जाते-जाते यह क्या कह गए हामिद अंसारी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Aug, 2017 12:37 AM

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10 वर्ष तक भारतीय गणराज्य के उपराष्ट्रपति रहे डा. हामिद अंसारी अपने विदाई समारोह में भारत के अल्पसंख्यकों ...

10 वर्ष तक भारतीय गणराज्य के उपराष्ट्रपति रहे डा. हामिद अंसारी अपने विदाई समारोह में भारत के अल्पसंख्यकों की तथाकथित असुरक्षा के विषय में जो टिप्पणी करके गए उसे लेकर भारत का बहुसंख्यक समाज बहुत उद्वेलित है। अखबारों में उनके कार्यकाल की ऐसी कई घटनाओं का उल्लेख किया गया है जब उन्होंने स्पष्टत: हिंदू समाज के प्रति अपने संकोच को सार्वजनिक रूप से प्रकट किया इसलिए यहां उन्हें दोहराने की आवश्यकता नहीं है।

सोचने का विषय यह है कि जिस देश में हर बड़े पद पर अल्पसंख्यक इज्जत के साथ बैठते रहे हों वहां उनके असुरक्षित होने की बात गले नहीं उतरती। भारत का राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त, इंटैलीजैंस ब्यूरो का निदेशक जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण व सर्वोच्च पदों पर अनेक बार अल्पसंख्यक वर्ग के लोग शानो-शौकत से बैठ चुके हैं। 

डा. अंसारी से पूछा जाना चाहिए कि जब कश्मीर के हिंदुओं पर वहां के मुसलमान लगातार हमले कर रहे थे और अंतत: उन्हें उनके सदियों पुराने घरों से खदेड़ कर राज्य से बाहर कर दिया तब क्या उन्होंने ऐसी चिंता व्यक्त की थी? मुझे याद नहीं कि उन्होंने कभी भी हिंदुओं पर होते आ रहे मुसलमानों के हमलों पर चिंता व्यक्त की हो। यह पहली बार नहीं है, हमारे देश के वामपंथी इस मामले में सबसे आगे हैं। उन्हें हिंदुओं की साम्प्रदायिकता बर्दाश्त नहीं होती लेकिन मुसलमानों की साम्प्रदायिकता और आतंकवाद में उन्हें कुछ भी खोट नजर नहीं आता। तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों और वामपंथियों के ऐसे एकतरफा रवैये से ही हिंदू समाज ने अब संगठित होना शुरू किया है इसलिए इन सबका सीधा हमला अब हिंदुओं पर हो रहा है। उन्हें लगातार साम्प्रदायिक और धर्मार्थ कहकर समाज विरोधी बताया जा रहा है। 

यही हाल बंगाल की  मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भी है जिन्होंने अपने अधिकारियों को अलिखित निर्देश दे रखे हैं कि उनके प्रांत में मुसलमानों के सौ खून माफ कर दिए जाएं, पर अगर कोई हिंदू साइकिल की भी चोरी करते पकड़ा जाए तो उसे टांग दिया जाए। इससे पश्चिम बंगाल के पुलिस महकमे में भारी असंतोष है। यह सही है कि भाजपा की सरकार केन्द्र में आने के बाद से हिंदू युवा कुछ ज्यादा सक्रिय हो गए हैं और कभी-कभी अपने आक्रोश को प्रकट करते रहते हैं। पर इसके पीछे वह उपेक्षा और तिरस्कार है जिसे उन्होंने पिछले 1000 सालों से भोगा है। डा. हामिद अंसारी जैसे लोग इन दोनों ही वर्गों से अलग हटकर हैं। वह ऐसे कुलीन वर्ग से आते हैं जिसने कभी ऐसी उपेक्षा या यातना नहीं सही। वह तो हमेशा से पढ़े-लिखे, खाते-पीते ताकतवर लोगों की संगत में रहे और पूरा जीवन ऊंचे-ऊंचे पदों पर बैठे इसलिए ऐसे लोगों से तो कम से कम संतुलित व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। फिर क्यों ये नाटक देखने को मिलते रहते हैं। बात यह है कि ऐसे कुलीन लोग आम आदमी के मुकाबले ज्यादा खुदगर्ज होते हैं। 

जब तक इन्हें मलाई मिलती रहती है तब तक ये सीधे रास्ते चलते हैं, पर जैसे ही इन्हें लगता है कि अब मलाई उड़ाने का वक्त खत्म हो रहा है तो ये ऐसे ही बयान देकर चर्चा में आना चाहते हैं जिससे किसी अन्य फोरम पर मलाई खाने के रास्ते खुल जाएं। इसलिए इनके बयानों में कोई तथ्य नहीं होता। इन्हें गंभीरता से लेना भी नहीं चाहिए। सोचने की बात यह है कि जब देश की आम जनता बुनियादी समस्याओं से जूझ रही हो तब इस तरह के साम्प्रदायिक मुद्दे उठाना कहां तक जायज है। फिर वह चाहे कोई भी पक्ष उठाए। आम जनता जानती है कि अचानक साम्प्रदायिक मुद्दे उठाने के पीछे केवल राजनीतिक एजैंडा होता है, उस समुदाय विशेष के विकास करने का नहीं। इसलिए ऐसे बयान निजी राजनीतिक लाभ के लिए दिए जाते हैं, समाज के हित के लिए नहीं।

अच्छा होता कि डा. अंसारी यह घोषणा करते कि सेवानिवृत्त होकर वह अल्पसंख्यक समाज में आ रही कुरीतियों और आतंकवादी सोच के खिलाफ लड़ेंगे जिससे वह इन भटके हुए युवाओं को राष्ट्र की मुख्यधारा में ला सकें। पर ऐसा कुछ भी उन्होंने नहीं कहा और न करेंगे। यह भी चिंता का विषय है कि जिस तरह हिंदू युवा उत्साह के अतिरेक में बिना तथ्यात्मक ज्ञान के भावनात्मक मुद्दों पर बार-बार उत्तेजित हो रहे हैं उससे हिंदू समाज की छवि खराब हो रही है। वैदिक संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि ऐसे हल्के-फुल्के झोंकों से हिलने वाली नहीं। आवश्यकता है उन्हें गहराई से समझने और दुनिया के सामने तार्किक रूप से प्रस्तुत करने की जिससे विधर्मी भी हमारे ऋषियों की दूरदृष्टि, वैज्ञानिक सोच और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना से प्रभावित होकर भारत की मुख्यधारा में और भी सक्रिय भूमिका निभाएं। 

डॉ. अंसारी को अभी भी कुछ ऐसा ही करना चाहिए जिससे समाज को लाभ मिले और इस वक्तव्य के बाद उनकी खोई हुई प्रतिष्ठा पुनस्र्थापित हो। डा. ए.पी.जे. कलाम अखिल भारतीय सनातन सोच का दीप स्तम्भ हैं इसलिए वह भारतीयों के हृदय में स्थान पा चुके हैं। उन्होंने अपना धर्म नहीं छोड़ा लेकिन एक सच्चे भारतीय की तरह सामाजिक सद्भाव से जीने का उदाहरण प्रस्तुत किया।    

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