फर्जी बिलों से हो रहा था काला धन सफेद

Edited By ,Updated: 15 Mar, 2017 12:58 PM

black money was being made from fake bills

नोटबंदी के बाद बड़ी मात्रा में चलन से हटाए गए नोटों को बैंकिंग तंत्र में डालने के लिए अनैतिक तरीका अपनाने वालों की कलई खुलनी शुरू हो गई है।

नई दिल्लीः नोटबंदी के बाद बड़ी मात्रा में चलन से हटाए गए नोटों को बैंकिंग तंत्र में डालने के लिए अनैतिक तरीका अपनाने वालों की कलई खुलनी शुरू हो गई है। आयकर विभाग में पाया गया कि कुछ कारोबारियों ने एक क्लोज यूजर ग्रुप बनाकर फर्जी बिलों और गलत तरीके से बैलेंस शीट में कैश इन हैंड दिखाते हुए चलन से हटाए गए नोटों को बैंकों में जमा कराया था। दिल्ली और एनसीआर के इलाकों में ऐसे कई मामले पकड़ में आए हैं। 

आयकर विभाग के एक अधिकारिक सूत्र के मुताबिक पिछले महीने दिल्ली एनसीआर में कुछ कारोबारियों ने यहां जब सर्च एंड सीजन अभियान चला तो उन मामलों में काफी समानता दिखाई दी। उन मामलों की गहराई से जांच हुई तो पाया गया कि कुछ कारोबारी आपस में गठजोड़ कर फर्जी बिलों को इधर से उधर घुमा रहे थे। मतलब, एक के यहां बिक्री हुई तो दूसरे के यहां खरीद। यह सब कागजों में था। यही नहीं, इन्होंने अपने बैलेंस शीट के कैश इन हैंड वाले कॉलम में गलत आंकड़ा दिखाया हुआ था। उसी के सहारे उन कारोबारियों ने चार्टर्ड अकाऊंटेंट्स से सर्टिफिकेट जारी करवाया, जिसके आधार पर चलन से हटाए गए नोट बैंकों में जमा हो गए। 

एक अन्य अधिकारी ने बताया कि इन कारोबारियों ने नोटबंदी की घोषणा होने के बाद बिक्री का फर्जी बिल काटना शुरू किया। बैंकों में जो पैसे जमा किए, उसमें इन्हीं बिलों के आधार पर बिक्री दिखा दी गई, जबकि असल में कोई बिक्री हुई नहीं थी। इन कारोबारियों ने जब अक्तूबर से दिसंबर की तिमाही बिक्री का बिल बुक दिखाया, तो कर अधिकारियों का दिमाग चकरा गया, क्योंकि ये सारे बिल 2 लाख रुपए से नीचे के बिल में पैन नंबर लेना अनिवार्य नहीं है। जब पैन नंबर नहीं है तो क्रेता की पहचान मुश्किल है। जब उन्हीं कारोबारियों से अप्रैल से जून तथा जून से सितंबर के बीच की बिक्री का हिसाब-किताब मांगा गया, तो ना-नुकूर करने लगे। जब उन्होंने उक्त अवधि का बिल बुक दिखाया, तो उसमें अक्तूबर-दिसबंर के मुकाबले काफी कम बिक्री थी।

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