नोटबंदी से दूध की खरीदारी में 2-3% की गिरावट

Edited By ,Updated: 16 Jan, 2017 02:26 PM

milk purchase declined by 2 3

बैंकिंग व्यवस्था में नकदी की कमी ने किसानों को असंगठित क्षेत्र के भागीदारों को दूध बेचने पर विवश कर दिया है।

नई दिल्लीः बैंकिंग व्यवस्था में नकदी की कमी ने किसानों को असंगठित क्षेत्र के भागीदारों को दूध बेचने पर विवश कर दिया है। आमतौर पर जोरदार रहने वाले सर्दी के महीनों में भी खरीद की दर ठंडी पड़ गई है। देश के सबसे बड़े गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) समेत इस क्षेत्र के अधिकांश भागीदारों का कहना है कि सामान्य रूप से ठंड के महीनों में 10 प्रतिशत तक तेज रहने वाली खरीद की दर में 2-3 प्रतिशत की गिरावट आई है।

दैनिक जरूरतें पूरी करना हुआ मुश्किल
गुजरात के आणंद जिले में नगाड़ा गांव के एक डेयरी किसान सुनील पटेल बताते हैं कि उनके गांव में किसान नकद भुगतान के लिए अपने हिस्से का दुग्ध उत्पाद असंगठित क्षेत्र के भागीदारों (स्थानीय दुकानदारों) को बेच रहे हैं। जीसीएमएमएफ बैंकों के जरिए भुगतान कर रहा है और इस बैंकिंग व्यवस्था में नए-नए आए किसान न केवल हत्प्रभ हैं, बल्कि अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसा निकालने में भी परेशानी महसूस कर रहे हैं।

किसानों को लाखों का घाटा
50 दिनों की अवधि के बाद भी जारी नकदी की किल्लत ने किसानों को अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए स्थानीय असंगठित भागीदारों को दूध बेचने के लिए विवश किया है। पटेल बताते हैं कि मुझे अपने फार्म के लिए हरा चारा खरीदने के लिए ही हर साल करीब 14-15 लाख रुपए की जरूरत पड़ती है। हालांकि फेडरेशन हमें पशुओं का चारा उपलब्ध कराता है जिसे दूध के भुगतान में समायोजित कर दिया जाता है, इसलिए हमें हरे चारे के लिए खुद ही इंतजाम करना पड़ता है। पटेल के मुताबिक जिस वक्त किसानों ने नकद भुगतान के लिए चिल्लाना शुरू किया जो प्रति माह एक लाख होता है तो उनके लिए भी पशुओं को खिलाना मुश्किल हो गया। इसलिए उन्होंने अपने पशुओं को अलग-अलग खरीदारों को बेचने का फैसला किया और वे इस सौदे से 40 लाख रुपए के घाटे का दावा करते हैं।

पिछले साल की तुलना में बढ़ी दूध की खरीदारी
जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक आरएस सोढी ने कहा कि किसानों के खातों में पैसा स्थानांतरित करने की प्रक्रिया जारी है और ग्रामीण दुग्ध मंडली (सोसायटी) प्रमुख उन किसानों का भुगतान ले सकते हैं जिनके पास बैंक खाते नहीं हैं और व्यक्तिगत रूप से उन्हें भुगतान कर सकते हैं। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि इस साल खरीद की वृद्धि करीब 2-3 प्रतिशत है जबकि अन्य वर्षों में यह 10 प्रतिशत या इसके आस-पास रही है। दूसरी ओर नैशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) ने बताया कि देश में कॉओपरेटिव द्वारा दूध खरीद पिछले साल की समान अवधि की तुलना में नवंबर 2016 में करीब एक प्रतिशत तक बढ़ी है। दरअसल दक्षिण में स्थिति कुछ बेहतर है। वहां के संगठित भागीदारों का दावा है कि वे काफी पहले से ही बैंक के जरिए भुगतान करने लगे हैं।

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