डायरैक्टर नहीं कर सकता डॉक्टर को चार्जशीट

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Feb, 2018 08:52 AM

doctor can not charge doctor

कैट ने पी.जी.आई. के बाओस्टैटिक विभाग के डॉक्टर प्रमोद गुप्ता को राहत देते हुए उनके खिलाफ दायर दोनों चार्जशीट रद्द कर दी।

चंडीगढ़ (अर्चना): कैट ने पी.जी.आई. के बाओस्टैटिक विभाग के डॉक्टर प्रमोद गुप्ता को राहत देते हुए उनके खिलाफ दायर दोनों चार्जशीट रद्द कर दी। जस्टिस एम.एस. सुलर की बैंच ने आदेशों में कहा कि संस्थान के डायरैक्टर के पास किसी डाक्टर को चार्जशीट करने का अधिकार नहीं है। पी.जी.आई. में नियुक्ति अधिकार गवर्निंग बॉडी के पास है इसलिए गवर्निंग बॉडी के पास ही प्रो.गुप्ता को चार्जशीट करने का अधिकार था। 

 

गवर्निंग बॉडी की बजाए डायरैक्टर द्वारा प्रो.गुप्ता को चार्जशीट करना नियमों के खिलाफ है इसलिए दोनों चार्जशीट गैर-कानूनी मानते हुए रद्द कर दी गईं। प्रो.प्रमोद गुप्ता को पी.जी.आई. के तत्कालीन ओफिशिएटिंग डायरैक्टर प्रो.सुभाष वर्मा ने बीते साल 11 फरवरी और 25 फरवरी 2017 को दो चार्जशीट जारी की थी। पहली चार्जशीट प्रो.गुप्ता को सैक्सुअल हरासमैंट के लिए सौंपी गई थी, जबकि दूसरी चार्जशीट प्रो.गुप्ता को बिहेवियर के खिलाफ दी गई थी। 

 

प्रो.गुप्ता के खिलाफ दोनों चार्जशीट बाओस्टैटिक विभाग की डाटा एंट्री ऑपरेटर महिला द्वारा सैक्सुअल हरासमैंट और अभद्र भाषा के इस्तेमाल को लेकर की गई शिकायत के आधार पर की गई थी। जिसके बाद मामले की जांच पी.जी.आई. की सैक्सुअल हरासमैंट कमेटी की अध्यक्ष प्रो.सविता को सौंपी गई थी। सैक्सुअल हरासमैंट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि प्रथम दृष्टया महिला की शिकायत साबित नहीं होती है। 

 

उसके बाद पी.जी.आई. प्रबंधन ने प्रो.गुप्ता के मामले में जांच के लिए साइटोलॉजी विभाग के हैड की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया। प्रो.राजवंशी कमेटी ने प्रो.गुप्ता को शिकायत में दोषी कहा था। प्रो.राजवंशी कमेटी की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए प्रो.गुप्ता को दो बार चार्जशीट कर दिया गया। 

 

कार्यकारी निदेशक को चार्जशीट जारी करने की इतनी जल्दी क्यों थी? 
नियम कहते हैं कि पी.जी.आई. डायरैक्टर जब अप्वाइंटिग अथॉरिटी नहीं है तो वह चार्जशीट जारी नहीं कर सकता है, लेकिन प्रो.गुप्ता को तो स्थायी डायरैक्टर ने भी चार्जशीट जारी नहीं की थी। कार्यकारी निदेशक डा. सुभाष को चार्जशीट जारी करने की इतनी जल्दी क्यों थी? 

 

नियमित डायरैक्टर की नियुक्ति का इंतजार भी नहीं किया गया। यह सब चीजें सोचने पर मजबूर करती हैं कि प्रो.गुप्ता की प्रोमोशन रोकने के लिए यह सब किया गया। अब उन्हें एडीशनल प्रोफैसर बनना था वह भी रह गया और समय पर उन्हें प्रोमोशन मिली होती तो आज वह प्रोफैसर बन चुके होते। 

 

प्रोमोशन का समय नजदीक आते ही प्रो. गुप्ता क्यों कर दिए जाते हैं चार्जशीट? 
पी.जी.आई. की वरिष्ठ फैकल्टी के मुताबिक पी.जी.आई. में डाक्टर्स का एक गुट प्रो.गुप्ता के खिलाफ है। इस कारण जब भी प्रोमोशन का समय होता है प्रो.गुप्ता को किसी न किसी कारण चार्जशीट कर दिया जाता है और प्रोमोशन रूक जाती है। इससे पहले नेपाल टूर को लेकर भी प्रो.प्रमोद गुप्ता को चार्जशीट कर दिया था, जबकि बाद में खुद पी.जी.आई. ने माना था कि उनके खिलाफ नेपाल टूर को लेकर धांधली साबित नहीं होती है इसलिए चार्जशीट रद्द हो गई थी। 

 

प्रो. गुप्ता को तब भी कैट का दरवाजा खटखटाना पड़ा था और कैट के आदेशों के बाद ही उन्हें प्रोमोशन मिली थी। फैकल्टी का कहना है कि जब सैक्सुअल हरासमैंट कमेटी की जांच में हरासमैंट साबित नहीं हो सकी थी तब ही केस बंद कर दिया जाना चाहिए था, परंतु चूंकि रिपोर्ट पी.जी.आई. प्रबंधन को पसंद नहीं थी इसलिए फिर जांच कमेटी बना दी गई। उन्होंने कहा कि महिला ने जब शिकायत की है तब वह पी.जी.आई. ही नहीं आती थी। महिला अक्सर छुट्टी पर रहती थी ऐसे उत्पीडऩ कैसे संभव था। 

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