बैंकों को निर्देश, डिफॉल्टरों को दबाव वाली संपत्ति की खरीदने से रोकें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Nov, 2017 03:53 PM

banks  directing the defaulter to stop buying property

दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता के तहत कारवाइयों की सफलता सुनिश्चित करने के लिए वित्त मंत्रालय ने बैंकों को सतर्कता बरतने और कर्ज न चुकाने वाले पुराने प्रवर्तकों को  संबंधित सम्पत्ति पर पुन: सस्ते में दाव लगाने से रोकने के निर्देश दिए हैं। आधिकारिक...

नई दिल्लीः दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता के तहत कारवाइयों की सफलता सुनिश्चित करने के लिए वित्त मंत्रालय ने बैंकों को सतर्कता बरतने और कर्ज न चुकाने वाले पुराने प्रवर्तकों को  संबंधित सम्पत्ति पर पुन: सस्ते में दाव लगाने से रोकने के निर्देश दिए हैं। आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी।

रिजर्व बैंक के निर्देश पर बैंकों ने  ऐसे 12 चुनिंदा कर्जदारों के खिलाफ दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता के तहत ऋण-ग्रस्त सम्पत्तियों को बेचने की प्रक्रिया शुरू की है जिनपर 5,000-5,000 करोड़ रुपए या उससे अधिक के कर्ज बकाया हैं। इन 12 खातों पर बकाया कुल कर्ज 1.75 लाख करोड़ रुपए है जो बैंकों की गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) का 25 प्रतिशत बैठता है। इनके अलावा बैंक कुछ और बड़े अनरुद्ध ऋणों के मामलों को दिवाला संहिता के तहत राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण के पास ले जा रहे हैं।

डिफॉल्टरों  नहीं करेगे प्रणाली में फिर प्रवेश
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि वित्त मंत्रालय के संज्ञान में यह तथ्य आया है कि कुछ जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले उन मामलों में संपत्तियों की खरीद का प्रयास कर रहे हैं जिन्हें आई.बी.सी. के पास भेजा गया है। यह निपटान समूची बैंकिंग प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण है, इसलिए बैंकों से सतर्कता बरतने को कहा गया है जिससे जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाला इस प्रक्रिया का फायदा न उठा पाएं। उन्होंने कहा कि बैंक इस तथ्य को लेकर काफी सतर्क हैं कि डिफॉल्टरों को प्रणाली में फिर प्रवेश का मौका न मिले।  

आई.बी.सी. ने इसके निपटान के लिए समयसीमा तय की है। राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण द्वारा किसी मामले को स्वीकार करने या खारिज करने के लिए 14 दिन का समय होगा। एनसीएलटी द्वारा मामले को स्वीकार करने के बाद बैंकों को दिवाला संहिता के तहत सम्पत्ति के निस्तारण के लिए पेशेवरों की नियुक्ति के लिए 30 दिन का समय मिलता है और समूची प्रक्रिया के लिए 180 दिन का समय तय है।  इसमें परियोजना के पुनरुद्धार या परिसमापन जैसे विकल्पों पर विचार किया जाएगा। 

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