शहद निर्यात में नरमी से मधुमक्खी पालक किसान परेशानी में

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Mar, 2018 11:46 AM

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चालू वित्त वर्ष में देश का शहद निर्यात कम हो सकता है, ऐसा इसलिए होगा क्योंकि प्रमुख आयातक अमेरिका में मांग नरम है तथा दूसरे शहद निर्यातक देशों ने अमेरिका को सस्ती दरों माल देना शुरू किया है।

नई दिल्लीः चालू वित्त वर्ष में देश का शहद निर्यात कम हो सकता है, ऐसा इसलिए होगा क्योंकि प्रमुख आयातक अमेरिका में मांग नरम है तथा दूसरे शहद निर्यातक देशों ने अमेरिका को सस्ती दरों माल देना शुरू किया है। 

कम बरसात के कारण उठाना पड़ेगा खमियाजा  
राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के कार्यकारिणी सदस्य देवव्रत शर्मा ने बताया, "चालू वित्तवर्ष में देश में शहद का उत्पादन कम हुआ है क्योंकि कम बरसात के कारण फुलों में पुष्प रस (नेक्टर) कम रहा और फूल जल्दी सूख गए। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में शहद की कीमतें टूट गई हैं और अंतत: इसका खमियाजा मधुमक्खी पालकों को उठाना पड़ रहा है।

उन्होंने सरकार से मांग की कि शहद के उपभोग को बढ़ावा देने के लिए ‘संडे हो या मंडे खूब खाओ अंडे’ वाले अंडे के जैसा विज्ञापन अभियान चलाया जाना चाहिए। उनकी राय में इस प्रचार का सूत्र वाक्य हो सकता है ‘शुक्र हो या शनि, रोज खाओ हनी।’ 

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में शहद की कीमत कम
राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के अधिशासी निदेशक डा. बी एल सारस्वत ने कहा, "निर्यात के संदर्भ में ऐसी कोई समस्या नहीं है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत कम जरूर है जिससे यहां मधुमक्खी पालक किसानों को दाम कम मिल रहे हैं।" उन्होंने कहा, "वित्त वर्ष 2016-17 में 46,000 टन शहद का निर्यात हुआ था और उत्पादन लगभग 94,400 टन का हुआ था। अंतर्राष्ट्रीय बाजार की कीमत कम (इस बार 1,700 से 1,800 डॉलर प्रति टन) होने की वजह से निर्यातकों को वह कीमत नहीं मिल रही जो पिछले वर्ष मिली थी लेकिन कीमतों को तय करना अंतर्राष्ट्रीय बाजार की स्थिति पर निर्भर करता है जिसमें हम दखल नहीं दे सकते।"

शहद उत्पादक किसानों की हालत ठीक नहीं
राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के पूर्व अधिशासी निदेशक योगेश्वर सिंह ने कहा, "इस बार शहद उत्पादक किसानों की हालत ठीक नहीं है। उनका उत्पादन मौसम के कारण प्रभावित हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय कीमतें उन्हें आर्डर कम मिल रहे हैं।" उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने के बावजूद इस क्षेत्र में लगी एजेसिंयों की तैयारियां कम हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र के लिए कोई भी सशक्त राष्ट्रीय समन्वय करने वाली एजेंसी नहीं है। 

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