सरकारी बैंकों ने नहीं घटाई आधार दरें

Edited By ,Updated: 15 Apr, 2015 10:25 AM

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प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों भारतीय स्टेट बैंक और आई.सी.आई.सी.आई. बैंक की तरफ से आधार दरें घटाने के बाद भी

मुबंईः प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों भारतीय स्टेट बैंक और आई.सी.आई.सी.आई. बैंक की तरफ से आधार दरें घटाने के बाद भी ज्यादातर सरकारी बैंकों उधारी दरें घटाने के मामले में भारतीय रिजर्व बैंक के संदेश पर अपना प्रत्युत्तर नहीं दिया है। आधार दरें, बेंचमार्क दरें होती हैं जिनका इस्तेमाल बैंक कर्ज की कीमतें तय करने में करता है। सरकारी बैंकों के आला अधिकारियों ने कहा कि मजबूत खाता बही और व्यवस्था वाले बड़े बैंक ने लोनबुक तैयार करने की प्रतिस्पर्धा में पहले ही दरें घटा चुके हैं। लेकिन जिन बैंकों के साथ बैलेंस शीट से जुड़ी समस्या है (दबाव वाली संपत्तियां और बड़े व थोक जमा वाला पोर्टफोलियो) और जहां पूर्णकालिक मुख्य कार्याधिकारी नहीं हैं, वहां अभी भी इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया है।

बड़े बैंकों मसलन पंजाब नैशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और केनरा बैंक में पूर्णकालिक मुख्य कार्याधिकारी नहीं है। दरों में संशोधन को टालने की कोशिश से इनकार करते हुए बैंक ऑफ इंडिया के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बैंक अभी पोर्टफोलियो का विश्लेषण कर रहा है और दरों में कटौती के संभावित असर का आकलन भी कर रहा है। यह कवायद 7 से 10 दिन में पूरी हो जाएगी, जिसका बाद बैंक दरों में संशोधन का फैसला लेगा, जो उधारी व जमाओं दोनों के लिए होगी। इसी तरह इंडियन ओवरसीज बैंक के एक वरिष्ठ प्रबंधक ने कहा, बैंक  अभी समीक्षा कर रहा है। दरों में 10 आधार अंक तक की कमी की संभावना है। अंतिम फैसला संपत्ति दायित्व समिति करेगी।

7 अप्रैल 2015 को ऐक्सिस बैंक, आई.सी.आई.सी.आई. बैंक और एच.डी.एफ.सी. बैंक ने भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से 2015-16 की मौद्रिक नीति के ऐलान के ठीक बाद दरों में कटौती की घोषणा की थी। सार्वजनिक तौर पर आर.बी.आई. गवर्नर रघुराम राजन की तरफ से आलोचना किए जाने के बाद इन बैंकों ने यह कदम उठाया था। भारतीय स्टेट बैंक को छोड़ दें तो ज्यादातर सरकारी बैंक अभी तक दरों में कटौती पर फैसला नहीं ले पाए हैं। जनवरी 2015 से अब तक आर.बी.आई. की तरफ से दो बार रेपो दरें घटाने के बाद सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने तर्क दिया था कि उन्हें जमा दरों में कटौती का ठीक-ठाक लाभ नहीं मिला है, जिससे कि वह उपभोक्ताओं को इसका फायदा देने पर विचार कर सकें। साथ ही वित्त वर्ष 2015 की आखिरी तिमाही होने के चलते ज्यादातर बैंकों ने इस तरह का कोई फैसला नहींं लिया क्योंकि ऐसे समय में उनके ब्याज आय पर तत्काल असर पड़ता, जब हर कोई अपने राजस्व को संरक्षित करने की कोशिश मेंं जुटा हुआ है।

 

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