वर्षों से प्रशासन की फाइलों में दबी हैं निगम की योजनाएं

Edited By ,Updated: 20 Jan, 2017 11:41 AM

corporation plans are in the file of administration

निगम शहर के विकास के लिए योजनाएं तो बनाता है लेकिन जब उन्हें प्रशासन की अनुमति के लिए भेजा जाता है तो वे वहीं गुम हो जाती हैं।

चंडीगढ़ (राय): निगम शहर के विकास के लिए योजनाएं तो बनाता है लेकिन जब उन्हें प्रशासन की अनुमति के लिए भेजा जाता है तो वे वहीं गुम हो जाती हैं। निगम की कई ऐसी महत्वपूर्ण परियोजनाएं प्रशासन की फाइलों में गत 10 वर्षों से दबी हैं। मनीमाजरा में निगम ने वर्ष 1990-92 तक जो भूमि का अधिग्रहण किया था, उसे आज तक निगम उपयोग ही नहीं कर पाया है क्योंकि प्रशासन ने उसके लिए कोई योजना ही नहीं बनाई है। निगम की लंबित परियोजनाओं में अधिकतर आम जनता के हित की परियोजनाएं हैं। इनमें आवासीय क्षेत्रों में कम्यूनिटी पार्किंग स्थल, मृत बच्चों को दफनाने के लिए जगह, 6 भूमिगत जलाशय, स्कूल व सिविल डिस्पैंसरियां आदि पिछले लंबे समय से निगम इसलिए पूरी नहीं कर पाया है क्योंकि प्रसासन ने इनके लिए स्थान का चयन ही नहीं किया है। 

 

निगम ने आवासीय क्षेत्रों में कम्यूनिटी पार्किंग के निर्माण के लिए 1.5 करोड़ रुपए का अपने बजट में कई वर्षों से प्रावधान कर रखा है, परंतु प्रशासन से इसे कहां-कहां पार्किंग बनानी है, इस संबंध में अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है। निगम ने तो लिख कर भी दिया था कि विभिन्न सैक्टरों में खाली पड़े स्थानों को कम्युनिटी पार्किंग में बदल दिया जाए पर इसके बाद भी प्रशासन इस पर निर्णय नहीं ले रहा है। बताया जाता है कि गत 2 वर्षों से सैक्टर-34, 44 में कम्यूनिटी पार्किंग बनाए जाने का प्रस्ताव प्रशासन के चीफ आर्कीटैक्ट विभाग के पास लंबित पड़े हैं। सैक्टर-27, 34, 35, 44, 45 व 47 में भी कम्यूनिटी पार्किंग बनाए जाने की सिफारिश क्षेत्र के पार्षद कर चुके हैं, परंतु आज तक कुछ नहीं हुआ।

 

मनीमाजरा का मास्टर प्लान अधर में: इसके अतिरिक्त 2001 में मनीमाजरा का मास्टर प्लान बनाया गया। यहां पिछले 10 वर्षों से 5 एकड़ भूमि खाली पड़ी हई है। योजना के तहत इस जगह पर मनीमाजरा के पाकेट नंबर-6 में प्राइमरी स्कूल का निर्माण होना था। पाकेट नंबर-8 में स्पोटर््स कॉम्पलैक्स व अस्पताल, पाकेट नंबर-9 में कालेज, जबकि पाकेट नंबर-10 में शांति नगर, जनता नगर तथा सुभाष नगर व पिपलीवाला टाऊन में पुनर्वासित परियोजनाएं चलाई जानी थीं, परंतु यह योजना भी अभी तक प्रशासन के पास अटकी पड़ी है।

 

4 वर्षों से प्रशासन के पास सर्कस ग्राऊंड को एग्जीबिशन ग्राऊंड में तबदील किए जाने के लिए परियोजना लंबित पड़ी है। 60 लाख का प्रावधान भी किया गया था। खुली जगह के चारों ओर सुरक्षा दीवार का निर्माण होना था। यहां पार्किंग व जन सुविधाएं मुहैया करवाई जानी थीं। इस पर भी कोई निर्णय नहीं हो पाया है। वर्ष 2007 में प्रशासन पूर्व प्रशासक एस.एफ. रोड्रिग्स के निर्देशों पर शहर के मछली विक्रेताओं के लिए प्रशासन ने सैक्टर-41 में वातानुकूल फिश मार्कीट बना दी, जिसके तहत 12 बूथ बनाकर निगम को नीलामी के लिए सौंपे गए। निगम ने इसे नीलामी के लिए रखा, परंतु इसे लेने कोई भी आगे नहीं आया। अब निगम इन बूथों को किराए पर देने जा रहा है। निगम की खाली पड़ी संपत्ति की नीलामी करने में सफल नहीं हो पाया है। निगम अनुमति मांग रहा है पर प्रशासन आनाकानी कर रहा है।

 

मृत बच्चों को दफनाना सबसे बड़ी दिक्कत
इसके अतिरिक्त शहर की सबसे बड़ी समस्या है मृत बच्चों को दफनाने की। इसके लिए अभी जो स्थान है वहां से तो कुत्ते भी मृत बच्चों के शरीर निकाल लेते हैं। पिछले दिनों तांत्रिक द्वारा भी मृत बच्चों के शरीर बाहर निकाले जाने का मामला प्रकाश में आया। निगम अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2000 में प्रशासन से मृत बच्चों को दफनाने के लिए जगह मांगी थी, परंतु इस संबंध में प्रशासन की ओर से आज तक कोई कदम नहीं उठाया गया। उचित जगह के न होने के कारण नगर निगम सैक्टर-25 स्थित शमशानघाट के पीछे लगती जंगलात की भूमि को इस काम के लिए इस्तेमाल कर रहा है। चूंकि यह जंगल का क्षेत्र है, इसलिए यहां जंगली जानवर, आवारा कुत्ते बच्चों की कब्रों तक पहुंचकर इन्हें खोद डालते हैं। 

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