GMCH-32 बना जैनेटिक सैंटर स्थापित करने वाला देश का पहला अस्पताल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Mar, 2018 10:04 AM

genetic center

जी.एम.सी.एच.-32 देश में पहला ऐसा अस्पताल बन गया है जहां स्थापित जैनेटिक सैंटर गर्भवती महिलाओं को एंटीनटाल स्क्रीनिंग जैसी सुविधाएं दे रहा है।

चंडीगढ़(पाल) : जी.एम.सी.एच.-32 देश में पहला ऐसा अस्पताल बन गया है जहां स्थापित जैनेटिक सैंटर गर्भवती महिलाओं को एंटीनटाल स्क्रीनिंग जैसी सुविधाएं दे रहा है। स्क्रीनिंग से कई केसों में पहले ही पता लगाया जा सकता है कि बच्चा डाऊन सिंड्रोम (डी.एस.) से ग्रस्त है कि नहीं। 

 

जी.एम.सी.एच.-32 के डायरैक्टर प्रो. बी.एस.चवन ने बताया कि गर्भावस्था के 11-13 सप्ताह के  दौरान जी.एम.सी.एच.-32 में डाऊन सिंड्रोम के लिए प्रीनेटल स्क्रीनिंग उपलब्ध है। देश के अन्य केंद्रों में केवल उच्च जोखिम वाली मां की स्क्रीनिंग होती है, हालांकि बड़ी संख्या में माताओं ने डी.एस. के साथ एक बच्चे को जन्म दिया हो, हो सकता है कि वे अधिक जोखिम वाले नहीं हो सकें और ऐसे बड़े स्तर पर स्क्रीनिंग पर जोर दिया जा रहा है। 

 

चूंकि मां के गर्भधारण के अंत में इस सिंड्रोम की पहचान और इसके ना होने के सभी मामलों की पहचान नहीं की जा सकती है और ऐसे में ये संभव नहीं है कि डीएस के सभी मामलों को रोका जा सकता है। इसलिए गर्वनमैंट रीहैबलिएटेशन इंस्टीच्यूट फॉर इंटलैक्चुअल डिसेबिलिटीज (जी.आर.आई.आई.डी.) ने जल्द इंटरवैंशन और प्रशिक्षण सुविधा शुरू की है।

 

1000 नवजातों में से 1 को होता है डाऊन सिंड्रोम :
डाऊन सिंड्रोम आम क्रोमोजोमल असमान्यता है जो बौद्धिक विकलांगता से जुड़ी है। एक अनुमान के अनुसार पूरे विश्व में 1000 नवजातों में  से एक को यह बीमार होती है। अधिकांश डी.एस. बच्चों में जन्मजात विकार होते हैं और वे कई तरह के संक्रमण का आसान से शिकार बनते हैं। 

 

ऐसे में कई बार समय से पहले ही उनकी मृत्यु भी हो जाती है। तकनीक में उन्नति के साथ, मां के रक्त में जैव रासायनिक मार्कर्स के आकलन के जरिए 90 प्रतिशत से अधिक गर्भवती माताओं में गर्भावस्था के दौरान डी.एस. का पता लगाना संभव है, इस प्रकार रोकथाम की व्यापक संभावना लगातार विस्तार प्राप्त कर रही है। 

 

स्कूलों में हों स्पैशल टीचर्स नियुक्त :
डॉ. चवन ने बताया कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्देश जारी किए हैं कि सभी स्कूलों में विशेष शिक्षक नियुक्त किए जाएं। चंडीगढ़ के सभी स्कूलों में विशेष शिक्षकों की नियुक्ति भी होनी चाहिए। आसपास के स्कूलों को भी उसी क्षेत्रों में रहने वाले ऐसे बच्चों को प्रवेश में प्राथमिकता देनी चाहिए जिससे बच्चे आसानी से स्कूल पहुंच सकें और स्कूल में पढ़ाई कर सकें। इन बच्चों के लिए  रोजगार के अवसरों की कमी होती है। 

 

इसी के मद्देनजर पहली बार राइट्स ऑफ पर्संस विद डिसेबिलिटी एक्ट-2016 के प्रावधानों के तहत ऐसे लोगों को 1 प्रतिशत आरक्षण दिया है। हालांकि, माता-पिता को लगता है कि ऐसे प्रावधान से उनके सीमित शैक्षणिक योग्यता के कारण और बच्चों के लिए रोजगार के अवसरों की कमी के कारण लाभ नहीं हो सकता है और ग्रुप डी वर्ग में नौकरियों की भी कमी है। 
 

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