‘यह है 16 वर्षीय कविता का स्कूल’

Edited By ,Updated: 19 Mar, 2017 11:37 PM

this is the 16 year old poem school

जब उत्तर प्रदेश की गलियों और सड़कों पर चुनावी रथों की भागमभाग जारी थी और .....

जब उत्तर प्रदेश की गलियों और सड़कों पर चुनावी रथों की भागमभाग जारी थी और राजनीतिज्ञ बेहतर भविष्य के बड़े-बड़े दावे कर रहे थे तो युवा महिलाओं के स्व-सहायता समूह की सदस्य 16 वर्षीय कविता चंदोली जिले  के गांव अमारा में वह काम कर रही थी जिससे वह सबसे अधिक प्यार करती है यानी कि दूसरों को पढ़ाना। 

बाद दोपहर 3 बजे चुके थे। अभी-अभी वह खुद स्कूल से पढ़कर लौटी थी। उसने पानी का गिलास पिया, सब्जी के साथ रोटी खाई और अपने विद्यार्थियों को मिलने चल पड़ी। यह विद्यार्थी चिथड़ों में लिपटे 20 लड़कों और लड़कियों का समूह है जिन्होंने  न तो कभी स्कूल का मुंह देखा था न ही पड़ोस के सरकारी प्राइमरी स्कूल में दाखिला लिया था। 

दम तोड़ रहे सर्दी के मौसम की गुनगुनी धूप में ये ‘छात्र’ सफेद रंग के टॉट पर बैठकर पहाड़े दोहराते, ए.बी.सी. पढ़ते और शब्दों के हिज्जे बनाते हैं। वहां एक छोटा सा ब्लैक बोर्ड भी था और बच्चे बारी-बारी से कविताएं दोहरा रहे थे। कविता की मां तथा अमारा ग्राम पंचायत की स्व-सहायता समूहों की महिलाओं ने मिलकर 13 से 17 वर्ष आयु के किशोरों और किशोरियों में स्वास्थ्य जागरूकता, नेतृत्व कौशल, वित्तीय साक्षरता एवं जीवन में काम आने वाले अन्य कौशल सिखाने के लिए ‘सफलता स्व-सहायता समूह’ की शुरूआत की। कविता ने जब अनपढ़ औरतों को हस्ताक्षर करने की बजाय अंगूठा टेकते देखा तो उसके मन में भी दूसरों को पढ़ाने का उत्साह जागा।

उसने अनपढ़ महिलाओं को नाम लिखना सिखाने से शुरूआत की और बाद में उन्हें अपने-अपने पति का नाम लिखना सिखाया ताकि वे राशन की दुकानों, मनरेगा योजना तथा बुढ़ापा एवं विकलांगता एवं पैंशन स्कीमों के  विभिन्न अनिवार्य प्रपत्र भर सकें। आजकल वह बच्चों को पढ़ा रही है। उससे कुछ महीनों तक पढऩे के बाद बहुत से बच्चे अलग-अलग स्कूलों में जाना शुरू कर देते हैं लेकिन जब भी उन्हें अपनी पढ़ाई के संबंध में किसी प्रकार की समस्या आती है तो वह नियमित रूप से कविता के पास आते हैं।

चकिया गांव में एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई कर रही कविता अब बोर्ड की 10वीं की परीक्षा दे रही है। 9वीं कक्षा में उसने 600 में से 556 अंक हासिल किए थे। दूसरों को पढ़ाने में उसे आनंद तो मिलता ही है साथ ही गांव में उसे काफी प्रतिष्ठा और सम्मान भी हासिल हुआ है। इसी के चलते वह भविष्य में अध्यापक बनने के लिए कृतसंकल्प है। 

अपनी ढेर सारी व्यस्तताओं के बावजूद कविता घरेलू कामकाज में अपनी मां का हाथ बंटाना नहीं भूलती और अपनी खुद की पढ़ाई देर रात गए करती है। गांव में बहुत सी महिलाएं हैं जो छोटी आयु में शादी हो जाने के कारण अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई थीं। वे अब कविता की ओर देखकर उत्साहित हुई हैं और स्व-सहायता ग्रुप ने उनमें सशक्तिकरण की जो जागरूकता भरी है उसके चलते वह अब अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं। इनमें से 2 तो पहले ही इंटर स्तर तक पहुंच गई हैं। 

महिला स्व-सहायता ग्रुप औरतों को प्रति माह 10, 20 रुपए बचाने के लिए उत्साहित करते हैं ताकि वे वित्तीय स्वतंत्रता हासिल कर सकें। लेकिन अमारा गांव के स्व-सहायता समूह की सदस्य महिलाओं में से इतनी गरीब हैं कि  वह अपना मासिक शुल्क अदा नहीं कर पातीं लेकिन उन्हें इस सदस्यता से कई प्रकार के लाभ हो रहे हैं- जैसे राजीव गांधी महिला विकास परियोजना द्वारा आयोजित शिविरों में जाकर आत्मरक्षा का कौशल सिखाने के साथ-साथ जीवन में काम आने वाले अन्य कई कौशल भी सिखाती है तथा उन्हें यह भी पता चलता है कि उनके सामने अपनाने के लिए कितने ही प्रकार के करियर हैं। कविता ने भी अभी-अभी वाराणसी में 2 सप्ताह तक चले शिविर में प्रशिक्षण लिया था। 

जहां कविता अध्यापन कार्य में अधिक रुचि लेती है वहीं मिर्जापुर जिले के रामापुर गांव की 17 वर्षीय सपना बाल विवाह के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद कर रही है। किशोर- किशोरियां नियमित रूप में इक्टठे होकर समस्याओं पर विचार करते हैं। जब  एक किशोरी ने ऐसी ही एक मीटिंग में उल्लेख किया कि उसके माता-पिता  उसकी जबरदस्ती शादी करना चाहते हैं तो सपना अपने साथियों का शिष्टमंडल लेकर उसके अभिभावकों को मिली और उन्हें इस बात के लिए राजी किया कि जब तक वह स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं कर लेती तब तक उसकी शादी न की जाए। शादी में विलंब किए जाने के कारण ही रामापुर और अमारा जैसे गांवों की लड़कियां अपनी पढ़ाई पूरी कर पा रही हैं और इसके फलस्वरूप उनके सामने नई सम्भावनाओं के द्वार अवश्य खुलेंगे। 

जैसा कि सर्वविदित है कि देश के दूर-दराज के इलाके यौन उत्पीडऩ के लिए बदनाम हैं। ‘प्राची युवा स्व-सहायता ग्रुप’ की सदस्या अनसूया ने आत्मरक्षा का प्रशिक्षण लेने का फैसला किया। उसका कहना है कि इस प्रशिक्षण की बदौलत उसके अंदर से डर गायब हो गया। अब वह अन्य लड़कियों को आत्मरक्षा का कौशल सिखा सकती है। इसी बीच वाराणसी के मानापुर गांव के ‘दुर्गा महिला स्व-सहायता समूह’ की एक सदस्य बैंक ऋण लेने तथा एक सूदखोर के पास गिरवी पड़ी अपनी जमीन मुक्त करवाने में सफल हो गई है। पूरे उत्तर प्रदेश में 7713 युवा स्व-सहायता ग्रुप कार्यरत हैं जो युवाओं के लिए सशक्तिकरण, प्रेरणा एवं उत्साह के सोपान बन गए हैं।  

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