बचाव पक्ष का दावा, बैंकों ने ठुकराई थी माल्या की यह पेशकश

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Dec, 2017 10:36 AM

mallya offer to return a portion of the loan was rejected by banks

ब्रिटेन में प्रत्यर्पण से जुड़ी सुनवाई के दौरान विजय माल्या के बचाव पक्ष ने दावा किया कि भारतीय स्टेट बैंक की अगुवाई में बैंकों के समूह ने इस शराब कारोबारी की उस पेशकश को ठुकरा दिया था जिसमें उसने कर्ज की करीब 80 फीसदी राशि लौटाने की बात की थी। इस...

लंदनः ब्रिटेन में प्रत्यर्पण से जुड़ी सुनवाई के दौरान विजय माल्या के बचाव पक्ष ने दावा किया कि भारतीय स्टेट बैंक की अगुवाई में बैंकों के समूह ने इस शराब कारोबारी की उस पेशकश को ठुकरा दिया था जिसमें उसने कर्ज की करीब 80 फीसदी राशि लौटाने की बात की थी। इस पर भारत सरकार की ओर से दलील पेश कर रही ‘क्राउन प्रोसेक्यूशन सर्विस’ (सीपीएस) ने प्रतिवाद करते हुए संकेत दिया कि ऐसे प्रस्ताव को ठुकराने का कारण यह था कि बैंकों को पता था कि संपूर्ण बकाए के भुगतान के लिए माल्या के पास साधन हैं।

लंदन में चल रही है सुनवाई
माल्या के वकील क्लेयर मोंटगोमरी ने सवाल किया कि क्या छह अप्रैल, 2017 को करीब 4,4000 रुपए वापस करने की उनके मुवक्किल की पेशकश को एक दिन ही बाद ही बैंकों द्वारा ठुकराया जाना चाहिए था। ब्रिटेन की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत में यह सुनवाई चल रही है। इस सुनवाई का फैसला तय करेगा कि माल्या को वापस भारत भेजा जाना चाहिए या नहीं,  जहां वह 9,000 करोड़ रुपए के धन शोधन और बैंकों के साथ धोखाधड़ी के मामलों में वांछित हैं। माल्या के बचाव में बैंकिंग विशेषज्ञ को एक गवाह के तौर पर पेश किया गया। बैंकिंग विशेषज्ञ पॉल रेक्स ने अपनी दलील में इस बात पर जोर दिया कि वास्तव में माल्या का ‘धोखाधड़ी’ करने का कोई इरादा नहीं था।  बैंकिंग विशेषज्ञ पॉल रेक्स, जिनके बारे में बताया गया कि उनका बैंकिंग क्षेत्र में 20 साल से अधिक का अनुभव है। उन्हें सुनवाई के तीसरे दिन अदालत में पेश किया गया।

पॉल रेक्स ने किया माल्या का बचाव
माल्या की वकील क्लेयर मोंटगोमरी ने अपनी दलीलों को पेश करते हुए कहा कि भारत सरकार की ओर से पेश हुई क्राउन प्रोसीक्यूशन सर्विस (सीपीएस) उनके मुवक्किल पर दायर मामले को प्रथम दृष्टया धोखाधड़ी का मामला स्थापित करने में विफल रही है। उधर, रेक्स की दलील के मुताबिक माल्या की धोखाधड़ी करने की कोई मंशा नहीं थी। जबकि सीपीएस की दलील थी कि माल्या ने जो कर्ज लिया उसे चुकाने की उसकी मंशा  नहीं थी क्योंकि उनकी विमानन कंपनी का बंद होना अपरिहार्य हो गया था। क्लेयर ने यह स्थापित करने की कोशिश की कि किंगफिशर के बंद होने में परिस्थितियां जिम्मेदार रहीं क्योंकि 2009 से 2010 के बीच वैश्विक आर्थिक मंदी का दौर रहा था और कंपनी का बंद होना कंपनी के नियंत्रण से बाहर होने का परिणाम था। 

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