किसानों का गैर-राजनीतिक ‘दबाव समूह’ में बदलना बेहतर प्रजातंत्र की शुरूआत

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Feb, 2018 04:26 AM

turning into nonpolitical pressure groups for farmers start of good democracy

ल की दो बेहद कल्याणकारी सरकारी घोषणाओं पर नजर डालें। केन्द्र की मोदी सरकार ने एक साल बाद होने वाले आम चुनाव के पहले के अंतिम पूर्ण बजट में किसानों को उनकी उपज के लागत मूल्य का 50 प्रतिशत लाभ देने का ऐलान किया, साथ ही 10 करोड़ गरीब परिवारों को 5 लाख...

हाल की दो बेहद कल्याणकारी सरकारी घोषणाओं पर नजर डालें। केन्द्र की मोदी सरकार ने एक साल बाद होने वाले आम चुनाव के पहले के अंतिम पूर्ण बजट में किसानों को उनकी उपज के लागत मूल्य का 50 प्रतिशत लाभ देने का ऐलान किया, साथ ही 10 करोड़ गरीब परिवारों को 5 लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा देना भी बजट वायदे में शामिल था। जाहिर है अधिकांश गरीब चाहे वे किसान-मजदूर हों या औद्योगिक श्रमिक उनकी जड़ें गांवों में ही हैं लिहाजा यह लाभ भी आमतौर पर उनके ही हित में रहेगा। 

एक हफ्ते के भीतर ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों का 2 लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने का ही नहीं बल्कि गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2 हजार रुपए प्रति किंव्टल करने (वर्तमान में केन्द्र द्वारा घोषित 1735 रुपए प्रति किंव्टल है) और साथ ही जिन किसानों ने इससे नीचे के मूल्य पर गेहूं बेचा है उन्हें भी बकाया राशि देने का ऐलान किया। इस घोषणा के अभी कुछ ही घंटे बीते थे कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने भी किसानों का 50 हजार रुपए तक का कर्ज माफ करने की घोषणा की। इन दोनों राज्यों में कुछ ही महीने में चुनाव होने हैं और इन दोनों ही राज्यों में किसान गुस्से में हैं। मध्य प्रदेश में किसानों पर फायरिंग, जिसमें 6 किसान मारे गए, के कारण और राजस्थान में उपज का मूल्य बेहद कम होने के कारण। 

राजस्थान के उप-चुनाव में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की करारी हार किसानों के गुस्से का ताजा उदाहरण है। गुजरात के विधानसभा चुनाव में भी इसके संकेत मिलने लगे थे जब सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को राज्य के कुल 33 जिलों में से अपेक्षाकृत ग्रामीण क्षेत्र के 15 जिलों में से 7 में एक भी सीट नहीं मिली और बाकी के 8 जिले में मात्र 1-1 सीट मिली। आज चूंकि देश के 36 में से 19 राज्यों में या यूं कहें कि केन्द्र के अलावा देश की 68 प्रतिशत आबादी पर इस दल का राज्य सरकारों के जरिए शासन है, लिहाजा किसानों को भी कोई कंफ्यूजन नहीं है कि नाराजगी की दिशा क्या होनी चाहिए। 

देश के 68 साल के प्रजातंत्र में पहली बार किसान एक दबाव समूह के रूप में उभरा है। अभी तक मंचों से ‘किसान भाइयो’ कह कर नेता अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर लेता था। इस राजनीतिक उनींदेपन का नतीजा यह हुआ कि पिछले 25 साल से लगातार हर 36 मिनट पर एक किसान आत्महत्या करता रहा और इसी अवधि में हर रोज 2052 किसान खेती छोड़ते रहे। किसान दबाव समूह नहीं बना पाया, अगर कभी कोशिश हुई भी तो वह जाति समूह में बांट दिया गया और राजनीतिक दल उनकी उपज का सही मूल्य दिलाने की जगह उन्हें और उनके बच्चों को आरक्षण दिलाने के सब्जबाग दिखाकर वोट लेने लगे। समाज बंटता गया और राजनीतिक वर्ग सत्ता सुख भोगता गया। 

एक उदाहरण देखें। सन् 2014 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र के पृष्ठ 44 में कृषि, उत्पादकता और उसका पारितोषिक शीर्षक के तहत चुनावी वायदे में कहा गया है ‘‘ऐसे कदम उठाए जाएंगे जिससे कृषि क्षेत्र में लाभ बढ़े और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि लागत का 50 प्रतिशत लाभ हो’’ लेकिन चुनाव के कुछ ही महीने बाद केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिनांक 20 फरवरी 2015 को अपने हलफनामे में कहा, ‘‘किसानों के उत्पाद की लागत का 50 प्रतिशत अधिक देना संभव नहीं है क्योंकि इससे बाजार में दुष्परिणाम होंगे।’’ इसी बीच 2016-17 में नई सरकार के प्रति अद्भुत उत्साह दिखाते हुए किसानों ने मेहनत की, ज्यादा रकबे में खेती कर रिकार्ड 276 मिलियन टन उत्पादन किया, लेकिन जहां पिछले 2 साल इंद्र भगवान रूठे रहे तो इस साल कीमतें जमीन से नहीं उठीं, नतीजतन किसान का क्रोध सभी सीमाएं पार कर गया। 

इन 7 दशकों में अब किसान यह समझने लगा है कि आलू यादव जी का हो या पंडित जी का या फिर किराए पर खेती कर रहे किसी जाटव का, अगर उसकी लागत 5 रुपए प्रति किलो है (जो कृषि लागत के एक्सपर्ट्स भी मानते हैं) और फसल तैयार होने पर उसकी कीमत 2 रुपए या 4 रुपए मंडी में मिल  रही है तो उसके परिवार का निवाला छीनने वाला कोई उच्च जाति का जमींदार नहीं बल्कि शीर्ष पर सत्ता में बैठा नेता है चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल का क्यों न हो। उसे न तो किसी मुलायम ने राहत दी न ही किसी मायावती ने। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में प्याज व दाल का भी यही हाल हुआ तथा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का किसान भी टमाटर सड़क पर उंडेलता मिला। 

मोदी सरकार गुजरात चुनाव के बाद यह समझ गई है कि राजनीति अब परम्परागत तरीके से नहीं हो सकती क्योंकि किसानों के इस आंदोलन के पीछे पहली बार न तो कोई राजनीतिक पार्टी है न ही कोई नेता, यह स्व-स्फूर्त है। यही कारण है कि पूरे देश की सरकारें आज इस बात पर नजर रख रही हैं कि किसान की उपज का अधिकाधिक मूल्य खाली घोषणाओं में न रहे बल्कि अमल में भी लाया जाए। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने अखिलेश सरकार के मुकाबले कई गुना अधिक गेहूं की खरीदारी (3.7 मिलियन टन) की, हालांकि शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री योगी का वायदा 8 मिलियन टन खरीद का था। योगी का प्रयास अच्छा था लेकिन कुछ महीनों बाद आलू के गिरते भाव से प्रदेश का किसान आहत है। 

बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी इस बार यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वायदा पूरी तरह मुकम्मल हो और यही वजह है कि इस हफ्ते हुई प्रदेशों के खाद्य सचिवों की बैठक में भी गेहूं की खरीद का टार्गेट तो पिछले साल के 33 मिलियन टन से घटा कर 32 मिलियन कर दिया गया है लेकिन हिदायत यह है कि यह टार्गेेट पूरा होना चाहिए और वह भी बिना किसी भ्रष्टाचार के। पिछले साल इस टार्गेट के मुकाबले 30.08 मिलियन टन ही गेहूं की खरीद हुई थी। उत्तर प्रदेश का टार्गेट 4 मिलियन टन रखा गया है, जबकि राज्य में सरकारी विक्रय केन्द्रों से विभिन्न जनकल्याण योजनाओं में गरीबों को अनाज बांटने के लिए 6 मिलियन टन गेहूं की जरूरत होती है। 

ऐसा माना जा रहा है कि मोदी सरकार अब की बार हरसंभव कदम उठाएगी कि आगामी अप्रैल में गेहूं और अक्तूबर में धान की सरकारी खरीद में कोई कोताही न हो और चूंकि तमाम बड़े राज्यों में भी भाजपा की सरकारें हैं इसलिए इस योजना को अमल में लाने में दिक्कत पेश नहीं आएगी। बहरहाल किसानों का एक राष्ट्र व्यापी गैर-राजनीतिक दबाव समूह में परिवर्तित होना बेहतर होते प्रजातंत्र की शुरूआत है और जातिवाद के दंश के खात्मे की भी। एक विकासपरक राजनीति के लिए भारतीय जनता पार्टी के लिए ही नहीं सभी राजनीतिक दलों के लिए भी स्वस्थ राजनीति करने का यह सुनहरा अवसर है बशर्ते वे इसे अवसर समझें।-एन.के. सिंह

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!