इस बार बहुत अलग रहा कांग्रेस का ‘महाधिवेशन’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Mar, 2018 03:43 AM

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एक के बाद एक चुनावी पछाड़ों के कारण अपने 133 वर्ष के इतिहास में सबसे भीषण संकटों में एक में से  उबरने का प्रयास करते हुए कांग्रेस ने अपने 84वें महाधिवेशन में भविष्य का एजैंडा तय करने की कवायद की है। यह चिंतन शिविर दो दिन तक चला जिसमें कांग्रेस के नए...

एक के बाद एक चुनावी पछाड़ों के कारण अपने 133 वर्ष के इतिहास में सबसे भीषण संकटों में एक में से उबरने का प्रयास करते हुए कांग्रेस ने अपने 84वें महाधिवेशन में भविष्य का एजैंडा तय करने की कवायद की है। यह चिंतन शिविर दो दिन तक चला जिसमें कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी को फिर से सत्ता में लाने का प्रण दोहराया। 

ऐतिहासिक करार दिए जा रहे इस महासम्मेलन की एक खास बात जो पिछले 83 महासम्मेलनों में देखने को नहीं मिली, वह यह थी कि परम्पराओं से दूर हटते हुए और गोष्ठियों के माध्यम से उन मुद्दों को नए सिरे से परिभाषित किया गया जिन पर फोकस बनाने की जरूरत है। कुछ कुंजीवत बातें इस प्रकार हैं: 

आयोजन: कांग्रेस के महासम्मेलनों में लम्बे समय से यह परम्परा चली आ रही थी कि मंच पर सफेद गद्दे बिछाए जाते थे जिन पर अनुभवी और उम्रदराज नेता सुशोभित होते थे लेकिन अबकी बार ऐसा नहीं हुआ। यह एक प्रतीकात्मक बदलाव है जिसके बारे में राहुल गांधी ने व्याख्या करते हुए कहा कि वह मंच पर देश भर के युवा और प्रतिभावान लोगों को सुशोभित करना चाहते हैं जो भारत को बदलने के लिए फिर से पार्टी को सत्ता में लौटा सकें। 

महाधिवेशन में ‘विजन 2030’ तथा मीडिया जैसे मुद्दों पर गोष्ठीबद्ध चर्चा हुई। इसके अलावा दो लघु फिल्मों की स्क्रीनींग भी हुई। इनमें से पहली है ‘अङ्क्षहसा’ जिसमें कांग्रेस का इतिहास चित्रित किया गया था। इसके अंत में राहुल घोषणा करते हैं कि उनकी पार्टी का ‘इंडिया विजन’ ही अमरीका और चीन के बाद तीसरी दुनिया के दृष्टिकोण को परिभाषित करेगा। दूसरी फिल्म है  ‘डरो मत।’ इसमें राहुल गांधी पार्टी के पुरुषों और महिला कार्यकत्र्ताओं को आह्वान करते दिखाई देते हैं कि वे एकजुट  होकर और बिना किसी भय के बदलाव के लिए काम करें। 

विशेष प्रस्ताव: कृषि, रोजगार और गरीबी उन्मूलन पर विशेष प्रस्ताव पारित किया गया। इसमें न केवल तेजी से चुनावी मुद्दा बनते जा रहे कृषि संकट को सम्बोधित किया गया बल्कि यह प्रस्ताव एक तरह से किसानों के लिए मैनीफैस्टो जारी करने जैसा था। बेशक ‘गरीबी हटाओ’ जैसे परम्परागत नारे प्रस्ताव में से गैर हाजिर थे तो भी 8 पृष्ठ के इस दस्तावेज में वे कदम गिनाए गए थे जो सत्ता में वापसी करने पर पार्टी किसानों के हित में उठाएगी। इसने नई बीमा स्कीम शुरू करते हुए संवैधानिक दर्जा रखने वाले ‘स्थायी किसान एवं कृषि मजदूर कल्याण आयोग’ की स्थापना का वायदा किया है और साथ ही कहा है कि किसानों के बच्चों को विशेष छात्रवृत्ति दी जाएगी, न्यूनतम समर्थन मूल्यों को तय करने की कार्यशैली की समीक्षा होगी और विशेष कृषि जोन भी स्थापित किए जाएंगे।

वामपंथी झुकाव: कृषि, बेरोजगारी उन्मूलन पर विशेष प्रस्ताव के साथ-साथ आर्थिक प्रस्ताव में भी जो संदेश दिया गया है, उसमें पार्टी का झुकाव वामपंथ की ओर है। किसान समर्थक और गरीब समर्थक पहलकदमियों पर सैद्धांतिक फोकस बनाया गया है। बेरोजगारी और कृषि संकट को सम्बोधित होने के साथ-साथ कांग्रेस ने आर्थिक नीति में कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों को चिन्हित किया है जैसे कि उच्च गुणवत्ता युक्त शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुरक्षा करोड़ों-करोड़ गरीबों तक उपलब्ध करवाना। इसमें वायदा किया गया है कि कांग्रेस सत्तासीन हुई तो सरकार द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा तंत्र में भारी निवेश किया जाएगा। 

प्राइवेट नौकरियों पर जोर: इसमें इस बात पर मुख्य जोर दिया गया है कि कांग्रेसनीत सरकार बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए प्राइवेट सैक्टर का सहयोग लेगी। ऐसा करने के लिए वह भारतीय विनिर्माताओं को अधिक आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करेगी और उन्हें टैक्स आतंकवाद तथा मुकद्दमेबाजी से मुक्त करेगी। 

निचले 30 प्रतिशत: 2019 में सत्ता में यू.पी.ए. की वापसी का दावा ठोंकते हुए आर्थिक प्रस्ताव में कहा गया है कि जनसंख्या से निचले स्तर पर जीने वाले 30 प्रतिशत लोगों के गरीबी उन्मूलन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा और साथ ही कहा गया है कि इस मामले में पार्टी की नीति किसी विशेष जाति के पक्ष में नहीं होगी। पार्टी अमीर लोगों से पैसा लेकर गरीबों को देगी। गरीबी उन्मूलन के लिए पार्टी राष्ट्रीय राहत कोष का सृजन करेगी और सबसे अमीर भारतीयों पर 5 प्रतिशत उपकर लगाएगी। इस टैक्स राशि को सीधे तौर पर अनुसूचित जातियों व जनजातियों तथा अन्य बी.पी.एल. परिवारों के बच्चों की छात्रवृत्ति के लिए प्रयुक्त किया जाएगा। 

आधार: कांग्रेस का आरोप है कि ‘आधार’ नम्बर अनिवार्य किए जाने पर जनता के बहुत से वर्ग व्यथित हैं। मौजूदा सरकार ने आधार की अवधारणा को ही बिगाड़ दिया है। सशक्तिकरण का उपकरण होने की बजाय यह अधिकतर मामलों में अत्यंत गरीब लोगों को हर ओर से नियंत्रित रखने या फिर उन्हें आर्थिक प्रक्रिया में से बाहर रखने का साधन बन गया है। 

सैकुलरवाद एवं हिंदूवाद: अपने समापन भाषण में राहुल ने वे बातें कहीं जिन्हें कहने की हिम्मत बहुत कम नेता दिखा सकेंगे। उन्होंने हिंदू धर्म के बारे में अपनी अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा ‘‘हिंदुत्व और हिंदू धर्म दो अलग-अलग बातें हैं।’’ उन्होंने कहा कि आर.एस.एस. और संघ परिवार द्वारा जिस हिंदुत्व की वकालत की जा रही है, वह उन्हें और देश के अन्य कई लोगों को हजम नहीं होता। उन्होंने कहा कि आर.एस.एस. की व्याख्या अपराधी मानसिकता की उपज है क्योंकि इसके समर्थकों ने ऊना और अन्य स्थानों पर दलितों की न केवल पिटाई की है बल्कि इसके वीडियो भी पोस्ट किए हैं। 

न्यायपालिका और मीडिया: सप्ताहांत पर इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में हुई चर्चाओं में से दो प्रमुख थीं। एक थी न्यायपालिका में बढ़ती बेचैनी के बारे में और दूसरी थी मीडिया से संबंधित गोष्ठी चर्चा। ‘‘सच्चाई की शक्ति’’ नामक इस परिचर्चा में कहा गया है कि मीडिया आज गम्भीर संकटों में घिरा हुआ है। सरकारी सत्ता और संसाधनों के बल पर मीडिया को झुकाया जा रहा है, भयभीत किया जा रहा है और कई समाचारपत्रों एवं न्यूज चैनलों के साथ आर्थिक भेदभाव किया जा रहा है।-लिज मैथ्यू 

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