सब्जियों की कीमतें 80% तक गिरीं

Edited By ,Updated: 21 Dec, 2016 11:42 AM

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देश में नोटबंदी के कारण किसानों की हालत पतली होती जा रही है। उनको अपनी फसल की कीमत लागत से भी कहीं कम मंडियों में मिल रही है, जिस कारण वे फसल को खेतों में ही नष्ट करने को मजबूर हैं

नई दिल्ली: देश में नोटबंदी के कारण किसानों की हालत पतली होती जा रही है। उनको अपनी फसल की कीमत लागत से भी कहीं कम मंडियों में मिल रही है, जिस कारण वे फसल को खेतों में ही नष्ट करने को मजबूर हैं इसकी एक मिसाल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद शहर में मिलती है। यहां रामगंगा नदी के किनारे रामचंद्र साहनी के 20 बीघा खेत में बंद गोभी की फसल खड़ी है। रामचंद्र इस खेत को गोभी सहित ही जोतकर गेहूं की फसल बोने की तैयारी कर रहे हैं लेकिन इससे पहले उन्होंने गोभी अपने आस-पड़ोस में बांटने और पशुओं को खिलाने के लिए जरूर तोड़ ली है। जी हां, रामचंद्र अब इससे ज्यादा कर भी कुछ नहीं सकते। उन्हें इस खेत से लगभग 3 लाख रुपए की कमाई होने की संभावना थी लेकिन नोटबंदी से हालात यहां तक पहुंच गए कि लागत खर्च भी निकलना मुश्किल हो गया है।

रामचंद्र का कहना है कि नोटबंदी के आदेश से पहले एक बोरी गोभी (80 किलो) मुरादाबाद और रामपुर मंडी में 800 से 900 रुपए तक बिक रही थी लेकिन जैसे ही 1000-500 रुपए के नोट बंद हुए मंडियों में कारोबार ठप्प हो गया। उन्होंने कहा कि वे पिछले सप्ताह जब एक ट्रॉली गोभी लेकर मुरादाबाद मंडी पहुंचे तो उनकी गोभी के 100 रुपए प्रति बोरी ही दाम लग सके। कुल 30 बोरी गोभी को उन्होंने 2600 रुपए में बेचा।

कोल्ड स्टोरेज पर गरीबों को बांटा जा रहा आलू
उत्तर प्रदेश में मथुरा, आगरा जिलों में कई कोल्ड स्टोरेज मालिकों ने आलू को मुफ्त बांटने की स्कीम चलाई है। मालिकों का कहना है कि किसानों के पास पिछला आलू निकालने के लिए पैसा नहीं है। लिहाजा वे नया आलू स्टोर में रखकर गरीबों को मुफ्त में आलू बांट रहे हैं। मथुरा के कोल्ड स्टोर मालिक बिरेश अग्रवाल ने बताया कि आलू के सडऩे से अच्छा है गरीबों को बांट दिया जाए।

नोटबंदी की मार सब्जियों के किसानों पर
मुरादाबाद के रामचंद्र सिर्फ  उदाहरण मात्र हैं। पूरे भारत में नोटबंदी के बाद अगर किसी पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है तो वे सब्जियों के किसान हैं। गोभी, बैंगन, धनिया, टमाटर आदि सब्जियों की कीमतें फैसले के 40 दिनों बाद भी 80 प्रतिशत तक गिरी हुई हैं। किसान अब इन्हें खेत में सड़ाना ही मुनासिब समझ रहे हैं।

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