जानें रियल एस्टेट पर लागू किए गए Rera कानून की 10 मुख्य बातें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Oct, 2017 11:43 AM

learn about the 10 key things of rera law applied to real estate

अपने घर का सपना सभी का होता है, लेकिन कई बार बुकिंग कराने और पैसा चुकाने के बावजूद इस सपने के अपना होने में बरसों लग जाते हैं। इससे खरीदार पर दोहरी मार पड़ती है। एक तरफ तो उसे किराया देना पड़ता है, दूसरी ओर मासिक किस्त भी भरनी पड़ती है। यह स्थिति...

नई दिल्लीः अपने घर का सपना सभी का होता है, लेकिन कई बार बुकिंग कराने और पैसा चुकाने के बावजूद इस सपने के अपना होने में बरसों लग जाते हैं। इससे खरीदार पर दोहरी मार पड़ती है। एक तरफ तो उसे किराया देना पड़ता है, दूसरी ओर मासिक किस्त भी भरनी पड़ती है। यह स्थिति सालोंसाल बनी रहती है। खरीदार को राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने रेरा कानून पास किया है।

रेरा की मुख्य बातेंः
1. बिल्डर के लिए रेरा में रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है। खरीदार उसी प्रोजेक्ट में फ्लैट, प्लॉट या दुकान खरीदें, जो रेग्युलेटरी अथॉरिटी में रजिस्टर्ड हो। बिल्डर को अपना प्रोजेक्ट स्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी में रजिस्टर करना होगा। साथ में प्रॉजेक्ट से जुड़ी सभी जानकारी देनी होगी।

2. अगर बिल्डर किसी खरीदार से धोखाधड़ी करता है तो खरीददार इसकी शिकायत रेग्युलेटरी अथॉरिटी से कर सकेगा। ऐसे में अथॉरिटी के फैसले को बिल्डर को मानना होगा। अगर वह इसका उल्लंघन करता है तो उसे तीन साल की सजा हो सकती है।

3. बिचौलिए की भूमिका निभाने वाले रियल एस्टेट एजेंटों को भी अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इन्हें एक तय फीस भी रेग्युलेटर के पास जमा करनी होगी। अगर ये एजेंट खरीदार से झूठे वादे करने के दोषी पाए गए तो इन्हें एक साल तक की सजा हो सकती है।

4. हाउसिंग और कमर्शल प्रॉजेक्ट बनाने वाले डी.डी.ए., जी.डी.ए. जैसे संगठन भी इस कानून के दायरे में आएंगे यानी अगर डी.डी.ए. भी वक्त पर फ्लैट बनाकर नहीं देता तो उसे भी खरीदार को जमा राशि पर ब्याज देना होगा। यही नहीं, कमर्शल प्रॉजेक्ट्स पर भी रियल एस्टेट रेग्युलेटरी कानून लागू होगा।

5. अगर बिल्डर कोई प्रॉजेक्ट तैयार करता है तो उसके स्ट्रक्चर (ढांचे) की पांच साल की गारंटी होगी। अगर पांच साल में स्ट्रक्चर में खराबी पाई जाती है तो उसे दुरुस्त कराने का जिम्मा बिल्डर का होगा।
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6. खरीदार को सबसे ज्यादा दिक्कत प्रॉजेक्ट्स में देरी से होती है। अक्सर खरीदारों के पैसे को बिल्डर दूसरे प्रोजेक्ट में लगा देते हैं, जिससे पुराने प्रोजेक्ट लेट हो जाते हैं। रेरा के मुताबिक, बिल्डर्स को हर प्रॉजेक्ट के लिए अलग अकाउंट बनाना होगा। इसमें खरीदारों से मिले पैसे का 70 फीसदी हिस्सा जमा करना होगा, जिसका इस्तेमाल सिर्फ उसी प्रॉजेक्ट के लिए किया जा सकेगा।

7. बिल्डर को अथॉरिटी की वेबसाइट पर पेज बनाने के लिए लॉग-इन आईडी और पासवर्ड दिया जाएगा। इसके जरिए उन्हें प्रॉजेक्ट से जुड़ी सभी जानकारी वेबसाइट पर अपलोड करनी होगी। हर तीन महीने पर प्रॉजेक्ट की स्थिति का अपडेट देना होगा।

8. रेरा के तहत सिर्फ नए लांच होने वाले प्रॉजेक्ट्स ही नहीं आएंगे, बल्कि पहले से जारी प्रॉजेक्ट्स भी इसमें आएंगे। बिना कंप्लीशन सर्टिफिकेट वाले डिवेलपर्स को सारी जानकारी सार्वजनिक करनी होगी। मसलन वास्तविक सैंक्शन प्लान, बाद में किए गए बदलाव, कुल जमा धन, पैसे का कितना इस्तेमाल हुआ, प्रॉजेक्ट पूरा होने की वास्तविक तारीख क्या थी और कब तक पूरा कर लिया जाएगा।

9. बिल्डर अडवांस या आवेदन शुल्क के रूप में 10 फीसदी से ज्यादा रकम नहीं ले सकेंगे, जब तक कि बिक्री के लिए रजिस्टर्ड अग्रीमेंट न हो जाए।

10. अगर खरीदार को वक्त पर पजेशन नहीं मिलता है तो खरीदार अपना पूरा पैसा ब्याज समेत वापस ले सकता है या फिर पजेशन मिलने तक हर महीने ब्याज ले सकता है।

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