Edited By ,Updated: 24 Jun, 2016 02:51 PM
अब किसान अपने खेतों में उगा पाएंगे पहले से दौगुनी अरहर की दाल क्योंकि भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आई.आई.पी.आर.)
कानपुर: अब किसान अपने खेतों में उगा पाएंगे पहले से दौगुनी अरहर की दाल क्योंकि भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आई.आई.पी.आर.) कानपुर के वैज्ञानिकों ने करीब 7 साल के शोध के बाद इस दाल की एक नई प्रजाति आई.पी.ए. 203 विकसित की है। इस नई प्रजाति में अरहर दाल के पौधो में होने वाली बीमारियां नही होंगी या यूं कहे कि अरहर के पौधे अब पूरी तरह से रोगमुक्त हो जाएंगे।
आई.आई.पी.आर. ने इस दाल के बीज नैशनल सीड कारपोरेशन तथा स्टेट सीड कारपोरेशन के साथ बिहार और झारखंड को भी भेजे हैं ताकि वे अपने यहां किसानो को इस नई प्रजाति आई.पी.ए. 203 के बीज उपलब्ध करा सकें।
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. एन पी सिंह ने आज बताया कि उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम तक में जून के आखिरी महीनों में अरहर की दाल मानसून में बोई जाती है और करीब 260 दिनो बाद अप्रैल माह में काटी जाती है लेकिन अभी तक अरहर के पेड़ो में 2 प्रकार की बीमारियां हो जाती थी। पहली बीमारी को बांझपन या स्टरलिटी कहते है, इसमें बारिश के दौरान उमस के कारण इसका वायरस फैलता है।
इसमें पेड़ में पत्तिया तो होती है लेकिन फूल और फल नही पैदा होते। इसी तरह दूसरी बीमारी उकठा रोग (वील्ट डब्ल्यूआईइएलटी) होता है जिसमें इस बीमारी का वायरस पेड़ की जड़ में चला जाता है और पेड़ को खाध और पानी नही पहुंच पाता है और यह सूख जाता है और फसल नही हो पाती। यह रोग नवंबर से जनवरी माह के बीच पेड़ों में लगता है। इन दोनों बीमारियों के कारण किसानों को हर साल हजारों टन अरहर की फसल का नुक्सान होता था।