लाल बत्ती पर प्रतिबंध से क्या ‘वी.आई.पी. कल्चर’ समाप्त हो जाएगा

Edited By ,Updated: 25 Apr, 2017 12:13 AM

vip from restriction on red light culture   will end

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर छोटे-मोटे नेताओं, बाबुओं और इंस्पैक्टरों तक की गाडिय़ों पर लाल बत्ती और सायरन की प्रथा को समाप्त करते हुए प्रधानमंत्री...

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर छोटे-मोटे नेताओं, बाबुओं और इंस्पैक्टरों तक की गाडिय़ों पर लाल बत्ती और सायरन की प्रथा को समाप्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की कि प्रत्येक भारतीय वी.आई.पी. है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक देश में कारों पर लाल बत्ती के लिए कोई स्थान नहीं है।
 

क्या वास्तव में ऐसा है? आप मुझे बेवकूफ बना सकते हैं क्योंकि ये लाल बत्तियां और सायरन की आवाजें महत्व, शक्ति, वी.आई.पी. दर्जा आदि के उदाहरण हैं। हालांकि इनका संबंध सुरक्षा से भी है। जरा सोचिए आम आदमी को प्रत्येक दिन सड़क पर वी.आई.पी. नस्लवाद का सामना करना पड़ता है। बंदूकधारी कमांडो के साथ जब वे सड़क पर चलते हैं तो अपने दर्जे को दर्शाते हैं।

यातायात बंद कर दिया जाता है और वे लाल बत्ती भी पार कर जाते हैं तथा यदि कोई उनके इस दुस्साहस पर सवाल उठाए तो उनका उत्तर होता है ‘‘तुझे मालूम नहीं मैं कौन हूं। मेरा बाप वी.आई.पी. है’’। इन शब्दों को सुनकर आम आदमी को लगता है कि वह दूसरे दर्जे का नागरिक है।

इसके अलावा उन्हें कई नि:शुल्क वी.आई.पी. सुविधाएं मिलती हैं जैसे हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर वी.आई.पी. लांज, वी.आई.पी. अस्पताल वार्ड, हवाई और रेल आरक्षण में वी.आई.पी. दर्जा, भारत के संसद में प्रवेश के लिए वी.आई.पी. प्रवेश द्वार, वी.आई.पी. सीट, वी.आई.पी. जैड प्लस, जैड, वाई, एक्स सुरक्षा, वी.आई.पी. कोटा। वस्तुत: इस वी.आई.पी. शब्द से ही खीझ आने लगती है। हालांकि यह लाल बत्ती की संस्कृति समाप्त कर मेरे भारत महान में वी.आई.पी. नस्लवाद समाप्त करने की दिशा में एक छोटा-सा कदम उठा लिया गया है। किन्तु प्रश्न उठता है कि क्या इस लाल बत्ती के साथ वी.वी.आई.पी. संस्कृति भी समाप्त होगी और हमारे शक्तिशाली नेता कब तक इसका पालन करेंगे। मेरे हिसाब से यह 10-15 महीनों से अधिक नहीं चलेगा।

उच्चतम न्यायालय ने दिसम्बर 2013  में निर्देश दिया था कि संवैधानिक प्राधिकारियों को छोड़कर सभी वी.आई.पी. कारों से लाल बत्ती हटा दी जाए क्योंकि यह हास्यास्पद है और शक्ति का प्रतीक है। किन्तु प्राधिकारियों ने न्यायालय की न सुनी, साथ ही हमारे वी.आई.पी. लोगों की बढ़ती सूची के मद्देनजर इन लोगों का मानना है कि यदि उन्हें नियम का पालन करने के लिए कहा जाए तो उनका वी.आई.पी. दर्जा दाव पर लग जाएगा क्योंकि उनकी सोच सामंती है और वे अपने लिए अलग तरह का व्यवहार मांगते हैं जिसमें उन्हें किसी नियम का पालन न करना पड़े तथा वे कानून द्वारा शासन करना चाहते हैं।
 

मोदी सरकार इस वी.आई.पी. संस्कृति को समाप्त करना चाहती है किन्तु उसने भी पूर्ववर्ती यू.पी.ए. सरकार से अधिक लोगों को सुरक्षा दी है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार 15842 लोगों को सरकार की ओर से सुरक्षा मिली हुई है। हमारे देश में 14842 वी.आई.पी. लोगों की सुरक्षा में 47557 पुलिस कर्मी तैनात हैं। इसका मतलब है कि प्रत्येक वी.आई.पी. व्यक्ति की सुरक्षा में 3 पुलिस कर्मी तैनात हैं हालांकि बढ़ते अपराधों के साथ आम नागरिक की सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ गया है। अकेले दिल्ली में वी.आई.पी. सुरक्षा में 14200 पुलिस कर्मी तैनात हैं। मुंबई में पिछले 5 वर्षों में वी.आई.पी. सुरक्षा में तैनात पुलिस कर्मियों की संख्या में 1200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

क्या हमारे जनसेवकों को उस जनता से सुरक्षा के लिए पुलिस कर्मियों की आवश्यकता है जिसकी सुरक्षा करने की वे कसमें खाते हैं? विडम्बना देखिए कि सुरक्षा उन लोगों को भी उपलब्ध कराई जाती है जिन पर न्यायालयों में गंभीर आरोप चल रहे हैं। जिन वी.आई.पी. व्यक्तियों को जीवन का खतरा है उन्हें 24 घंटे सुरक्षा के लिए कम से कम 4 व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी उपलब्ध कराए जाते हैं। दिल्ली के लोधी गार्डन में माॄनग वॉक के दौरान ऐसा  लगता है कि सरकार माॄनग वॉक करने आई है।

हवाई अड्डों पर सांसदों और शीर्ष अधिकारियों द्वारा सुरक्षा कर्मियों से झगडऩे की घटनाएं आम हो गई हैं क्योंकि ये सुरक्षा कर्मी इन वी.आई.पी. लोगों की मांगों की बजाय सुरक्षा को अधिक महत्व देते हैं। भारत में ऐसे वी.आई.पी. लोग तब भड़क जाते हैं जब उन्हें अनिवार्य सुरक्षा प्रक्रिया जैसे अपने सामान को एक्स-रे मशीन में डालने के लिए कहा जाता है। 2011 के बाद लगभग 62 वी.आई.पी. लोगों ने देश के विभिन्न हवाई अड्डों पर केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल द्वारा उनके साथ अभद्रता की शिकायतें की हैं, जिसके चलते हमारे शासकों के प्रति लोगों की खिन्नता बढ़ती जा रही है और परिणामस्वरूप लोगों में भी कानून और नियमों का पालन न करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
 

हमारे मुफ्तखोर वी.आई.पी. लोग प्रायोरिटी चैक इन के लिए लाइन तोड़ देते हैं। उन्हें मुफ्त नाश्ता मिलता है, उनका महाराजाओं जैसा स्वागत किया जाता है, एयरपोर्ट मैनेजर को वी.आई.पी. से मिलना होता है और उन्हें हवाई जहाज तक छोडऩा होता है। हवाई जहाज में तैनात कर्मी उनका विशेष ध्यान रखते हैं। मैनेजर यह सुनिश्चित करता है कि उड़ान समय पर चले और वी.आई.पी. व्यक्ति को उसका सीट नंबर, सामान की स्थिति  आदि के बारे में सूचना देता है।

गंतव्य स्थान पर भी उनका विशेष ध्यान रखा जाता है और यह सब केवल सरकारी एयर इंडिया में ही नहीं अपितु प्राइवेट एयरलाइनों में भी होता है और इसकी कीमत आम जनता को चुकानी पड़ती है। इसके अलावा उन्हें राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल प्लाजाओं पर भी विशेष व्यवहार की अपेक्षा होती है और यदि उनसे टोल टैक्स मांगा जाए तो वे वहां तैनात कर्मचारियों को असभ्य घोषित कर देते हैं।

लोगों का मानना है कि जब तक किसी संबंध या पद के साथ सत्ता जुड़ी होगी तब तक वी.आई.पी. नामक यह विकृति जारी रहेगी। भारत में वी.आई.पी. लोग ओरवेलियन सिंड्रोम से ग्रस्त हैं और वे अपने को अन्य लोगों से अधिक समान मानते हैं। सत्ता और सुविधाओं के कारण व्यक्ति में अहंकार पैदा होता है। इन वी.आई.पी. लोगों के ठाठ-बाठ को देखकर लोगों में खिन्नता पैदा हो रही है और वे गुस्से में हैं जिसके चलते लोग कानून अपने हाथ में लेने लगे हैं।

धीरे-धीरे लोगों का धैर्य समाप्त हो रहा है। यदि नमो वास्तव में वी.आई.पी. सिंड्रोम समाप्त करना चाहते हैं और समानता लाना चाहते हैं तो उन्हें केवल लाल बत्ती समाप्त करने पर ही नहीं रुकना चाहिए क्योंकि हमारे यहां इन स्वयंभू वी.आई.पी. लोगों को अनेक अनावश्यक विशेषाधिकार, वित्तीय सुविधाएं दी गई हैं। इन लोगों की आय और वेतन पर कर लगाया जाना चाहिए, साथ ही भूतपूर्व सांसदों की पैंशन बंद की जानी चाहिए।    

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