गरीबी के दुष्चक्र में इतनी बड़ी आबादी क्यों ?

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Jun, 2017 04:56 PM

why such a large population in the rainy season of poverty

क्या इन्हें सम्मानपूर्वक  जीवन जीने का अधिकार मिलना चाहिए अथवा नहीं। यदि हां तो फिर।

क्या इन्हें सम्मानपूर्वक  जीवन जीने का अधिकार मिलना चाहिए अथवा नहीं। यदि हां तो फिर। प्रश्न अत्याधिक जटिल है। कौन, कब, और कैसे। आज हम आधुनिकता की बात कर रहे हैं। आधुनिक युग की रूप रेखा तैयार कर रहे हैं प्रन्तु यह कैसे सफल एवं गतिमान होगा इस पर चिंतन एवं मंथन गहनता से करने की आवश्यकता है। इसलिए कि पूरे समाज का दो छोर है। जिसके पहले छोर पर विराजमान लोग हवाई जहाज़ से यात्रा ही नही करते, अपितु हवाई जहाज के स्वंय स्वामी भी होते हैं। एवं समाज के दूसरे छोर पर खड़े लोग वह हैं जो आज भी जीवन की मूल भूत सुविधाओं से वंचित हैं, आधुनिकता तो उनसे बहुत दूर है। यह लोग जीवन के मुख्य आधार पर संघर्ष करने को मजबूर एवं बाध्य हैं। रोटी कपड़ा और मकान जैसी मूल भूत सुविधाओं के लिए संघर्ष। दूसरी ओर आधुनिक समाज की रूप रेखा है।

यह अत्यधिक जटिल प्रश्न है। एक छोर आकाश में उड़ता हुआ नजर आता तो दूसरा छोर धरती पर मज़बूती से खड़े‌ होने के लिए संघर्ष कर रहा है। क्या इतनी बड़ी आबादी को नज़र अंदाज़ करके हम आधुनिकता के क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। क्या इतनी बड़ी आबादी को सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। क्या गरीबी की दुष्चक्र में फंसे लोगों को जीवन की मुख्य जीवन रेखा से जोड़ने के लिए हमारी नैतिकता नहीं है? क्या यह सभी लोग भूतकाल से लेकर वर्तमान तक पीढ़ी‌ दर पीढ़ी‌‌ इसी दल-दल में फंसे रहें? और हम ऊंची-ऊंची कुर्सियों पर बैठकर विकास की बातें कागज़ पर मात्र दो बड़ी लकीरें खींचकर ही करते रहें? क्या कागज़ पर बना हुआ नियम एवं कानून धरातल पर सम्पूर्ण रूप से 100 प्रतिशत उतर रहा है? क्या यह संसद भवन में बैठ करके मात्र आदेश दे देने?

संविधान में मात्र संशोधन कर देने? मात्र एक लाइन और बढा‌कर लिख देने? क्या जिम्मेदारी पूर्ण हो जाती है। क्या इससे हमारी जिम्मेदारी का निर्वाह हो जाता है? क्या नियम धरातल के अन्तिम छोर पर अपने आपको संविधान एवं कानून के अनुरूप उतार पाने एवं सिद्ध करने में सक्षम है? अथवा नहीं तो फिर? इन परिणामों को बड़ी गम्भीरता से लेने एवं देखने की बात है। अत्यधिक पैनी नजरों से देखने और समझने की आवश्यक्ता है। धरातल के शून्य डिग्री पर योजना के क्या परिणाम हैं। मात्र नियम एवं कानून बना देने से आम जनजीवन मंर सुधार एवं परिवर्तन हो जाएगा, और हम ऊंची कुर्सी पर संसद भवन एवं विधान सभा में शांति से बैठे रहें शायद यह निर्णय न्याय संगत नहीं होगा। सोचिए, समझिए, चिंतन एवं मंथन कीजिए। परिणाम को प्रमाण में परिवर्तित करने हेतु अंतिम छोर पर बड़ी गम्भीरता से अविराम दृष्टि एवं नजरों को बनाए रखना होगा। बड़े न्याय पूर्वक ढ़ंग से जाति, धर्म, ऊँच, नीच, परिचित, अपरिचित, प्रभावशाली तथा दुर्बल, सबको एक दृष्टि एवं एक नज़र से देखने के लिए न्याय पूर्वक सोच को ह्र्दय एवं मष्तिष्क के अन्दर अंकुरित करने की योग्यता हेतु भूमि के निर्माण की आवश्यक्ता है।

उदाहरणता यदि ट्रेन का इंजन सर्व शक्तिमान है उसको शक्ति प्रदान है। वह तेज़ गति से दौड़ने में सक्षम है तो हमें उन कोचों का भी ध्यान रखना होगा जो उस इंजन के हिस्से हैं यदि कोच की रूप रेखा इंजन की रूप रेखा से भिन्न हो और चल पाने की आशा की जाए। तो यह कदापि सम्भव नही हो सकता जिस मार्ग पर इंजन चलेगा उसी मार्ग पर कोच “डिब्बा” भी चलेगा इंजन का पहिया जितनी गति से अपनी धुरी के चारों ओर चक्कर लगाएगा उतनी ही तीव्रता से उसके पीछे-पीछे डिब्बा भी गतिमान होगा। इंजन की गति से गति मिलाकर डिब्बा भी तभी चल पाएगा जब उसके भी पग एवं चरण दृढ़ एवं शक्तिशाली होंगें। जब तक उसके पहिए शक्तिशाली एवं प्रबल नहीं होंगें वह इंजन कि गति से गति मिलाकर चलने में कैसे सक्षम होगा, कल्पना कीजिए गहनता से सोचिए। यदि ट्रेन को अविराम गति देना है तो उसके जमीनी आधार को मज़बूत एवं प्रबल बनाना होगा। चरण एवं पग रूपी पहिए से लेकर उसकी रूप रेखा को निश्चित शशक्त बनाना होगा। 

बोगी एंव डिब्बे को शक्तिशाली बनाना पड़ेगा अन्यथा इंजन अलग दिशा में चला जाएगा और डिब्बा मार्ग में ही रह जाएगा और मार्ग बाधित हो जाएगा सारी गति धरी की धरी रह जाएगी। मात्र इंजन को शक्ति प्रदान करने से कार्य सफल हो जाए इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह एक कडुआ सत्य है। आज शायद यही हो रहा है। हम दिशा हीन शैली एवं दिशा हीन मार्ग पर कार्य कर रहे हैं। जिसके परिणाम आज यह दिखाई दे रहे हैं। एक लम्बी लाइन खिंची हुई है। एक तरफ धनाड्य एवं सम्पन्न व्यक्तियों की टोली एवं दूसरी तरफ गरीबों,दुर्बलों, मजलूमों की भयंकर भीड़। मात्र कुछ लोगों की संपन्नता को आधार मानकर यदि हम देश की रूप रेखा को खींचना आरम्भ करते हैं तो यह देश एवं देश की जनता के प्रति शायद न्याय नहीं होगा। इसका प्रतिरूप एवं प्रतिमान उसी ट्रेन की भांति होगा जो मात्र इंजन की प्रबलता पर ध्यान केंन्द्रित करके किया गया। इंजन ने अभी गति पकड़ने का प्रयास ही किया था कि सारी बोगियों के पहिए इंजन से अलग हो गए इंजन अलग दिशा में चला गया एवं बोगियां अलग दिशा में।

आज यही स्थित देश के चतुर्मुखी विकास के कार्यों को प्रस्तुत करती हुई दिखाई दे रही है। आम जन-मानस को योजना के आधार पर कितना लाभ हुआ। कितना उत्थान हुआ उसकी आर्थिक एवं सामाजिक स्थित स्पष्ट रूप से प्रमाण दे रही है। जीवन की मूल-भूत सुविधाएं जैसे रोटी, कपड़ा,‌ मकान के लिए आज के इस आधुनिक युग में अधिकतर लोग संघर्षरत हैं। अपने आप में बहुत कुछ बंद ज़बानों एवं कंठस्थों से कह रहा है। परन्तु एक प्रश्न बहुत ही जटिल है । जो व्यक्ति जनता की सेवा करने के लिए आता है और जनता के बीच लोकतंत्र का सहारा लेकर के चुनाव लड़ता है जनता उसे अपना प्रतिनिधि स्वीकार कर लेती है उसे विजयी बनाकर के विधान सभा अथवा लोकसभा भेज देती है अपने क्षेत्र का भविष्य एवं भाग्य बदलने के लिए। प्रंतु परिणाम ठीक विपरीत दिशा में दिखाई देते हैं। क्षेत्र का विकास तो नहीं हो पाता प्रंतु जिसपर जनता ने भरोसा किया था विजयी बनाकर विधानसभा अथवा लोकसभा भेजा था वह अपना विकास करना आरम्भ कर देता है। आज़ादी से लेकर आजतक की तस्वीर लगभग कमोबेस यही दर्शाती है।

अधिक्तर लोग सत्ता की छ्त्र छाया में फर्श से लेकर के अर्श तक की यात्रा कर रहें हैं। यह कैसा नियम है, यह कैसा कानून है। आय के संसाधन नहीं हैं प्रंतु धन असीमित है। जिसकी सीमा ही नही है। यह धन कहां से आया इसका श्रोत क्या है कौन पूछेगा। किसकी हिम्मत है जो आवाज उठा सके। यदि किसी ने साहस भी किया तो जेल की हवा खानी पड़ती है। फर्जी मुकदमों में उसे फंसा करके जेल भेज दिया जाता है। इसलिए की सत्ता है। अथवा सत्ता के समीप है। तथा सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। परन्तु गरीब व्यक्ति दिन-प्रति दिन समस्याओं से और ग्रसित होता चला जाता है। भोजन से लेकर के वस्त्र तक, एवं वस्त्र से लेकर के चिकित्सा एवं उपचार तक संघर्ष करता रहता है। और जीवन इन्हीं चक्रों में सिमटकर समाप्त हो जाता है। इसके लिए कौन सोचेगा। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। क्या आजादी की सचमुच परिभाषा यही है। क्या आजादी का अर्थ यही है। क्या आज़ादी इसे ही कहते हैं। समझना पड़ेगा। महापुरुषों ने फांसी के फंदों को गले लगाया अपने प्राणों की कुर्बनी दे दी क्या इसीलिए? अब एक मुद्दा और अत्यंत गम्भीर है।

कम समय में सत्ता को प्राप्त करने की नई रूप रेखा। सामाज को बांटकर भेदभाव फैलाकर शांति को छिन्न भिन्न करके अपने मतलब को साध लिया जाए। गरीबों को और दल दल में फंसा दिया जाए। मूल भूत समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिए कार्य ना करके मुद्दों से ध्यान भटकाने का कार्य किया जाना उचित है अथवा अनुचित। इसका निर्णय कौन करेगा। क्या इससे देश की गरीबी समाप्त हो जाएगी। क्या इससे भूखे को भोजन वस्त्र विहीनों को वस्त्र एवं मरीजों को चिकित्सा तथा बालक एवं बालिकओं को शिक्षा और युवाओं को रोजगार प्राप्त हो जाएगा। जिससे हम विश्व के सामने आर्थिक एवं शिक्षित तथा स्वस्थ रूप से मजबूती से खड़े हो सकें शायद इसकी अधिक आवश्यकता है और यह सत्य है। यदि हमें विश्व के सामने अपने आपको मजबूत एवं आत्म निर्भरता के रूप में प्रस्तुत करना है। एक सक्षम एवं शशक्त भारत बनाना है। तो आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में कार्य करना पड़ेगा। हमारे देश के अन्दर प्रतिभावान व्यक्तियों की कमी नहीं है। हम विश्व की रूप रेखा को बदलने की सम्पूर्ण रूप से क्षमता रखते हैं। हमारे देश के बच्चे एवं युवा रीढ़ की हड्डी हैं। बालिकाओं के अंदर गज़ब की प्रतिभा है। बस सही समय पर सही दिशा में कदम रखने की आवश्यकता है।

                                                                                                                             एम.एच.बाबू  
   

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