जड़ी-बूटियों और सुगंधित पौधों की खेती करके आमदनी बढ़ा रहे हैं किसान

Edited By jyoti choudhary,Updated: 14 Sep, 2018 11:59 AM

farmers earning as much as rs 3 lakh per acre by cultivating herbs

भारतीय किसानों का एक छोटा सा समूह 3 लाख रुपए प्रति एकड़ तक की कमाई कर रहा है। इस आंकड़े की अहमियत तब समझ में आती है जब आप गेहूं या धान की खेती करने वाले किसानों की कमाई से इसकी तुलना करें, जो 30,000 रुपए प्रति एकड़ से भी कम है।

नई दिल्लीः भारतीय किसानों का एक छोटा सा समूह 3 लाख रुपए प्रति एकड़ तक की कमाई कर रहा है। इस आंकड़े की अहमियत तब समझ में आती है जब आप गेहूं या धान की खेती करने वाले किसानों की कमाई से इसकी तुलना करें, जो 30,000 रुपए प्रति एकड़ से भी कम है। इन किसानों की इस शानदार कमाई के पीछे कुछ जड़ी-बूटियां और सुगंधित पौधे हैं, जिनका इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयां और पर्सनल केयर प्रॉडक्ट बनाने में होता है। इन आयुर्वेदिक दवाओं और पर्सनल केयर प्रॉडक्ट्स को डाबर, हिमालया, नैचरल रेमिडीज और पतंजलि जैसी कंपनियां बेचती हैं। 

इनमें से कई जड़ी-बूटियों के नाम विदेशी हैं। शहरी उपभोक्ताओं के लिए अतीश, कुठ, कुटकी, करंजा, कपिकाचु और शंखपुष्पी जैसी औषधियों के नाम की शायद ही कोई अहमियत हो लेकिन इन्होंने कई किसानों की कमाई के जरिए जिंदगी बदल दी है। एक आकलन के मुताबिक, देश में हर्बल प्रॉडक्ट्स का मार्केट करीब 50,000 करोड़ रुपए का है, जिसमें सालाना 15 प्रतिशत की दर से ग्रोथ हो रही है। जड़ी-बूटी और सुगंधित पौधों के लिए प्रति एकड़ बुआई का रकबा अभी भी इसके मुकाबले काफी कम है। हालांकि यह सालाना 10 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में कुल 1,058.1 लाख हेक्टेयर में फसलों की खेती होती है। इनमें सिर्फ 6.34 लाख हेक्टेयर में जड़ी-बूटी और सुगंधित पौधे बोए गए हैं। 

अतीश जड़ी-बूटी को उगानेवाले एक किसान को आसानी से 2.5 से 3 लाख रुपए प्रति एकड़ की आमदनी हो जाती है। अतीश का ज्यादातर इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाओं में होता है और इसे उगाने वाले किसान उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाके में हैं। लैवेंडर की खेती करनेवाले किसानों को आसानी से 1.2-1.5 लाख रुपए प्रति एकड़ मिल जाते हैं। 

जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के खेल्लानी गांव में रहनेवाले भारत भूषण ने बताया कि इसी कमाई के चलते उन्होंने मक्के की खेती छोड़कर लैवेंडर की खेती शुरू कर दी। भूषण ने 2 एकड़ से इसकी शुरूआत की थी। उनका कहना है कि नवंबर तक वह और 10 एकड़ में इसकी बुआई करेंगे। उन्होंने बताया, 'मैंने पहली बार 2000 में इसकी बुआई की थी। इस पर मिलने वाला रिटर्न मक्के पर मिलने वाले रिटर्न से चार गुना है।'

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