जीरा निर्यातकों पर नहीं पड़ा नोटबंदी का असर

Edited By ,Updated: 06 Jan, 2017 03:33 PM

notbandi had no impact on exporters of cumin

कपास और मूंगफली के निर्यातकों को नोटबंदी से उपजे नकदी संकट के कारण निर्यात के अपने ऑर्डर पूरा करने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है

नई दिल्लीः कपास और मूंगफली के निर्यातकों को नोटबंदी से उपजे नकदी संकट के कारण निर्यात के अपने ऑर्डर पूरा करने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन जीरा उत्पादकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। जीरा निर्यातकों के मुताबिक नया सत्र मार्च से शुरू होने की संभावना है लेकिन किसानों ने डिजिटल तरीके से भुगतान लेना शुरू कर दिया है। इससे आपूर्ति सुनिश्चित हो गई है। जैब्स इंटरनैशनल के प्रबंध निदेशक भास्कर शाह ने कहा, 'संभव है कि जीरा निर्यातकों को नकदी संकट के कारण वैसी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा जैसी दिक्कतें कपास, मूंगफली और अन्य जिंसों के निर्यातकों को आ रही हैं। जीरे का नया सीजन मार्च से शुरू होगा और संभव है कि तब तक जीरा निर्यातक जरूरी माल जुटा लेंगे।'

कीमत में बढ़ौतरी
जीरा उद्योग के आंकड़ों के मुताबिक भारत ने अप्रैल से दिसंबर तक 1,00,000 टन जीरे का निर्यात किया और अगले दो महीनों में 20,000 टन अतिरिक्त निर्यात हो सकता है। 2015-16 में कुल 98,000 टन जीरे का निर्यात किया था। फिलहाल किसान बड़ी मात्रा में कपास और मूंगफली नहीं बेच रहे हैं जिससे मंडियों में इन दोनों उत्पादों की आवक में करीब 40 फीसदी की कमी आई है। पिछले कुछ दिनों से जीरे की आवक में भी कमी आई है जिससे इसकी कीमतों में बढ़ौतरी हुई है। लेकिन इसका कारण कम उत्पादन है, नकदी संकट नहीं। ऐंजल कमोडिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक हाजिर बाजार में अच्छी मांग के कारण जीरे को वायदा कारोबार में गुरुवार को लगातार दूसरे सत्र में भी इसकी कीमत ऊंची चल रही थी। निर्यात की मांग ने जीरे की कीमतें बढ़ाई हैं। जीरे की बुआई भी अच्छी चल रही है।

मौसम ने भी दिया साथ
स्टर्लिंग एक्सपोट्र्स इंक के प्रबंध निदेशक गिरीश ब्रह्मभट्ट ने कहा, 'अब तक अच्छी बुआई हुई है और मौसम भी जीरे की फसल के लिए बेहतर बना हुआ है। निर्यातक ज्यादा मात्रा में जीरा नहीं खरीद रहे हैं और नई फसल का इंतजार कर रहे हैं। मौजूदा रुझान को देखते हुए शायद खरीदार जोखिम नहीं लेना चाहेंगे और नए सत्र की शुरुआत में मांग धीमी होगी।' गुजरात कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 23 दिसंबर तक जीरे का रकबा 267,100 हेक्टेयर था जो पिछले साल की तुलना में महज 0.44 फीसदी कम है। पिछले साल इस अवधि के दौरान 268,300 हेक्टेयर में जीरे की बुआई हुई थी।

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