राजन पर हमलों, एमपीसी और नोटबंदी के नाम रहा RBI का साल

Edited By ,Updated: 03 Jan, 2017 01:15 PM

rbi  raghuram rajan

भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) के लिए वर्ष 2016 मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के गठन, नोटबंदी तथा पूर्व गवर्नर रघुराम राजन पर राजनीतिक हमलों

नई दिल्लीः भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) के लिए वर्ष 2016 मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के गठन, नोटबंदी तथा पूर्व गवर्नर रघुराम राजन पर राजनीतिक हमलों और नए गवर्नर की नियुक्ति जैसी घटनाओं और बदलावों से भरा रहा। 

एमपीसी के गठन से एक ओर जहां हमेशा के लिए नीतिगत दरों पर आर.बी.आई. गवर्नर का एकाधिकार समाप्त हो गया वहीं दूसरी ओर संभवत: यह पहली बार है जब केंद्रीय बैंक के गवर्नर को इस कदर राजनीतिक हमलों का निशाना बनाया गया। साल के आखिरी दो महीने नोटबंदी के नाम रहे जब आर.बी.आई. नोट छापने, उन्हें जारी करने, ए.टी.एम. के कैलिब्रेशन और एक के बाद एक नए नियम जारी करने और फिर उन्हें बदलने में व्यस्त रहा। नोटबंदी के बीच केंद्रीय बैंक के काम की कड़ी आलोचना भी हुई। इन सबके बीच श्री राजन तथा वर्तमान गर्वनर उर्जित पटेल ने एक-एक बार प्रमुख नीतिगत दर रेपो रेट में चौथाई फीसदी की कटौती भी की।  

आर.बी.आई. ने गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के संबंध में बैंकों की बैलेंसशीट की सफाई का जो काम शुरू किया था उसमें बीते साल और प्रगति हुई। बैंकिंग तंत्र को मजबूत बनाने तथा अधिक से अधिक लोगों को बैंकिंग सुविधा से जोडऩे के लिए नियमों में कई बदलाव किए गए। आर.बी.आई. में सबसे बड़ा बदलाव बीते साल अक्तूबर में आया। सरकार ने पहले ही एलान कर दिया था कि नीतिगत दरों पर फैसले के बारे में गवर्नर के अधिकार कम किए जाएंगे तथा छह सदस्यीय एमपीसी का गठन करके यह अधिकार उसे सौंपा जाएगा। 

हालांकि, बाद में सरकार ने बराबर वोटिंग की स्थिति में वीटो का अधिकार गवर्नर को देने का सुझाव मान लिया। इस प्रकार राजन पूरे एकाधिकार के साथ नीतिगत दरों पर फैसला करने वाले आर.बी.आई. के अंतिम गवर्नर रहे। उन्होंने सितंबर में सेवानिवृत्त होने से पहले अगस्त में अपनी अंतिम मौद्रिक एवं ऋण नीति समीक्षा पेश की। इससे पहले अप्रैल में उन्होंने रेपो दरों में 0.25 प्रतिशत की कटौती की तथा रिवर्स रेपो दर 0.25 प्रतिशत बढ़ाया था।

पटेल ने 04 सितंबर को राजन के जगह पदभार संभाला और अक्तूबर की समीक्षा एमपीसी ने पेश की। इसमें रेपो तथा रिवर्स रेपो दरों समेत सभी नीतिगत दरों में 0.25 प्रतिशत की कमी की गई थी। इस प्रकार वर्ष 2015 में रेपो दर में 1.25 प्रतिशत की कटौती के बाद बीते साल इसमें 0.50 प्रतिशत की कटौती की गई।   

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