अब रेलवे ने मांगा OROP

Edited By ,Updated: 08 Sep, 2015 10:33 AM

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केंद्र सरकार द्वारा रक्षा कर्मियों को एक रैंक एक पेंशन (ओ.आर.ओ.पी.) दिए जाने की सैद्धांतिक मंजूरी के बाद देश के सबसे बड़े नियोक्ता भारतीय रेल के कर्मियों ने भी इसी तरह के पेंशन लाभ की मांग उठाई है।

नई दिल्लीः केंद्र सरकार द्वारा रक्षा कर्मियों को एक रैंक एक पेंशन (ओ.आर.ओ.पी.) दिए जाने की सैद्धांतिक मंजूरी के बाद देश के सबसे बड़े नियोक्ता भारतीय रेल के कर्मियों ने भी इसी तरह के पेंशन लाभ की मांग उठाई है। कर्मचारियों का तर्क है कि उनका काम भी 'खतरनाक, जोखिम भरा और जटिल' है। रेलवे के 13 लाख कर्मचारियों में से 90 प्रतिशत से ज्यादा का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन नैशनल फेडरेशन आफ इंडियन रेलवेमेन (एन.एफ.आई.आर.) ने कहा है कि रेल कर्मचारी 8,000 से ज्यादा रेलवे स्टेशनों पर काम करते हैं, जिसके ट्रैक की लंबाई 65,000 किलोमीटर से ज्यादा है। इसमें काम करने वाले कर्मचारी दूरस्थ इलाकों, उग्रवाद प्रभावित इलाकों और ऐसी जगहों पर काम करते हैं, जहां कोई कस्बा या मैडीकल, पेयजल या स्कूल की सुविधा नहीं है। 

एन.एफ.आई.आर. के महासचिव एम राघवैया ने कहा, ''रेलवे ट्रैक का रख-रखाव करने वले कर्मचारियों को मौसम की असहज स्थितियों और खुले आसमान के नीचे काम करना होता है, जैसा कि रक्षा सेवा के लोगों को। औसतन 800 रेल कर्मियों की हर साल ड्यूटी करते हुए मौत हो जाती है, जबकि 3,000 कर्मचारी गंभीर रूप से घायल होते हैं।'' शनिवार को ओ.आर.ओ.पी. को सैद्धांतिक मंजूरी मिलने के बाद रक्षा कर्मियों ने आमरण अनशन खत्म कर दिया। हालांकि सेवानिवृत्त रक्षाकर्मियों ने कहा कि उनका आंदोलन अन्य मांगें पूरी न होने तक चलता रहेगा, जिसमें वेतन का सालाना पुनरीक्षण भी शामिल है। 

राघवैया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि नई पेंशन योजना खत्म करके रेलवे में भी ओ.आर.ओ.पी. को मंजूरी दी जाए, जैसा कि सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों के मामले में किया गया है। एन.एफ.आई.आर. के मुताबिक सरकार ने जनवरी 2004 से जो नई पेंशन योजना लागू की है, वह रेल कर्मियों के साथ अन्याय है। फेडरेशन अब प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री अरुण जेतली और रेल मंत्री सुरेश प्रभाकर प्रभु को ओ.आर.ओ.पी. का विस्तार रेलवे तक करने की अपनी 'ऊचित मांग' के लिए पत्र भेजने में व्यस्त है। इस कदम से 13 लाख कर्मचारियों और 15 लाख सेवानिवृत्त कर्मचारियों को लाभ होगा। अपने समर्थन में यूनियन ने न्यायमूर्ति एचआर खन्ना रेलवे सुरक्षा समीक्षा समिति की सिफारिशों का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है कि रेलवे में काम करना सेना में काम करने के बराबर है, इसलिए रेलवे को अन्य सरकारी संस्थाओं से अलग माना जाना चाहिए।

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