Edited By ,Updated: 14 Mar, 2016 10:34 AM
दूरसंचार उद्योग के संगठन सीआेएआई ने कहा है कि वित्त विधेयक 2016 में स्पेक्ट्रम आवंटन को सेवाओं के दायरे में लाए जाने से दूरसंचार कंपनियों पर 77,000 करोड़ रुपए का कर बोझ बढ़ जाएगा।
नई दिल्ली: दूरसंचार उद्योग के संगठन सीआेएआई ने कहा है कि वित्त विधेयक 2016 में स्पेक्ट्रम आवंटन को सेवाओं के दायरे में लाए जाने से दूरसंचार कंपनियों पर 77,000 करोड़ रुपए का कर बोझ बढ़ जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि इस बोझ को उपभोक्ताओं पर डाला गया तो ग्राहकों को ऊंची शुल्क दरें चुकानी पड़ सकतीं हैं।
सेल्यूलर आपरेटर्स एसोसियेशन ऑफ इंडिया (सीआेएआई) ने आगे कहा कि इस कदम का सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम और वित्तीय समावेश योजना पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उद्योग ने सरकार से इन कर प्रस्तावों पर पुनर्विचार करने और प्रस्तावित आयकर प्रावधान के बारे में स्पष्टीकरण देने को कहा है।
सीआईएआई ने एक वक्तव्य में कहा, ‘स्पेक्ट्रम आवंटन पर सेवा कर लगाने का मतलब है कि जून-जूलाई में होने वाली नीलामी में जहां आरक्षित मूल्य 5.&6 लाख करोड़ रुपए है, उद्योग को कम से कम 77,000 करोड़ रुपए सेवाकर के रूप में देना पड़ सकता है। दूरसंचार उद्योग जो कि पहले ही कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है उस पर यह काफी बड़ा वित्तीय बोझ होगा।’
वित्त विधेयक 2016 में स्पेक्ट्रम आवंटन और उसके बाद उसके हस्तांतरण को वित्त अधिनियम 1994 की धारा 66ई के तहत सेवा घोषित किया जाता है। इसमें कहा गया है कि सभी सरकारी सेवाओं को सेवाकर के योग्य बनाया जाता है और सेवायें लेने वाले को एक अप्रैल 2016 से इनका भुगतान करना होगा। सीआेएआई ने कहा है कि यदि इस बोझ को ग्राहक पर डाला गया तो न केवल टेलीफोन सेवाएं महंगी होंगी बल्कि सरकार की डिजिटल इंडिया पहल पर भी बुरा असर पड़ेगा।