Edited By ,Updated: 07 Feb, 2017 04:07 PM
सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों का प्रस्तावित विलय इस क्षेत्र में व्याप्त अक्षमताओं को कम कर सकता है और एक एेसी नई कंपनी खड़ी हो सकती है
नई दिल्ली: सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों का प्रस्तावित विलय इस क्षेत्र में व्याप्त अक्षमताओं को कम कर सकता है और एक एेसी नई कंपनी खड़ी हो सकती है जो कि संसाधनों के लिहाज से वैश्विक स्तर पर बेहतर प्रतिस्पर्धा कर सकती है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने आज यह कहा है।
रेटिंग एजेंसी ने एक वक्तव्य में कहा है, ‘‘इस विलय को अमल में लाना काफी चुनौतीपूर्ण है, खासतौर से एकजुट कर्मचारियों का प्रबंधन करना, विलय के बाद बनने वाली कंपनी में अधिक क्षमता की समस्या का समाधान और निजी क्षेत्र के शेयरधारकों से विलय के लिए समर्थन हासिल करना मुख्य चुनौतियां हैं।’’
एजेंसी के मुताबिक 12 साल से अधिक समय पहले तत्कालीन पैट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर ने सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के विलय का प्रस्ताव किया था। अब वित्त मंत्री अरुण जेतली ने अपने 2017-18 के बजट में एक एकीकृत सार्वजनिक तेल कंपनी बनाने का प्रस्ताव शामिल किया है। एेसी तेल कंपनी जो कि अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर तेल और गैस क्षेत्र की कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा कर सके।
फिच का कहना है कि ज्यादातर एशियाई देशों में समूचे तेल क्षेत्र में काम करने वाली राष्ट्रीय स्तर की केवल एक कंपनी है जबकि भारत में 18 तेल सरकारी कंपनियां हैं। इनमें कम से कम 6 बड़ी कंपनियां हैं। ऑयल इंडिया लिमिटेड, इंडियन ऑयल कार्पोरेशन, भारत पैट्रोलियम कार्पोरेशन, हिन्दुस्तान पैट्रोलियम कार्पोरेशन और आेएनजीसी कुछ बड़े नाम इनमें शामिल हैं।
एजेंसी ने कहा है कि विलय के बाद बनने वाली कंपनी को लागत कम करने और संचालन क्षमता बढ़ाने का अवसर मिलेगा। एजेंसी के अनुसार एक ही क्षेत्र में विभिन्न कंपनियों के अलग अलग खुदरा बिक्री केन्द्र रखने की कोई जरूरत नहीं है। खुदरा केन्द्रों के लिए नजदीकी रिफाइनरी से उत्पादों की आपूर्ति हो सकेगी जिससे परिवहन लागत कम होगी। फिच ने विलय की चुनौतियों पर कहा है कि सभी सूचीबद्ध कंपनियां हैं जिनमें सार्वजनिक शेयरभागीदारी 51 से लेकर 70 प्रतिशत तक हैं। एेसे में विलय के लिए 75 प्रतिशत शेयरधारकों से मंजूरी लेना मुश्किल काम है। विलय के फैसले पर शेयरधारकों की मंजूरी लेनी होती है। विलय के बाद पैट्रोलियम क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा घटने के सवाल से कैसे निपटा जाएगा यह भी देखने की बात है।