भूमि अधिग्रहण के आदेशों को लेकर विवादः SC ने संविधान पीठ गठित की

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Feb, 2018 11:19 AM

sc issues constitutional bench to dispute over land acquisition orders

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में विभिन्न पीठ के परस्पर विरोधी दृष्टिकोण से उठे विवाद के परिप्रेक्ष्य में छह मार्च को सारे मसले पर विचार करेगी। इस प्रकरण में भूमि अधिग्रहण के मामले में तीन सदस्यीय एक पीठ ने...

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में विभिन्न पीठ के परस्पर विरोधी दृष्टिकोण से उठे विवाद के परिप्रेक्ष्य में छह मार्च को सारे मसले पर विचार करेगी। इस प्रकरण में भूमि अधिग्रहण के मामले में तीन सदस्यीय एक पीठ ने ‘न्यायिक अनुशासन’ और शुचिता के प्रति चिंता व्यक्त की थी।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा इस संविधान पीठ की अध्यक्षता करेंगे। पीठ के अन्य सदस्यों मे न्यायमूर्ति ए.के. सिकरी, न्यायमूर्ति ए.एम.खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं। यह मामला 21 फरवरी को उस समय सुर्खियों में आया जब न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने शीर्ष अदालत की एक अन्य तीन सदस्यीय पीठ के आठ फरवरी के आदेश पर एक तरह से रोक लगा दी थी जिसमें व्यवस्था दी गई थी कि यदि पांच साल की अवधि के भीतर मुआवजा नहीं लिया जाता है तो यह भूमि अधिग्रहण रद्द करने का आधार नहीं हो सकता है।

न्यायमूर्ति लोकूर की अध्यक्षता वाली पीठ ने 21 फरवरी को टिप्पणी की कि इस निष्कर्ष पर पहुंचते समय शायद न्यायिक अनुशासन के साथ छेड़छाड़ की गई है क्योकि 2014 में एक अन्य तीन सदस्यीय खंडपीठ द्वारा सुनाए गए फैसले से इत्तेफाक नहीं रखने के कारण इस मामले को वृहद पीठ के पास भेजा जाना चाहिए था। 2014 में तीन सदस्यीय खंडपीठ ने अपनी व्यवस्था में कहा था कि निर्धारित अवधि में मुआवजे का भुगतान नहीं करना भूमि अधिग्रहण रद्द करने का आधार हो सकता है। इसके अगले ही दिन दो सदस्यीय पीठ के समक्ष भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक अन्य मामला आया तो उसने 21 फरवरी के आदेश से उत्पन्न विचित्र स्थिति के मद्देनजर उचित पीठ गठित करने के लिए इसे प्रधान न्यायाधीश के पास भेज दिया। कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ का 2014 का फैसला आम सहमति से सुनाया गया था जबकि आठ फरवरी का निर्णय बहुमत का था।

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