पत्नी का दर्द, पति की मौत का कारण HIV नहीं लोगों की बेरुखी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Jun, 2017 02:11 PM

hiv aids

जिस वक्त जरुरत थी कि लोग एच.आई.वी. को जानते समझते उसी वक्त हम जैसे लोगों को इतना डराया गया कि मनो हम बीमार नहीं हैं बल्कि किसी दूसरे ग्रह से आए प्राणी हैं। समाज का यही दोगलापन यही नफरत मेरे पति की कातिल है।

चंडीगढ़ : जिस वक्त जरुरत थी कि लोग एच.आई.वी. को जानते समझते उसी वक्त हम जैसे लोगों को इतना डराया गया कि मनो हम बीमार नहीं हैं बल्कि किसी दूसरे ग्रह से आए प्राणी हैं। समाज का यही दोगलापन यही नफरत मेरे पति की कातिल है। ये कहना है चंडीगढ़ नैटवर्क ऑफ पीपल लिविंग विद एच.आई.वी  की प्रैजीडैंट पूजा ठाकुर का। 

 

पूजा खुद भी एच.आई.वी  पॉजीटिव हैं लेकिन आज अपने जैसे कई लोगों की उम्मीद का सहारा बनी हुई हैं। महज 35 वर्षीय पूजा तीन बेटों की मां हैं जिन्हे उन्होंने खुद अपने दम पर पाला है। वह मानती है कि एच.आई.वी. कोई बीमारी नहीं बल्कि एक वायरल है जिसे नियंत्रित किया जा सकता है । 
पूजा पिछले 12 सालों से अपने तीन बेटों की सिंगल पेरैंट हैं, हर तरह की तकलीफों के बावजूद उन्होंने कभी न तो खुद हार मानी ना ही अपने बच्चों को हार मानने दी आज उनका बड़ा बेटा 17 वर्ष का हो चूका है और दशवीं में पढ़ रहा है  वहीं दोनों छोटे बेटे सातवीं और आठवीं क्लास में है। 

 

बड़ी बहन ने की लव मैरिज भुगता सबने
मूल रूप से हिमाचल की रहने वाली पूजा की शादी महज 14 वर्ष की आयु में हो गई थी , उन्होंने बताया कि उनकी बड़ी बहन ने लव मैरिज कर ली थी जिसके बाद उनके पिता ने बाकी सभी बहनों की शादी जल्द से जल्द जहां मौका मिला कर दी बिना ये सोचे की इस जल्द बजी का असर इनकी जिंदगी पर क्या पड़ेगा। 

 

लगातार जिंदगी के तमाचों को सहा है
लेकिन यहां पर पूजा की जिंदगी में मुश्किलों का दौर खत्म  शुरू हुआ था , 14 वर्ष की उम्र में शादी के बाद महज 17 वर्ष की उम्र में वे पहली बार मां बनी इसके बाद चंडीगढ़ ट्रांसपोर्ट यूनियन में काम करने वाले उनके पति उन्हें अपने साथ 1999 में चंडीगढ़ ले आए। यहां आने के बाद पूजा ने दो और बेटों को जन्म दिया लेकिन इसी दौरान 2005 में उनके पति का देहांत हो गया। 

 

महज 3000 की सैलरी से शुरू किया काम
पति के देहांत के बाद जब पूजा वापस पाने ससुराल पहुंची तो एक झटके में उन्हें अपने ही घर से एच.आई.वी.  पॉजीटिव होने की वजह से बदचलन का दाग लगा के तीनों बच्चों के साथ ही निकाल दिया गया। इसके बाद उनके मायके में भी उन्हें सहारा नहीं मिला इसी दौरान नवंबर 2005 में उन्हें चंडीगढ़ में एच.आई.वी  पॉजिटिव लोगों के बनाई जाने वाली कमेटी के बारे में पता चला और यहीं पर फील्ड में काम करने के लिए उन्हें 3000 प्रति माह सैलरी पर रखा गया। पूजा के मुताबिक ये तनख्वा कम जरूर थी लेकिन इज्जत की कमाई थी इसलिए बहुत थी। 

 

दोगलेपन ने मेरे पति की जान ली
बकौल पूजा जब मेरे पति को पता चला की वे एच.आई.वी पॉजीटिव हैं तब उनके ब्लड में वायरस काऊंट सिर्फ 250 था अगर उन्हें सही केयर और इलाज मिला होता तो वे आज हमारे साथ होते। उस वक्त पी.जी.आई में एच.आई.वी  पॉजीटिव मरीजों के साथ इतना दुव्र्यवहार हुआ करता था कि उन्हें खुद से घिन आने लगे। डॉक्टरों के इसी रवैये के कारण मेरे पति ने दवाई खाना ही छोड़ दिया था और वे हमें छोड़ एक चले गए लेकिन मैं नहीं चाहती कि किसी अन्य के साथ भी वैसा हो यही वजह है कि वह तमाम अड़चनों से जूझती हुई एच.आई.वी. ग्रस्त लोगों का मार्गदर्शन कर रही है ।

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