‘यू.पी. चुनावों के बाद भाजपा क्या करेगी, पता नहीं’

Edited By ,Updated: 18 Feb, 2017 12:29 AM

up after the elections  the bjp would do not know

पूर्व वित्त मंत्री एवं कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम ने हाल ही में एक साक्षात्कार के दौरान वर्तमान विधानसभा चुनावों तथा राजनीति और प्रशासन की स्थिति पर खुल...

पूर्व वित्त मंत्री एवं कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम ने हाल ही में एक साक्षात्कार के दौरान वर्तमान विधानसभा चुनावों तथा राजनीति और प्रशासन की स्थिति पर खुल कर बात की। चिदम्बरम ने कहा कि 2012-13  तथा 2013-14 में उनका प्रयास वित्तीय तथा मौद्रिक स्थिरता लाना था जो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट के कारण प्रभावित हुई थी। वे इसमें काफी हद तक सफल हुए थे मगर पूरी तरह से नहीं। सरकार को 2014 में यह करना चाहिए था कि वह वित्तीय तथा मौद्रिक स्थिरता के लिए और अधिक प्रयास जारी रखती तथा इसके साथ-साथ विकास के इंजन को फिर से स्टार्ट करती।

जिस बात पर ध्यान नहीं दिया जा सका वह यह कि क्यों निजी निवेश  में गिरावट आ रही थी तथा वर्ष दर वर्ष निर्यात गिर रहा था। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने गलत सोच लिया था कि सरकारी खर्च तथा निजी उपभोग, जो विकास के 2 अन्य इंजन हैं, वाहन को चलाने के लिए पर्याप्त थे। 2 इंजन चल रहे थे जबकि 2 बंद थे और उन्होंने सोचा कि वे सफर तय कर लेंगे। वह एक गलती थी।

यह पूछने पर कि 2016 में एक लेख में उन्होंने लिखा था कि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए ट्रिगर्स गायब थे, तो क्या अब वे वापस  लौट आए हैं, चिदम्बरम ने कहा कि  दरअसल निजी उपभोग का इंजन भी  रुक गया था जिसका कारण विमुद्रीकरण था। आंकड़े अब सामने आ गए हैं और वे बताते हैं कि निजी उपभोग को इससे अत्यंत चोट पहुंची है।

यह पूछने पर कि लोग विमुद्रीकरण को लेकर चुनावों में या सार्वजनिक रूप में गुस्सा नहीं दिखा रहे और न ही वे किसी व्यक्ति या पार्टी पर दोष  लगा रहे हैं, पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि  अधिकतर लोगों को यह समझ नहीं कि विमुद्रीकरण वास्तव में है क्या। जब प्रधानमंत्री ने यह कहा था कि उन्होंने ऐसा काले धन, भ्रष्टाचार तथा आतंकवाद को धनापूॢत समाप्त करने के लिए किया था तो लोगों ने उन पर विश्वास कर लिया और कहा कि इसके उद्देश्य अच्छे हैं, देखते हैं कि विमुद्रीकरण इन्हें हासिल करता है या नहीं।

उन्हें तब सच्चाई का पता चलेगा जब उनसे अगली बार घूस मांगी जाएगी, जब वे देखेंगे कि विमुद्रीकरण के बाद  किसी ने बड़ी मात्रा में अघोषित सम्पत्ति इक_ी कर ली है, जब एक नए आतंकवादी हमले से उनका सामना होगा तथा सुरक्षा एजैंसियों को आतंकी ठिकानों से नए करंसी नोट बरामद होंगे। तब लोगों को एहसास होगा कि विमुद्रीकरण काले धन, भ्रष्टाचार अथवा आतंकवादियों को की जाने वाली धनापूॢत समाप्त करने का औजार नहीं है।

चिदम्बरम ने कहा कि इसका पहला  रियलिटीचैक मई-जून में होगा जब कालेज कैपिटेशन फीसकी मांग करेंगे और इसके लिए नकदी जमा करने वालेअभिभावकों को एहसास होगा  कि विमुद्रीकरण ने काले धन पर कोई नकेल नहीं डाली। इसी तरह से जब  कोई किसान अपने कार्यों के लिए तहसीलदार के कार्यालय में जाएगा और उससे घूस मांगी जाएगी तो उसे एहसास होगा कि विमुद्रीकरण ने इस पर रोक नहीं लगाई।

यह पूछने पर कि उन्हें फिलहाल  सामने क्या खतरे दिखाई दे रहे हैं, चिदम्बरम ने कहा कि सबसे बड़ा न दिखाई देने वाला खतरा 5 राज्यों के चुनाव परिणाम हैं। उन्होंने कहा कि वह समझते हैं कि यह सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण चुनाव है और निश्चित तौर पर एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा। यदि भाजपा उत्तर  प्रदेश तथा एक-दो अन्य  राज्यों को जीत लेती है तो यह अपने  अविचारी तथा विघटनकारी एजैंडे के साथ और जोरदार तरीके से आगे बढ़ेगी।

यदि भाजपा उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने में असफल रहती है तथा पंजाब या किसी अन्य राज्य में इसे धक्का लगता है तो यह एक अन्य रास्ते पर जा सकती है। यह और भी अधिक  निरंकुश बन सकती है अथवा पीछे हट कर स्थिति को सुधार सकती है।

चिदम्बरम ने बताया कि यही बात उन्होंने बिहार के चुनावों के बाद भी कही थी, मगर अफसोस की बात यह है कि भाजपा ने पीछे हट कर अपनीस्थिति को मजबूत नहीं बनाया। उत्तर प्रदेश के चुनावों के बाद भाजपा क्या करेगी, उन्हें (चिदम्बरम) नहीं पता। उन्होंने कहा कि भाजपा को आवश्यक तौर पर एक और अधिक मुख्यधारा पार्टी बनना होगा। इसे एक  ऐसी पार्टी के तौर पर देखा जाता है जिसमें लोगों का एक बड़ा वर्ग शामिल नहीं है। मेरी समझ के अनुसार दलित  खुद को इससे बाहर महसूस करते हैं। युवा व महिला वर्ग तो पूरी तरह से खुद को इससे बाहर समझते हैं।

बाहरी व्यावसायिक माहौल के काफी अप्रत्याशित बनते जाने बारे चिदम्बरम ने कहा कि किसी भी व्यवसाय में दो तत्व होते हैं, ऑनरशिप  तथा मैनेजमैंट। बहुत बड़े कार्पोरेट घरानों में शायद ऑनरशिप नजर नहीं आती मगर ऐसे मामलों में मालिक  मैनेजमैंट में परिवर्तन कर सकते हैं, यहां अथवा विदेश में।

भारतीय कार्पोरेट जगत में ऑनरशिप प्रभुत्व वाली रही है। मालिक ही सब कुछ होता है। जैसे-जैसे कम्पनियां बड़ी होती जाती हैं, ऑनरशिप कमजोर होती जाती है।   बदलाव के उस समय में मैनेजमैंट तथा ऑनरशिप के बीच झगड़ा होता है। जब मालिक प्रभुत्व वाला होता है (51 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी)  तो अंतत: उसकी आवाज सुनी जाती है।

उन्होंने कहा कि मैंनेजमैंट तथा ऑनरशिप दोनों को सीखना चाहिए कि कैसे अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके बदलते हुए माहौल को प्रभावित करना है। मैं समझता हूं कि वे सबक  सीखे जा रहे हैं।वित्त मंत्री को कोई सलाह देने बारेउन्होंने कहा कि मूल रूप से वह इस सरकार केकई उद्देश्यों से सहमत नहीं हैं। न ही वे उन्हें हासिल करने के लिए काम कर रहे हैं। जैसे कि वे दावा करतेहैं कि सरकार गरीबों की हितैषी है मगर लगातार सामाजिक क्षेत्र के कार्यों पर खर्चों में कटौती की जा रही है।

2018-19 के बजट बारे उन्होंने कहा कि इसका लक्ष्य वित्तीय तथा मौद्रिक स्थिरता पर होना चाहिए। इसका लक्ष्य विस्तारित सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर होना चाहिए। मगर मैं समझता हूं कि काफी कुछ राज्यों के चुनावों पर निर्भर करेगा तथा चुनावी परिणाम घोषित होने के बाद होने वाले मंत्रिमंडलीय बदलाव पर।                      (साभार ‘बी.एस.’)

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