गेहूं पर आयात शुल्क फिर से लगाने पर हो रहा है विचार

Edited By ,Updated: 23 Mar, 2017 03:59 PM

imposing import duty on wheat is again considered

सरकार गेहूं पर आयात शुल्क फिर से लगाने पर विचार कर रही है...

नई दिल्ली: सरकार गेहूं पर आयात शुल्क फिर से लगाने पर विचार कर रही है ताकि देश में फसल के बम्पर उत्पादन के बाद किसानों के हितों की सुरक्षा की जा सके। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने आज राज्यसभा में किसानों की हालत पर सदस्यों द्वारा चिंता जताए जाने पर कहा कि वर्ष 2006 से 2015 के दौरान गेहूं पर आयात शुल्क शून्य था। वर्ष 2015 में गेहूं पर 25 फीसदी सीमा शुल्क लगाया गया जिसे बाद में घटा कर 10 फीसदी किया गया और पिछले साल दिसंबर में इसे पूरी तरह हटा दिया गया।

इस लिए हटाया गया था शुल्क
पासवान ने शून्यकाल में बताया कि यह शुल्क इसलिए हटाया गया क्योंकि ओलावृष्टि की वजह से फसल खराब हो गई थी और गेहूं के दाम बढ़ने की आशंका थी। उन्होंने कहा कि इस साल करीब 966 लाख टन फसल की पैदावार हुई है और 65 लाख टन का भंडार भी हमारे पास है। उन्होंने कहा कि सरकार ने ऐहतियात बरता और फिर से आयात शुल्क लगाने की जल्दबाजी नहीं की क्योंकि यह डर था कि ओलावृष्टि या बेमौसब बारिश से फसल खराब न हो जाए और फिर से संकट न पैदा हो जाए। पासवान ने कहा ‘‘सरकार आयात शुल्क बढ़ाने पर विचार कर रही है और इस बारे में जल्द ही निर्णय ले लिया जाएगा।’’

किसानों को हो रहा है घाटा
इससे पहले यह मुद्दा उठाते हुए सपा के रामगोपाल यादव ने कहा कि गेहूं की खरीद शुरू हो गई है और गुजरात तथा मध्यप्रदेश में किसान अपनी उपज को तय न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,625 रूपए प्रति क्विंटल से कम में बेचने के लिए मजबूर हैं और इसका कारण यह है कि सरकार गेहूं पर से शून्य आयात शुल्क हटाने पर कोई कदम नहीं उठा रही है। उन्होंने कहा कि किसानों को गेहूं की उत्पादन लागत 1,900 रूपए प्रति क्विंटल पड़ती है और वह न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम दाम पर अपनी उपज बेचने के लिए बाध्य हैं। इस तरह उन्हें वर्तमान न्यूनतम समर्थन पर करीब 300 रूपए का घाटा हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक आयात शुल्क नहीं लगाया जाएगा, किसानों की परेशानी कम नहीं होगी।
    

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