Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Mar, 2018 05:18 PM
कैंडी बनाने वाली भारतीय कंपनियां पारले, आईटीसी और डीएस फूड्स 7,500 करोड़ रुपए के कन्फेक्शनरी सेगमेंट में मल्टीनैशनल कंपनियों को कड़ी टक्कर दे रही हैं। नील्सन के डाटा के अनुसार, परफेटी वैन मेल, मॉन्डलेज और नेसल जैसी ग्लोबल कंपनियों की पिछले कैलेंडर...
मुंबईः कैंडी बनाने वाली भारतीय कंपनियां पारले, आईटीसी और डीएस फूड्स 7,500 करोड़ रुपए के कन्फेक्शनरी सेगमेंट में मल्टीनैशनल कंपनियों को कड़ी टक्कर दे रही हैं। नील्सन के डाटा के अनुसार, परफेटी वैन मेल, मॉन्डलेज और नेसल जैसी ग्लोबल कंपनियों की पिछले कैलेंडर ईयर में इस मार्कीट में हिस्सेदारी स्थिर रही है या उसमें कमी आई है। इसका बड़ा कारण इन कंपनियों के प्रॉडक्ट्स के अधिक दाम हैं। पिछले वर्ष नोटबंदी के चलते मार्कीट पर दबाव था और कम डिनॉमिनेशन की करंसी की उपलब्धता भी कम थी। इससे महंगे कन्फेक्शनरी प्रॉडक्ट्स की बिक्री पर असर पड़ा था।
कैंडी के मार्कीट में प्राइस पर काफी ध्यान दिया जाता है और 50 पैसे की बढ़ौतरी से भी बिक्री पर असर पड़ सकता है। पिछले 3 वर्षों में मॉन्डलेज इंडिया ने हॉल्स को पहले के 50 पैसे की जगह 1 रुपए में दोबारा लांच किया है और चॉकलेयर्स की कीमत दोगुनी कर 2 रुपए कर दी है। परफेटी वैन मेल ने एल्पेनलीबे जैसी अपनी अधिकतर कैंडी को 1 रुपए और इससे अधिक के प्राइस पर लांच किया है। इसके विपरीत भारतीय कंपनी पारले प्रॉडक्ट्स ने अपने प्रॉडक्ट्स के दाम नहीं बदले हैं।
मैंगो बाइट, मेलोडी और पॉपिन्स जैसे ब्रैंड्स की मालिक पारले प्रॉडक्ट्स के कैटिगरी हेड बी कृष्णा राव ने बताया, 'नोटबंदी के बाद कम डिनॉमिनेशन की काफी करंसी वापस सर्कुलेशन में आई है और इससे 50 पैसे की कीमत वाले प्रॉडक्ट्स की बिक्री बढ़ाने में मदद मिली है। हालांकि इसके साथ ही दुकानदारों से बकाया पैसे के बदले 1 रुपए की टॉफी लेने से कस्टमर्स अब इनकार करने लगे हैं।'