मनमर्जी के MRP बैच छपवा कर चल रहा है मरीजों को ठगने का खेल

Edited By ,Updated: 06 Jul, 2016 09:46 AM

fake mrp price on medicine

हमारे यहां जैनेरिक का मतलब सिर्फ इतना है कि उस पर ब्रांड का नाम नहीं लिखा गया हो लेकिन इसका भी तोड़ निकाल लिया है। अभी तक डॉकटरोंपर तोहमतें लगती आईं हैं कि वे ब्रांडेड दवाएं लिखकर खुद की या फार्मा कंपनियों की जेब हरी कर रहे हैं लेकिन सच यह है कि...

चंडीगढ़, (रविपाल): हमारे यहां जैनेरिक का मतलब सिर्फ इतना है कि उस पर ब्रांड का नाम नहीं लिखा गया हो लेकिन इसका भी तोड़ निकाल लिया है। अभी तक डॉकटरों पर तोहमतें लगती आईं हैं कि वे ब्रांडेड दवाएं लिखकर खुद की या फार्मा कंपनियों की जेब हरी कर रहे हैं लेकिन सच यह है कि कैमिस्ट भी इस गेम में उतने ही डूबे हुए हैं, जितना कि फार्मा कंपनियां या डाक्टर। 

 

ऐसी कई रोजाना की दवाएं हैं, जिस पर कैमिस्ट लोकल फार्मा कंपनियों से हाई एम.आर.पी. के बैच छपवाते हैं यानी कुछ संख्या में हाई एम.आर.पी. पर दवाओं को प्रिंट करवाते हैं और तथाकथित 15 से 20 फीसदी छूट का खेल वहीं दम तोड़ देता है।

 

दवा खरीदने वाले को लगता है उसकी जेब पर कम बोझ पड़ा लेकिन जेब बोझिल नहीं बल्कि  ठगी जा चुकी होती है। दवा खरीदने वाला जब कैमिस्ट के पास प्रिस्क्रिप्शन लेकर जाता है तो लिखी पांच दवाओं में एक या दो दवा वो बदल के देता है। 

 

कैमिस्ट शॉप संचालक का तर्क होता है कि यह दवा मौजूद नहीं है इसका स्बस्टियूट है मिल सकता है, ये वो दवाई है जो हाई एम.आर.पी. छपाई गई होती हैं और जिस पर पंद्रह से 20 फीसदी की छूट को वहां से वापस कमा लिया जाता है।

 

हाई एम.आर.पी. बैच प्रिंट करने की डिमांड: शहर में मौजूद बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल भी इस गेम में शामिल है, मरीज को ट्रीटमैंट के नाम पर पैकेज मढ़ा जाता है, उसमें जो इंजैक्शन बाहर 200 रुपए का मिलता है वो इन अस्पतालों में नए हाई एम.आर.पी. बैच के अनुसार 600 या 700 रुपए का बेचा जाता है।

 

कई कॉर्पोरेट अस्पताल तो अस्पताल से बाहर की दवा खरीदने की अनुमति तक नहीं देते। ऐसे में मरीज के पास विकल्प ही नहीं बचता। पी.यू. के यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसिज के चेयरमैन डॉ. भूपिंद्र सिंह भूप के मुताबिक मार्कीट में जो जैनेरिक व ब्रांडेड दवाओं की बिक्री का मामला है, उसके मानक देखने की जरूरत है। 

 

सीधी बात यह है कि इस पर एथिकल प्रैक्टिस कौन कर रहा है। यह एक विसियस सर्कल है, जिसका तोड़ निकाल कर हर कोई कमाने की होड़ में शुमार हो चुका है। पंजाब की जोनल लाइसैंसिंग अथॉरिटी नेहा शौरी के मुताबिक ज्यादातर दवाओं की कीमत ड्रग प्राइसिंग कंट्रोल अथॉरिटी द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं, इसकी लिस्ट भी सरकारी वैबसाइट पर उपलब्ध है। 

 

हालांकि अभी तक हाई एम.आर.पी. बैच प्रिंट का मामला उनके संज्ञान में नहीं आया है। कुछ ऐसा ही कहना चंडीगढ़ ड्रग कंट्रोल ऑफिसर जसबीर सिंह का भी है। उनके मुताबिक अभी तक उनके संज्ञान में ऐसा मामला नहीं आया है। फिर भी जल्द छापेमारी की जाएगी। 

 

विशेषज्ञों मानतें हैं, होता है खेल: फार्माकोलॉजी एक्सपर्ट आर.ढिंगरा ने बताया कि कई बार कार्पोरेट अस्पतालों से हाई एम.आर.पी. बैच प्रिंट करवाने की डिमांड आती है, और कई बार फार्मेसी की तरफ से भी रोजाना दवाओं को हाई एम.आर.पी. पर प्रिंट करने की डिमांड होती है। 

 

ये हर फार्मास्यूटिकल कंपनी के लिए एक रोजाना की बात है, क्योंकि ड्रग कंट्रोल प्राइसिंग अथॉरिटी कुछ ही दवाओं के प्राइस को कंट्रोल कर रहा है, जिसमें कई लाइफ सेविंग दवाएं नहीं है। ऐसे में कौन कितने में हाई एम.आर.पी. पर दवा बेच रहा है, इसे कोई चैक नहीं कर सकता। 

 

फार्माकोलॉजी एक्सपर्ट ए.भल्ला ने बताया कि कैमिस्ट को पता है उसकी कौन सी दवा सबसे ज्यादा बिकने वाली है जैसे कि मल्टी विटामिन, एंटी बायोटिक्स, आर्थो मसल रिलेक्सैंट, गैस्ट्रो की दवाओं के स्बस्टियूट को अलग बैच नंबर पर हाई एम.आर.पी. के साथ प्रिंट करा दिया जाता है। 

 

अब चाहे डॉक्टर जैनेरिक लिखे या ब्रांडेड कैमिस्ट अपना मार्जन निकाल लेंगे। जैनेरिक दवा लिखने का यह जरूर फायदा हुआ है कि जो कमीशन डॉक्टर को ब्रांडेड दवा लिखने पर मिलता है वो नहीं मिलेगा लेकिन इससे मरीज को कोई खास फायदा नहीं पहुंचा है, क्योंकि सरकार के पास इसे कंट्रोल करने को लेकर कोई कानून ही नहीं है।  

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