Edited By ,Updated: 18 Jul, 2016 03:51 PM
सिर्फ खेती के जरिए किसानों की आमदनी दोगुनी होनी मुश्किल है। पशुपालन, मुर्गीपालन और मछलीपालन का जिक्र सरकार कर जरूर रही है
नई दिल्लीः सिर्फ खेती के जरिए किसानों की आमदनी दोगुनी होनी मुश्किल है। पशुपालन, मुर्गीपालन और मछलीपालन का जिक्र सरकार कर जरूर रही है लेकिन इस दिशा में अभी कोई खास पहल नहीं हो सका है। ऐसा मानना है यूनाइटेड नेशंस की संस्था फूड एंड एग्रीकचरल ऑर्गेनाइजेशन का।
देश में एक लाख करोड़ रुपए वाला पोल्ट्री बाजार सालाना 8-10 फीसदी की दर से बढ़ रहा है लेकिन इस ग्रोथ का मजा सिर्फ कुछ बड़ी कम्पनियां ही उठा रही हैं। किसानों की आबादी का करीब 90 फीसदी तबका अभी भी इस बाजार से दूर हैं। वजह, कहीं जागरुकता का अभाव है, तो कहीं लचर बैंकिंग व्यवस्था। इस सैक्टर की लागत भी किसानों को इससे दूर रखने का बड़ा कारण है।
दरअसल बैंकों में सिर्फ खेती के लिए लोन की सुविधा है, वह भी छोटी अवधि के लिए। किसान खेती के अलावा किसी और काम के नाम पर बैंकों से लोन नहीं ले सकते हैं, इसलिए व्यवसायिक तौर पर पशुपालन हो या मछलीपालन, ज्यादातर किसानों की पहुंच से ये दूर हैं। फूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गेनाइजेशंस की दलील है कि लक्ष्य को हासिल करने के लिए बैंकों को भी आगे आना पड़ेगा।
यूनाइटेड नेशंस की संस्था फूड एंड एग्रीकचरल ऑर्गेनाइजेशन का सुझाव है कि पशुपालन, मछलीपालन और मुर्गीपालन को अगर किसानों की आमदनी बढ़ाने का जरिया बनाना है तो चारे से लेकर गाय-भैंस की अच्छी ब्रीड तक की व्यवस्था पर फोकस करना पड़ेगा। मीट की बढती मांग को देखकर बकरी और भेड़ पालन पर जोर देने की भी जरूरत है। जिससे किसानों की आमदमी बढ़ाने के रास्ते खुल सकें।