रियल एस्टेट पर GST की राह नहीं आसान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Oct, 2017 10:43 AM

gst is not easy on real estate

रियल एस्टेट को वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) के दायरे में लाने के लिए राह आसान नहीं है। इसमें उम्मीद से कहीं ज्यादा..

नई दिल्ली: रियल एस्टेट को वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) के दायरे में लाने के लिए राह आसान नहीं है। इसमें उम्मीद से कहीं ज्यादा वक्त लग सकता है। हालांकि अगले महीने गुवाहाटी में होने वाली बैठक में राज्यों के वित्त मंत्री इस पर चर्चा करेंगे। जी.एस.टी. परिषद से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि बैठक में इस बात पर चर्चा होगी कि नए अप्रत्यक्ष कर के दायरे में केवल जमीन लाई जाए या स्टांप शुल्क को भी इसमें शामिल किया जाए। इसके अलावा इस पर भी विचार किया जा सकता है कि इन दोनों को जी.एस.टी. के तहत लाने के लिए संविधान संशोधन की जरूरत है या केवल संबंधित कानूनों में बदलाव के जरिए ऐसा किया जा सकता है।

स्टांप शुल्क अधिनियम में संशोधन के लिए आधे राज्यों में पारित करवाना होगा
कानूनों में संशोधन के अलावा संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई मतों के साथ संविधान संशोधन की जरूरत होगी। मतभेद होने की स्थिति में सदन की संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं होगा। इसके साथ ही इस मामले में खासकर स्टांप शुल्क अधिनियम में संशोधन के लिए कम से कम आधे राज्यों में उसे पारित करवाना होगा। संपत्ति पर स्टांप शुल्क को जी.एस.टी. में लाने के लिए संविधान संशोधन की जरूरत पड़ सकती है क्योंकि यह राज्यों का मामला है। हालांकि एक विकल्प यह भी है कि राज्यों द्वारा स्टांप शुल्क को शून्य घोषित कर दिया जाए और इसे जी.एस.टी. के तहत लाने पर सहमति हो जाए लेकिन उन्होंने कहा कि राज्य ऐसा क्यों करेंगे। मौजूदा स्थिति में स्टांप शुल्क को जी.एस.टी. में शामिल करना अव्यावहारिक लगता है। सूत्रों ने कहा कि रियल एस्टेट को जी.एस.टी. में लाने के सभी पहलुओं पर विचार किया जाएगा।

वस्तु की परिभाषा में अचल सम्पत्ति का नहीं जिक्र
सूत्रों का कहना है कि इसके लिए संशोधन की जरूरत पड़ सकती है क्योंकि संविधान में वस्तु की जो परिभाषा दी गई है उसमें अचल संपत्ति को शामिल नहीं किया गया है। ‘वस्तुओं’ को वस्तु बिक्री अधिनियम, 1930 के तहत परिभाषित किया गया है जिसमें शेयर, फसल आदि सहित सभी तरह की चल संपत्ति शामिल हैं। ऐसे में जी.एस.टी. के तहत जमीन पर वस्तु संबंधी कर लगाने के लिए इसकी परिभाषा को बदलना होगा। इसके साथ ही स्टांप शुल्क एवं संपत्ति का रजिस्ट्री शुल्क राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता है और अगर इसे भी जी.एस.टी. में शामिल किया जाता है तो संविधान में संशोधन करना होगा।
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ग्राहकों की आकांक्षा रियल एस्टेट हो GST में शामिल
वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि इसके कई पहलू हैं। उदाहरण के तौर पर ग्राहकों की आकांक्षा है कि रियल एस्टेट को जी.एस.टी. में शामिल किया जाए और स्टांप शुल्क एवं रजिस्ट्रेशन को भी इसके दायरे में लाया जाए। उन्होंने कहा कि क्या राज्य ऐसा करने को इच्छुक होंगे। इससे राज्यों को आय प्राप्त होती है। ऐसे में क्या राज्य इसे गंवाना चाहेंगे। एक अन्य विकल्प यह हो सकता है कि स्टांप शुल्क इसमें लाए बिना जमीन और मकान दोनों के लिए अलग जी.एस.टी. बना दिया जाए। उन्होंने कहा कि लेकिन यह ग्राहकों के लिए एक अतिरिक्त विकल्प होगा।

प्रॉपर्टी की खरीद-बिक्री पर मिलेगा इनपुट क्रैडिट
जी.एस.टी. लिटिगेशन एक्सपर्ट अशोक बत्तरा कहते हैं, ‘‘जमीन और हर तरह की प्रॉपर्टी की खरीद-बिक्री पर जी.एस.टी. लगते ही इनपुट क्रैडिट भी मिलने लगेगा जो बायर या सेलर के लिए स्टाम्प ड्यूटी रिजीम के मुकाबले ज्यादा अहमियत रखता है। इससे लीगल प्रॉपर्टी ट्रांजैक्शन में तेजी आएगी और टैक्स बढ़ेगा।’’ यानी आप एक करोड़ का मकान खरीदते हैं तो 8 लाख रुपए स्टाम्प ड्यूटी देते हैं। यह जी.एस.टी. में तबदील हो जाए तो आप पहले 8 लाख जी.एस.टी. देंगे लेकिन जब उसे 1.5 करोड़ में बेचेंगे और मान लें कि 12 लाख जी.एस.टी. बनता है तो पहले दिया हुआ 8 लाख आपको इनपुट क्रैडिट के रूप में मिल जाएगा और आपकी देनदारी सिर्फ  4 लाख की होगी।

प्रॉपर्टी ट्रांजैक्शन पर बंद होगी टैक्स चोरी 
प्रॉपर्टी कन्सल्टैंट जी.एन. पुरोहित ने बताया कि दिल्ली जैसे महानगरों में बड़े पैमाने पर लोग प्रॉपर्टी खरीदकर कागज ले लेते हैं लेकिन रजिस्ट्री नहीं करवाते और उनमें से अधिकतर कुछ दिन प्रॉपर्टी होल्ड कर बेच भी देते हैं। ऐसे में सरकार को स्टाम्प शुल्क नहीं मिल पाता। प्रॉपर्टी ट्रांजैक्शन पर जी.एस.टी. के बाद जहां टैक्स चोरी बंद होगी वहीं इनपुट टैक्स क्रैडिट मिलने से खरीद-बिक्री में तेजी आएगी।
 

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