बुजुर्ग माता-पिता पर औलाद के अत्याचार मामले में कोर्ट नहीं कर सकता आंख बंद : हाईकोर्ट

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Oct, 2017 11:41 AM

high court

जिस मांग ने अपने बेटे को अपना पेट काटकर काबिल बनाया कि वो समाज में सम्मान के साथ जी सके। वही बेटा मां-बाप को जीने नहीं दे रहा है।

चंडीगढ़(धरणी) : जिस मांग ने अपने बेटे को अपना पेट काटकर काबिल बनाया कि वो समाज में सम्मान के साथ जी सके। वही बेटा मां-बाप को जीने नहीं दे रहा है। बेटा बुजुर्ग माता-पिता की जिंदगी को नरक बनाने पर उतारू है। ऐसे में हाईकोर्ट आंख बंद नहीं कर सकता। ऐसी औलाद किसी भी तरह की रहम की हकदार नही हैं। शुक्रवार को हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी बेटा-बहु की ओर से चंडीगढ़ के डी.सी. के आदेश चुनौती देने वाली याचिका पर की। 

 

हाईकोर्ट ने डी.सी. के आदेश को सही ठहराते हुआ कहा कि अगर औलाद मां-बाप की सेवा नहीं करती तो डी.सी. को इस तरह के आदेश जारी करने का अधिकार हैं। हाईकोर्ट ने बेटा-बहू को फटकार लगाते हुए कहा कि क्या आपको शर्म आ रही कि जिस मां ने आपको योग्य बनाया, आप उनका जीवन नर्क बनाने पर लगे हुए हो। बैंच ने कहा कि 72 साल की विधवा अपनी जिंदगी के अंतिम पड़ावा पर है। 

 

पुत्र का यह है आरोप :
विधवा महिला के बेटा-बहू व उसके तीन नाबालिग बच्चों की ओर से डी.सी. के आदेशों को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा था कि 1 जून 2017 को डी.सी. चंडीगढ़ ने उनकी मां की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें मकान खाली करने के आदेश दिए थे। 

 

याचिकाकर्ता ने कहा कि डी.सी. को मैंटेनेंस एंड वेल्फेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के तहत उनकी मां की अपील सुनने का अधिकार नहीं था। इस अपील को केवल ट्रिब्यूनल ही सुन सकता है। ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील का भी प्रावधान होता है। लेकिन यहां डी.सी. ने यह कार्य किया है। 

 

याचिकाकर्ता ने कहा कि उनके पिता की मौत 2005 में हो गई थी और उससे पहले याची दुबई में था। जिस प्रॉपर्टी से उन्हें निकाला गया है उसके निर्माण के लिए याची ने दुबई से पैसा भेजा था। हाईकोर्ट ने वादी और प्रतिवादी पक्ष को सुनने के बाद याचिकाकर्ता की यह दलील खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य को यह शक्ति होती है कि वह इन मामलों की सुनवाई के लिए डी.सी. को अधिकृत करें।

 

यह दिए थे डी.सी. ने आदेश :
72 वर्षीय सीनियर सिटीजन विधवा महिला ने मैंटेनेंस एंड वेल्फेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के तहत अर्जी दायर कर आरोप लगाया था कि उसका पुत्र उस पर अत्याचार करता है और सेवा नहीं करता। इसलिए उसको सैक्टर-45 में जो मकान है वही उससे खाली करवाया जाए। डी.सी. ने 1 जून को आदेश जारी करते हुए उसके पुत्र अशोक कुमार को पंद्रह दिन के भीतर मकान खाली करने का आदेश जारी किया। विनोद कुमार ने हाईकोर्ट में अर्जी दायर कर कहा था कि डी.सी. के पास इस तरह को आदेश जारी करने का कोई अधिकार नही हैं।

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