PGI मरीजों के लिए गुरुद्वारा साहिब बना उम्मीद की किरण, 4000 लोग खाते भरपेट खाना व गुजारते रात

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Jul, 2017 12:05 PM

4000 people eat food and spend the night in pgi gurudwara sahib

जीने की आस लिए भारत के कोने-कोने से आने वाले मरीजों के लिए पी.जी.आई. परिसर में बना गुरुद्वारा साहिब उम्मीद की किरण बना हुआ है, जहां गरीबों के लिए रहने व खाने का इंतजाम बिना कोई पैसे लिए किया जाता है।

चंडीगढ़(रवि) : जीने की आस लिए भारत के कोने-कोने से आने वाले मरीजों के लिए पी.जी.आई. परिसर में बना गुरुद्वारा साहिब उम्मीद की किरण बना हुआ है, जहां गरीबों के लिए रहने व खाने का इंतजाम बिना कोई पैसे लिए किया जाता है। हर दिन 24 घंटे यहां का चूल्हा जलता रहता है, जहां सुबह-शाम 4000 लोग खाना खाते हैं व रात गुजारते हैं। गुरु की ऐसी कृपा इस गुरुद्वारा साहिब पर बानी हुई है कि एक भी दिन यहां राशन की कमी महसूस नहीं हुई। 

 

मरीज पी.जी.आई. में इलाज के लिए तो आ जाता है लेकिन इसके बाद शुरू होती जीने की वह जद्दोजहद जिसमें मरीज का कई बार सब कुछ खत्म हो जाता है, ऐसे में इंसान की पहली जरूरत खाना तक उसे नसीब नहीं हो पाता। इन्हीं लोगों की सहायता पी.जी.आई. में मौजूद गुरुद्वारा पिछले 32 वर्षों से कर रहा है। गुरुद्वारे के दरवाजे हर शख्स के लिए दिन-रात खुले रहते हैं। 

 

वर्ष 1985 में पी.जी.आई. गुरुद्वारे की नींव रखी गई थी, जिसके मुख्य प्रंबधक संत बाबा सेवा सिंह, संत बाबा भाग सिंह व मौजूदा प्रबंधक संत बाबा लाभ सिंह हैं। पी.जी.आई. में आने वाले गरीब लोगों को ठहरने व खाने की कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता था जिसे देखते हुए पांच प्यारों ने इस गुरुद्वारे की नींव रखी थी। गुरुद्वारे से रखी नींव के बाद आज यहां दो डबल स्टोरी सरायों की इमारत बनाई जा चुकी है, जहां एक साथ 5 हजार से ज्यादा लोग रहते हैं।   

 

25 सेवादार, 24 घंटे लंगर :
गुरुद्वारे में इस वक्त 25 सेवादार अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सुबह 4 बजे चूल्हे पर चढ़ी कढ़ाई पर 24 घंटे खाना बनता है, जहां किसी को भी खाने की मनाही नहीं है। सुबह 4 बजे चाय ब्रेड से शुरू होकर खाना बनाने की जिम्मेदारी यहां पर मौजूद संगत पर होती है। गुरुद्वारे में कितनी बड़ी संख्या में लोग आते हैं इसका अंदाजा इस बात से साफ लगाया जा सकता है कि 3 क्विंटल आटा व चावल रोजाना की खपत है। 

 

सेवादार तरसेम सिंह की मानें तो गुरुद्वारा लोगों की सेवा के लिए दिन-रात खुला रहता है फिर चाहे लंगर खाना हो या सराय में ठहरना। लोग बड़ी संख्या में यहां राशन दान कर जाते हैं, इसलिए कभी यहां राशन की कमी नहीं रहती। 

 

सेवादारों की मानें तो बाबा जी की मेहर इस गुरुद्वारे पर है जिसकी बदौलत यहां चूल्हा हमेशा जलता रहता है, अगर कभी राशन की कमी हो तो आनंदपुर साहिब से यहां के लिए राशन मंगवा लिया जाता है। सेवादार तरसेम सिंह की मानें तो महीने या दो महीनों में एक ट्रक राशन आनंदपुर साहिब से आता है जिसमें एक महीने के राशन की व्यवस्था होती है। 

 

वहीं अगर गुरुद्वारे में चढ़ावे की बात करें तो लगभग 2 लाख सिर्फ गुरुद्वारे में आता है जिसे गुरुद्वारे की सेवा में लगाया जाता है। गुरुद्वारे में फिलहाल 2 सराय है जिसमें एक डबल स्टोरी है जो वर्ष 1994 में बनी थी, वहीं दूसरी सराय ट्रिपल स्टोरी है जिसका निर्माण कार्य चल रहा है। यहां आने वाले लोगों से सराय में ठहरने का कोई पैसा नहीं लिया जाता है। 

 

जिनका इलाज लंबा चलता है, वह गुरुद्वारे में रह रहेे हैं :
गुरुद्वारे में मरीजों का आना-जाना रोजाना लगा रहता है, इन सबके बीच कई मरीज ऐसे भी होते हैं जिनका इलाज लंबा चलता है, वह लोग परिवार सहित गुरुद्वारे में रह रहेे हैं। किडनी, कैंसर व दूसरी कई गंभीर बीमारियों के लिए पी.जी.आई. का यह गुरुद्वारा मरीजों की आर्थिक रूप से भी मदद करता है। फिलहाल यहां ऐसे करीब 1500 मरीज हैं जिनकी दवाइयों का खर्चा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी उठा रही है। 

 

गुरुद्वारा सिर्फ आर्थिक मदद या लंगर तक ही सीमित नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से गुरुद्वारे की बदौलत कई बच्चे पढ़-लिख भी पा रहे हैं, ऐसे करीब 70 बच्चे सैक्टर-15 के गवर्नमैंट स्कूल में पढ़ रहे हैं। दूसरी, तीसरी व दसवीं में पढऩे वाले इन बच्चों के साथ ही कुछ बच्चे ऐसे हैं जो गुरुद्वारे की मदद से कालेज या प्रोफैशनल कोर्स कर रहे हैं। इंद्रप्रीत सिंह चड्ढा वह शख्स हैं जो पिछले कई वर्षों से पी.जी.आई. गुरुद्वारे में आने वाले मरीजों को दवाइयों व यहां आने बच्चों को एजुकेशन की मदद कर रहे हैं।  

 

25 वर्षों से गरीबों की शादी भी करवा रहे हैं सेवादार तरसेम :
सेवादार तरसेम सिंह ने बताया कि पिछले 25 वर्षों से बाबा जी की कृपा से वह आॢथक तौर पर मजबूर परिवारों के बच्चों के शादी करवा रहे हैं। आनंदपुर साहिब हर वर्ष ऐसे 30 जोड़ों की शादी करवाई जाती है। यह गुरुद्वारा किसी वरदान से कम नहीं या यूं कहें कि गुरु का वह घर जहां आने के लिए किसी को कोई मनाही नहीं। 


2 वर्षों से पी.जी.आई. का गुरुद्वारा ही बना घर :

 

कुछ यूं बांटा लोगों ने अपना दर्द :
झारखंड की रहने वाली पूनम 2 वर्ष पहले अपने पति अवध किशोर के इलाज के लिए पी.जी.आई. आई थी लेकिन इलाज में देरी होने की वजह से 2 फरवरी, 2017 को उसके पति की मौत हो गई, तब से वह पी.जी.आई. के गुरुद्वारे में ही रह रही है। तीन बच्चों की मां पूनम की मानें तो वह यहां उसके बच्चों की पढ़ाई हो रही है। वह चाहती हैं कि उसके बच्चे पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़े हो जाएं, इसलिए वह घर नहीं जाना चाहती। पूनम के 3 लड़के हैं जो तीसरी व नर्सरी में पढ़ते हैं। गुरुद्वारे में सेवा कर उसे कुछ खर्चा मिल जाता है जहां तक बच्चों की पढ़ाई का सवाल है तो वह गुरुद्वारे की ओर से सारा खर्चा किया जाता है। 

 

शादी के 2 महीने बाद ही छोड़ा पति ने  :
28 साल की गुरप्रीत कौर को उसके पति ने शादी के दो महीने बाद ही किडनी खराब होने की वजह से छोड़ दिया था। हालांकि शादी से पहले सुसराल वालों को सारी बात बता दी गई थी, इसके बावजूद गुरप्रीत को सुसराल वालों ने अलग कर दिया। पिछले 10 महीने से गुरप्रीत अपनी मां के साथ पी.जी.आई. के गुरुद्वारे में रह रही है। गुरप्रीत की मां उसे अपनी किडनी डोनेट करना चाहती है लेकिन ट्रांसप्लांट में अभी काफी वक्त लग रहा है। दवाइयों व ट्रांसप्लांट के खर्च पर गुरुद्वारा काफी मदद कर रहा है। 

 

कहां जाऊं बेटे को लेकर :
बिहार के मुंगेर जिले की रहने वाली निशा देवी अपने बेटे के साथ पिछले 8 महीनों से पी.जी.आई. के गुरुद्वारे में रह रही हैं। एक हादसे में निशा के बेटे अमरजीत की रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी। काफी इलाज कराने के बाद डाक्टरों ने उसे पी.जी.आई. रैफर कर दिया था। यहां के डाक्टरों ने भी अमरजीत को जवाब दे दिया है कि उसके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है। मां निशा की मानें तो बीमार बेटे को लेकर कहां जाऊं। डाक्टरों ने बोल दिया है कि इसकी देखभाल करो। इतने रुपए भी नहीं कि कहीं और इसका इलाज करवा सकूं। अगर पी.जी.आई. का गुरुद्वारा नहीं होता तो पता नहीं कहां होते। 

 

डेढ़ साल से इलाज की राह :
हरियाणा के कैथल का रहना वाला राजेश कुमार डेढ़ साल से अपने इलाज के लिए पी.जी.आई. में हैं पर तारीख से तारीख हर महीने डाक्टरों द्वारा उसे तारीख दी जाती है। राजेश की मानें तो बार-बार घर जाने में रुपए काफी खर्च हो जाते हैं, ऐसे में गुरुद्वारा ही उसका घर बन गया है। 27 वर्षीय राजेश मजूदरी करते वक्त अपने पैर में चोट लगा बैठा था। 

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