ट्रम्प और अमरीका की ‘विदेश नीति’

Edited By ,Updated: 23 Mar, 2017 12:15 AM

trump and america  s foreign policy

जब डोनाल्ड ट्रम्प नवम्बर 2016 में अमरीका के राष्ट्रपति बने तो विदेश नीति पर्यवेक्षकों  ने अनिश्चितता....

जब डोनाल्ड ट्रम्प नवम्बर 2016 में अमरीका के राष्ट्रपति बने तो विदेश नीति पर्यवेक्षकों  ने अनिश्चितता के योग्य की भविष्यवाणी की थी। यदि राष्ट्रपति ट्रम्प के कुछ शुरूआती सप्ताहों को एक संकेत माना जाए तो हमें अप्रत्याशित बातों की उम्मीद करनी चाहिए। ट्रम्प प्रशासन के शुरूआती सप्ताह अगले 4 वर्षों के लिए उनकी विदेश नीति के बारे में क्या बताते हैं? तथा इनका अमरीका के सहयोगियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? ये ऐसे सवाल हैं जो नवम्बर 2016 के बाद दुनिया भर में पूछे जा रहे हैं। 

ट्रम्प के चुनावी अभियान ने ही उनकी सम्भावी विदेश नीति की झलक दिखलानी शुरू कर दी थी। ‘नाफ्टा’ और टी.पी.पी. जैसे व्यापारिक समझौतों के विरुद्ध तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर कमर कसी हुई है। यू.के. के यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलने के फैसले का उन्होंने खुलेआम अभिनंदन किया था। अमरीका-मैक्सिको सीमा पर वह दीवार बनाना चाहते हैं लेकिन मैक्सिको पर दबाव बना रहे हैं कि इसका खर्चा उसे देना होगा। 

उन्होंने तो ‘नाटो’ को कभी एक ऐसा संगठन बताया जिसकी अब कोई प्रासंगिकता नहीं रही। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि व्लादिमीर पुतिन की खुलेआम प्रशंसा की है, जिससे यह विवाद भड़क उठा है कि ट्रम्प नीत अमरीका रूस के साथ किस प्रकार घनिष्ठ संबंध बनाएगा। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने परम्परा को ताक पर रखते हुए पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की इसराईल के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावोंके मामले में भूमिका की भी खुलेआम आलोचना की थी। 

20 जनवरी 2017 के बाद बहुत से लोगों को अमरीकी विदेश नीति के परिचालन में किसी आधारभूत बदलाव की उम्मीद थी। अब तक तो ऐसी सभी भविष्यवाणियां सत्य ही सिद्ध हुई हैं। बीते 3 सप्ताह दौरान हम इसके प्रमाण देख चुके हैं। फोन पर उनकी आस्ट्रेलियाई प्रधानमंंत्री के साथ काफी गर्मागर्मी भी हुई है। मैक्सिको के विरुद्ध ट्वीट कर उसे सीमा पर बनने वाली दीवार का खर्चा उठाने को कहने का परिणाम यह हुआ है कि मैक्सिको के राष्ट्रपति ने अपनी प्रस्तावित अमरीका यात्रा रद्द कर दी है। सात मुस्लिम देशों की अमरीका में दाखिल होने पर प्रतिबंध लगाने के ट्रम्प के कार्यकारी आदेश की दुनिया भर के नेताओं ने निंदा की है। ईरान के साथ भी मौखिक तथा ट्विटर मंच से हुई झड़प के फलस्वरूप नए प्रतिबंध लागू हो गए हैं। जो कुछ अब तक हुआ है उसके हिसाब से क्यायह अंदाजा लगाना सम्भव नहीं कि ट्रम्प के अंतर्गत अमरीकी विदेश नीति की तस्वीर मोटे रूप में कैसी होगी? 

जहां तक विदेश नीति का मामला है ट्रम्प ने ईरान पर नए प्रतिबंध लगाए जाने पर सवाल उठाए हैं और काफी हद तक यह स्पष्ट कर दिया है कि वह कूटनीतिक भाषा एवं व्यवहार की कोई खास परवाह नहीं करते। विदेश नीति पर अपने विचार ट्विटर के माध्यम से प्रकट करके ट्रम्प परम्परा से दूर हट रहे हैं। यह एक बहुत खतरनाक प्रवृत्ति का संकेत है जिसका कोई पूर्व उदाहरण मौजूद नहीं, फिर भी ट्रम्प के कार्यकाल दौरान हमें इस तरह के व्यवहार की अक्सर उम्मीद करनी होगी। 
सबसे चुनौती भरा सवाल तो यह है कि ट्रम्प की विदेश नीति की समूची दिशा के बारे में क्या कहा जाए? नाफ्टा और टी.पी.पी. के बारे में उनकी प्रतिक्रिया पूर्व अपेक्षित थी। मैक्सिको के मामले में भी सीमा दीवार के विषय पर मतभेद उभरने की उम्मीद थी। 

रूस के प्रति ट्रम्प की पहुंच में बहुत बड़ी हद तक अनिश्चितता ही है। बेशक उनके चुनावी अभियान ने अमरीका और रूस के बीच सम्भावित शांति स्थापित होने का संकेत दिया था, तो भी यूक्रेन में अमरीकी कार्रवाइयों की आलोचना में अमरीकी राजदूत का संयुक्त राष्ट्र में भाषण ट्रम्प की रूस नीति के विषय में कई सवाल खड़े करता है। राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रम्प ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया जिससे यह पता चले कि रूसी सवाल पर उनका रवैया क्या होगा। जहां उनके चुनावी अभियान में पुतिन के साथ घनिष्ठ संबंधों का संकेत दिया था, वहीं अमरीकी राजदूत का संयुक्त राष्ट्र में भाषण एक अलग ही संदेश दे रहा है। 

इसराईल के संबंध में ट्रम्प ने चुनावी अभियान दौरान संकेत दिया था कि वह येरूशलम को इसराईल की राजधानी के रूप में मान्यता देंगे। राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने हर प्रकार की कूटनयिक मर्यादा को ताक में रखते हुए इसराईल के संबंध में ओबामा प्रशासन द्वारा पारित प्रस्ताव को वीटो कर दिया। जब फिर भी नतीजा इसराईल के पक्ष में न गया तो ट्रम्प ने एक अन्य नई पहल करते हुए ट्विटर पर जाकर खुले रूप में अमरीकी स्टैंड की आलोचना शुरू कर दी। 

शपथ ग्रहण से दो सप्ताह से भी अधिक समय बीत जाने के बाद अभी तक ट्रम्प की कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं उभरी है। फिर भी एक बात तो तय है कि विदेश मामलों के परिचालन में स्पष्ट रूप में बदलाव दिखाई दे रहा है।              

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