जीन के सहारे होगी प्रोस्टेट व ब्लैडर कैंसर की सही पहचान

Edited By ,Updated: 09 Feb, 2016 02:21 AM

by dint of the prostate and bladder cancer will recognize the right of

जीन के दम पर अब प्रोस्टेट कैंसर को सही तौर पर पहचाना जा सकेगा। पी.जी.आई. के शोध के मुताबिक यह बार था जब जब प्रोस्टेट कैंसर के पेशैंट्स में यू.सी.ए 1 जीन की मौजूदगी को खंगाला गया। पेशैंट्स में जीन के साथ आर.एन.ए. कणों (रिबोजोम पार्टिकल्स) को भी...

 चंडीगढ़, (अर्चना ): जीन के दम पर अब प्रोस्टेट कैंसर को सही तौर पर पहचाना जा सकेगा। पी.जी.आई. के शोध के मुताबिक यह बार था जब जब प्रोस्टेट कैंसर के पेशैंट्स में यू.सी.ए 1 जीन की मौजूदगी को खंगाला गया। पेशैंट्स में जीन के साथ आर.एन.ए. कणों (रिबोजोम पार्टिकल्स) को भी पहचाना गया है। शोध रिपोर्ट के मुताबिक जीन और आर.एन.ए. कणों की बढ़ी मात्रा प्रोस्टेट कैंसर को चिन्हित करती है। अनुसंधानकर्त्ता ने अनुसंधान के पहले चरण में ब्लैडर कैंसर के पेशैंट्स में भी जीन और आर.एन.ए कणों की खोज की पर ब्लैडर कैंसर पेशैंट्स में शोधकत्र्ता को सिर्फ जीन की अधिकाधिक मात्रा मिली और आर.एन.ए कण नहीं मिले। ब्लैडर कैंसर पेशैंट्स की पहचान सिर्फ जीन के दम पर हो सकती है जबकि प्रोस्टेट कैंसर पेशैंट्स में जीन के साथ आर.एन.ए. कणों को भी तलाशा जा सकता है। पहले प्रोस्टेट कैंसर पेशैंट्स में कैंसर की पहचान खून से की जाती थी। खून में मौजूद पी.एस.ए (प्रोस्टेट स्पैसिफिक एजैंट्स) और ब्लैडर कैंसर के लिए अल्ट्रासाऊंड जांच पर निर्भर रहना पड़ता था। 

यह थी अनुसंधानकर्त्ता टीम

पी.जी.आई. के यूरोलॉजी विभाग ने बायोटैक्नोलॉजी व एक्सपैरिमैंटल मैडीसन विभाग के सहयोग से ब्लैडर कैंसर की जड़ तक पहुंचने के लिए शोध किया। अनुसंधानकत्र्ता सीनियर रैजीडैंट डाक्टर नवनीत कुमार ने यह अध्ययन यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो.ए.के.मंडल, यूरोलॉजी विशेषज्ञ प्रो. रवि मोहन और बायोटैक्नोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डा. दीपक कौल के दिशा-निर्देश में किया। डा.नवनीत कुमार के शोध पत्र को हाल ही में यूरोलॉजी सोसायटी ऑफ इंडिया ने स्वीकारा और इस पत्र को हैदराबाद में आयोजित यूरोलॉजी संगोष्ठी में पेश भी किया। प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में मौजूद प्रोस्टेट ग्लैंड में पनपता है। जबकि ब्लैडर कैंसर यूरिनरी ब्लैडर सैल्स से शुरू होता है।       

ऐसे की रिसर्च

ब्लैडर व प्रोस्टेट कैंसर के पेशैंट्स में कैंसर सैल्स की सटीक पहचान के लिए पी.जी.आई. में अनुसंधान किया गया। इसके तहत पेशैंट्स के यूरिन सैंपल्स लिए गए और उनमें से यू.सी.ए. 1 जीन और रिबोजोम पार्टिकल खोजा गया। अध्ययन के दौरान बायोटैक्नोलॉजी विभाग की मदद से विशेष पी.सी.आर. टैक्नोलॉजी के दम पर मोलिकयुल खंगाले गए ताकि मर्ज तुरंत जकडऩे के बाद पेशैंट्स का इलाज किया जा सके। यही नहीं ब्लैडर व प्रोस्टेट कैंसर के पेशैंट्स के सैंपल्स के फर्क का आंकलन भी किया गया। ब्लैडर कैंसर के लिए 27 पेशैंट्स को अध्ययन में शामिल किया गया जबकि प्रोस्टेट कैंसर के लिए 10 पेशैंट्स के सैंपल्स पर शोध कार्य किया गया। ब्लैडर कैंसर के पेशैंट्स की उम्र 18 वर्ष से लेकर 65 वर्ष के बीच थी जबकि प्रोस्टेट कैंसर के पेशैंट्स की उम्र 50 वर्ष की आयु से अधिक थी। 

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