य के लिए अलग संविधान के गठन के विरुद्ध नवम्बर 1952 में प्रजा परिषद ने सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया तो सरकार ने दमनचक्र चलाया। सत्याग्रहियों के अतिरिक्त बड़़ी संख्या में कार्यकत्र्ताओं को पकड़कर उन्हें दूर-दराज सर्द क्षेत्रों में भेज दिया गया। तिरंगा लहराते हुए 16 लोगों को गोलियों का निशाना बनाया गया, महिलाओं की टीमें इस बर्बरता की गाथाओं के साथ दिल्ली पहुंचीं तो डा. मुखर्जी ने परिस्थितियों का जायजा लेने के लिए राज्य में आने का निर्णय किया। मई 1953 के दूसरे सप्ताह राज्य में प्रवेश होने से पूर्व डा. मुखर्जी ने रास्ते में कई रैलियों को संबोधित किया। दिल्ली और पंजाब में उन्हें यही धारणा दी गई कि उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा किन्तु 12 मई को जब डा. मुखर्जी की गाड़ी रावी पुल के ऊपर से जा रही थी तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनके साथ दिल्ली जनसंघ के प्रधान वैद गुरुदत्त और सचिव श्री टेक चंद थे।

गिरफ्तारी के पश्चात डा. मुखर्जी और उनके 2 साथियों को एक जीप में लंबी यात्रा के पश्चात पुलिस हिरासत में श्रीनगर ले जाया गया और वहां निशात बाग के साथ 2 कमरों में रखा गया। कहा जाता है कि यह हट अर्थात झोंपड़े बाग की देख-रेख करने वाले मालियों के ठिकाने थे। कई वर्षों तक ये झोंपड़े वहीं थे किन्तु जब कश्मीर आने वाले पर्यटक इन्हें देखने के लिए पहुंचने लगे तो इन हट्स के स्थान पर पानी की आपूर्ति से संबंधित वाटर टैंक बना दिए गए जबकि सामान्य धारणा यह दी गई थी कि गिरफ्तारी के पश्चात डा. मुखर्जी को निशात बाग के साथ एक शानदार बंगले में रखा गया था यद्यपि वहां ऐसा कोई बंगला था ही नहीं।

इस गिरफ्तारी और नजरबंदी के विरुद्ध डा. मुखर्जी के वकील बैरिस्टर यू.एम. त्रिवेदी ने राज्य हाईकोर्ट में हैबियस कार्पस याचिका प्रस्तुत की। हाईकोर्ट के जस्टिस जियालाल किलम ने याचिका पर चर्चा सुनने के पश्चात एक सप्ताह के लिए निर्णय सुरक्षित रखा। आशा की जा रही थी कि 23 या 24 जून को निर्णय आने पर डा. मुखर्जी मुक्त हो सकते हैं। किन्तु 23 जून को यह समाचार आया कि 22 जून को रात को 2 बजे डा. मुखर्जी को दिल का दौरा पड़ा। अस्पताल पहुंचाया गया किन्तु डाक्टरों की चिकित्सा के पश्चात भी परलोक सिधारे। कहा जाता है कि उन्हें अस्पताल में कोई ऐसा इंजैक्शन दिया गया जो उनकी मृत्यु का कारण बना, जबकि दिन को वह कई लोगों से मिले थे और आंदोलन के संबंध में कई सुझावों पर विचार-विमर्श हुआ। अत: डा. मुखर्जी की मृत्यु के कारण देशभर में एक कोहराम सा मच गया। कई लोगों ने इसे राजनीतिक हत्या की संज्ञा दी। 

किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि इतने बड़े नेता और लोकसभा में विपक्ष के लीडर की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु की कोई छानबीन नहीं करवाई गई। यद्यपि सामान्य नियम यह है कि जेल में किसी बड़े आरोपी के निधन की भी मैजिस्ट्रेट द्वारा छानबीन की जाती है। प्रजा परिषद के बड़े आंदोलन और डा. मुखर्जी के बलिदान के कारण अलगाववाद की कई दीवारें समाप्त हुई हैं। परमिट सिस्टम का अंत हुआ है, उच्चतम न्यायालय, चुनाव आयोग, महालेखाकार का कार्य क्षेत्र इस राज्य में बढ़ाया गया है। सदर-ए-रियासत के स्थान पर राज्यपाल, प्रधानमंत्री की बजाय मुख्यमंत्री जैसे कई अन्य पग शामिल हैं किन्तु कई कारणों से डा. मुखर्जी का मिशन अभी भी अधूरा है।

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