ट्रम्प का ‘ईरान पर जुआ’ भारत के लिए हानिकारक होगा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Oct, 2017 03:10 AM

trumps gambling on iran will be detrimental to india

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ऐसी प्रक्रिया शुरू किए जाने की उम्मीद है जो ईरान के परमाणु सौदे को तारपीडो कर देगी। वैसे उनके अपनी राष्ट्रीय रक्षा टोली तथा लगभग सभी विशेषज्ञों ने कहा है कि यह परिकल्पना बहुत घटिया है। न्यूयार्क टाइम्स अखबार...

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ऐसी प्रक्रिया शुरू किए जाने की उम्मीद है जो ईरान के परमाणु सौदे को तारपीडो कर देगी। वैसे उनके अपनी राष्ट्रीय रक्षा टोली तथा लगभग सभी विशेषज्ञों ने कहा है कि यह परिकल्पना बहुत घटिया है। न्यूयार्क टाइम्स अखबार का कहना है कि यह कदम विदेश नीति के क्षेत्र में लिए गए अब तक के सभी फैसलों से घटिया है। 

ईरानी परमाणु कार्यक्रम की गहन मोनिटरिंग करने वाली अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजैंसी (आई.ए.ई.ए.) तथा अमरीकी गुप्तचर भाईचारे के सभी लोगों ने यह तथ्य प्रमाणित किया है कि ईरान इस सौदे के प्रावधानों का समाधान कर रहा है। ट्रम्प के फैसले से अमरीका और ईरान के बीच तनाव तो बढ़ेगा ही, इसके साथ ही अमरीका एवं परमाणु समझौते में इसके अन्य भागीदारों ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस के साथ भी तनाव में वृद्धि होगी। 

भारत पर क्या प्रभाव होगा: लेकिन यदि ईरान परमाणु समझौते को ठेंगा दिखाता है और अपना परमाणु शस्त्र कार्यक्रम आगे बढ़ाना शुरू कर देता है तो मध्य-पूर्व का यह क्षेत्र युद्ध के कगार पर पहुंच जाएगा। ऐसी स्थिति के परिणामों से भारत भी अछूता नहीं रहेगा। ट्रम्प की कार्रवाइयों के हमारे लिए बहुत अधिक नकारात्मक नतीजे होंगे, न केवल विशाल पैट्रोलियम स्रोतों वाले ईरान से हमारे स्थायी संबंधों में दरार आएगी बल्कि इस सम्भावी टकराव के फलस्वरूप हमें सीधे तौर पर बहुत अधिक वित्तीय नुक्सान उठाना पड़ेगा। भारत जिस प्रकार अफगानिस्तान, केन्द्रीय एशिया तथा यूरोप के साथ ईरान की बंदरगाह चाबहार एवं बंदर अब्बास के माध्यम से आवाजाही संबंध स्थापित करके चीन के ‘वन बैल्ट वन रोड’ (ओ.बी.ओ.आर.) जैसे भू-राजनीतिक प्रोजैक्ट को पटखनी देने की कोशिश कर रहा है, उसे भी ट्रम्प की नीतियों से भारी नुक्सान पहुंचेगा। 

यदि हम इस बात का संज्ञान लें कि अमरीका के लिए पहले ही उत्तर कोरिया पर नकेल लगाना मुश्किल सिद्ध हो रहा है तो स्वत: ही यह सवाल पैदा होता है कि मध्य-पूर्व में यह एक अन्य परमाणु शक्ति के उभरने का मार्ग प्रशस्त करके समस्याओं को और अधिक जटिल क्यों बना रहा है? ट्रम्प के फैसले से पैदा हुआ यह सवाल अन्य हर बात पर हावी है: कि क्या अमरीका अब भी विवेकशील एवं न्यायसंगत फैसले लेने की क्षमता रखता है और क्या वैश्विक मामलों में इसकी नेतृत्वकारी भूमिका पर भरोसा किया जा सकता है? 

चाबहार परियोजना तथा अन्तर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आई.एन.एस.टी.सी.) की सदस्यता भारत को चीन के ‘वन बैल्ट वन रोड’ परियोजना के विरुद्ध एक बहुत बड़ा, कारगर तथा पायदार अवसर उपलब्ध करवाती है। 500 मिलियन डालर (यानी 3272 करोड़ रुपए) का चाबहार समझौता दो भागों में है: 982 करोड़ का पहला भाग है बंदरगाह का विकास करना और दूसरा भाग है चाबहार स्थित जाहिदां तक रेल लाइन बिछाना। पाकिस्तान द्वारा अनेक तरह के पंगे खड़े करने के बावजूद भारत अफगानिस्तान से लगभग 1963 करोड़ रुपए का माल आयात करता है जबकि 3926 करोड़ रुपए का माल उसे निर्यात करता है। ईरान में एक वैकल्पिक रास्ता तैयार हो जाने से भारत और अफगानिस्तान के लिए स्थितियां बहुत बेहतर हो जाएंगी। इससे जहां अफगानिस्तान में स्थायित्व लाने में सहायता मिलेगी, वहीं अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत की प्रतिष्ठा भी बढ़ सकती है। 

व्यापार के अवसर: ईरान में तो भारत के लिए अफगानिस्तान से भी बड़े अवसर मौजूद हैं। फिलहाल ईरान से भारत द्वारा 39200 करोड़ रुपए का आयात किया जाता है जबकि  हम उसे 19600 करोड़ रुपए का निर्यात करते हैं। चीन के बाद ईरान ही भारत निर्यात का दूसरा सबसे बड़ा गंतव्य है। 2015 के ये आंकड़े इस तथ्य को प्रतिबिंबित करते हैं कि उस वर्षांत तक ईरान परमाणु मुद्दे पर प्रतिबंधों की मार झेल रहा था। टाटा, एस्सार, सिपला, हीरो, बजाज एवं टी.वी.एस. जैसी भारतीय कम्पनियां ईरानी बाजारों में मौजूद हैं। 

भारत की दिग्गज पैट्रोलियम कम्पनियां भी ईरान में निवेश करने के लिए पहुंचना चाहती हैं। तुर्कमेनिस्तान के साथ ईरान के त्रिजंक्शन पर स्थित मशाद और सारख पहले ही बहुत शानदार 1000 कि.मी. लम्बी सड़क के माध्यम से चाबहार बंदरगाह से जुड़े हुए हैं। तीनों देशों को जोडऩे वाले रेल लिंक का 2014 में उद्घाटन किया गया था। जाहिदां से रेल लाइन को मशाद तक आगे बढ़ाया जा सकता है। जहां से इसे केन्द्रीय एशिया और अफगानिस्तान तक विस्तृत किया जा सकेगा। 

इसके समानांतर ही आई.एन.एस.टी.सी. की अति महत्वाकांक्षी योजना जिसका उद्देश्य कांडला और मुम्बई की बंदरगाहों को ईरान की प्रमुख बंदरगाह बंदर अब्बास से जोडऩा है, उससे आगे ईरान में उत्तर की ओर रेल मार्ग से इस बंदरगाह को बाल्टिक सागर पर स्थित रूस की बंदरगाहों और यूरोपीय रेल प्रणाली से जोड़ा जा सकेगा। इस मार्ग की अधिकतर रेल लाइनें पहले ही विकसित की जा चुकी हैं। इस मार्ग से परीक्षण के तौर पर भेजे गए सामान से खुलासा हुआ है कि 40 फुट लम्बा एक कंटेनर भेजने की लागत 1,96,000 रुपए आती है, जबकि समुद्री मार्ग से यही कंटेनर भेजने की लागत 2,61,764 रुपए आती है। इसके अलावा समुद्री रास्ते से माल पहुंचाने में लगभग दो गुना अधिक समय लगता है। 

स्वतंत्र पैंतरा: दिग्भ्रमित ट्रम्प की कार्रवाई लाभ की इन सभी स्थितियों को तहस-नहस कर देगी और हम न केवल अनिश्चितता की स्थिति में पहुंच जाएंगे बल्कि युद्ध के हालात भी पैदा हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में भारत ऊपर गिनाए गए सभी संभावित लाभों से वंचित हो जाएगा। युद्ध छिडऩे की स्थिति में तो हालात और भी खराब हो सकते हैं और ईरान की खाड़ी के रास्ते भारत को होने वाली तेल आपूर्ति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा तथा खाड़ी देशों में बसे हुए भारतीय समुदाय को स्वदेश लौटना पड़ सकता है। 

2010 और 2015 के बीच भारत ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्देशित प्रतिबंधों का अनुपालन किया और ईरान के साथ आर्थिक संबंधों में काफी हद तक कटौती कर ली। अब की बार भारत द्वारा ऐसा रास्ता अपनाए जाने की संभावना नहीं क्योंकि ट्रम्प की कार्रवाइयों के पीछे संयुक्त राष्ट्र का जनादेश प्रभावी नहीं होगा। फिर भी ट्रम्प की कार्रवाइयां भारत के लिए एक बहुत बड़ी राजनीतिक दुविधा पैदा कर देंगी। लेकिन किसी न किसी ङ्क्षबदू पर नई दिल्ली को किसी अन्य देश के नेता के उद्दंड एवं विवेकहीन व्यवहार से प्रभावित होने की बजाय राष्ट्र हित में विवेकशील विकल्प चुनने का फैसला लेना ही होगा।     

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