10% मछलियां, 15% फल सब्जियां हो जाती हैं नष्ट

Edited By ,Updated: 19 Dec, 2016 05:04 PM

10 percent of fish  15 percent fruits and vegetables are destroyed

पानी से निकाले जाने के बाद लगभग 10 प्रतिशत मछलियां तथा पककर तैयार होने के बाद 15 प्रतिशत से अधिक फल और सब्जियां परिवहन सुविधाओं की कमी, प्रसंस्करण सुविधाओं के अभाव में तथा छटाई एवं पैकेजिंग के दौरान नष्ट हो जाती हैं।

नई दिल्लीः पानी से निकाले जाने के बाद लगभग 10 प्रतिशत मछलियां तथा पककर तैयार होने के बाद 15 प्रतिशत से अधिक फल और सब्जियां परिवहन सुविधाओं की कमी, प्रसंस्करण सुविधाओं के अभाव में तथा छटाई एवं पैकेजिंग के दौरान नष्ट हो जाती हैं।

केन्द्रीय फसलोत्तर इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (सीफेट) लुधियाना ने जल्द खराब होने वाले कृषि उत्पादों पर पिछले वर्ष एक अध्ययन किया जिसके अनुसार पानी से निकाले जाने के बाद 10.52 प्रतिशत मछलियां आधारभूत सुविधाओं के अभाव में नष्ट हो जाती हैं। इसी तरह पक कर तैयार होने तथा पेड़ से तोडऩे के बाद 4.58 प्रतिशत से 15.88 प्रतिशत तक फल और सब्जियां खराब हो जाती है।

अनाजों में यह हानि 4.65 से 5. प्रतिशत, दालों में 6.36 प्रतिशत से 8.41 प्रतिशत तथा तिलहनों में 3.08 से .6 प्रतिशत तक है। कुल मिलाकर सालाना 2651 करोड रुपए तक की फसलोत्तर हानियां हैं। संसद की कृषि संबंधी स्थायी समिति ने हाल की अपनी एक रिपोर्ट में फसलों के तैयार होने के बाद नष्ट होने पर चिंता व्यक्त की है और इसे नियंत्रित करने के उपाय करने की सिफारिश की है।

वरिष्ठ सांसद हुक्मदेव नारायण यादव की अध्यक्षता वाली समिति ने फसल एवं फसलोत्तर हानियों को नियंत्रित करने के लिए ग्रामीण आधारभूत सुविधाओं एवं आपूर्ति श्रृंखला के लिए पर्याप्त सार्वजनिक निवेश बढ़ाने की सिफारिश की है। इसके लिए अपेक्षित राशि आवंटित करने के लिए वित्त मंत्रालय से अनुरोध किया जाना चाहिए।  समिति ने कहा है कि अनाजों में यह हानि मुख्य रूप से फसल की पैदावार , एकत्रीकरण आदि के दौरान होती है जबकि फलों और सब्जियों में यह नुकसान अधिकतर उपज के दौरान होती है। पर्याप्त प्रसंस्करण सुविधाओं से इन हानियों को कम करके उत्पादकों को लाभकारी मूल्य दिलाया जा सकता है तथा उपभोक्ताओं के लिए अधिक मात्रा में आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है।

समिति ने माना है कि इस नुकसान से पता चलता है कि सरकारी योजनाएं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के समक्ष वर्षों से आ रही समस्याओं एवं चुनौतियों का समाधान नहीं कर पा रही हैं। समिति का यह मत है कि किसानों को बिना किसी व्यवधान के प्रसंस्करण एवं विपणन केन्द्रों के साथ जोड़ने के लिए दीर्घकालिक आपूर्ति श्रृंखला का विकास किया जाना जरूरी है। 

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