पिंजौर बाईपास की खुदाई ने सुखोमाजरी योजना को पहुँचाया तबाही की कगार पर

Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Dec, 2017 08:41 AM

pinjore bypass

सुखना झील को मैदान बनने से बचाने वाली सुखोमाजरी योजना खुद तबाही की कगार पर पहुंच गई है। पिंजौर बाईपास पर लगातार खुदाई ने देश के सबसे सफल सुखोमाजरी वाटरशेड मैनेजमैंट प्रोजैक्ट की नींव को हिला दिया है।

चंडीगढ़(अश्वनी कुमार/विजय गौड़) : सुखना झील को मैदान बनने से बचाने वाली सुखोमाजरी योजना खुद तबाही की कगार पर पहुंच गई है। पिंजौर बाईपास पर लगातार खुदाई ने देश के सबसे सफल सुखोमाजरी वाटरशेड मैनेजमैंट प्रोजैक्ट की नींव को हिला दिया है। निर्माण का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब सुखोमाजरी प्रोजैक्ट का जिक्र इतिहास के पन्नों में ही पढऩे को मिलेगा।

 

दरअसल, बद्दी-नालागढ़ के लिए प्रस्तावित पिंजौर बाईपास सुखोमाजरी गांव के ऊपरी हिस्से वाले पहाड़ी क्षेत्र से गुजरेगा। मई, 2017 में केंद्रीय परिहवन मंत्री नितिन गड़करी की ओर से बाईपास की नींव रखने के बाद पी.डब्ल्यू.डी. डिपार्टमैंट (हरियाणा) ने उक्त पहाड़ी हिस्सों को समतल करना शुरू कर दिया। यह वही पहाड़ी क्षेत्र है, जहां वर्ष 1970-75 के दौरान बारिश के दौरान मिट्टी का कटाव सीधा सुखना झील में पहुंचता था। इस गाद की वजह से माना जा रहा था कि सुखना झील जल्द मैदानी इलाके में तबदील हो जाएगी। उस समय केंद्र सरकार ने सैंट्रल सॉयल एंड वाटर कंजर्वेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट को मिट्टी का कटाव रोकने की जिम्मेदारी सौंपी।

 

वर्ष 1976 के दौरान सुखोमाजरी वाटरशैड मैनेजमैंट प्रोजैक्ट अस्तित्व में आया। इसके तहत सुखना झील के कैचमैंट एरिया में मिट्टी के कटाव को रोकने का अभियान चलाया गया जिससे गाद आनी कम हुई और अब सुखना झील बारिश के पानी से लबालब हो रही है। इंडियन फॉरैस्ट सर्विस के नए चयनित अधिकारियों को प्रोजैक्ट का अध्ययन करने के लिए भेजा जाता है। कई राज्यों में प्रोजैक्ट को फॉरैस्ट ट्रेनिंग में भी शामिल किया गया है।

 

खैर वृक्ष के घने जंगल :
गांववालों को पहाडिय़ों का रखवाला बनाने के साथ रिसर्च टीम ने पहाडिय़ों पर पौधरोपण मुहिम चलाई। यहां खैर, शीशम के पौधे लगाए गए। बेहया, रामबांस जैसे कठिन परिस्थितियों में लगने वाले पौधे लगाए। मिट्टी की कटान रोकने के लिए भाबर घास लगाई। इन कोशिशों ने पहाड़ी क्षेत्रों को हरा-भरा बना दिया। हाल ही में एक अध्ययन के मुताबिक मौजूदा समय में हरियाणा-पंजाब के पहाड़ी इलाकों की तुलना सुखना कैचमैंट एरिया के पहाड़ी इलाकों में सबसे ज्यादा खैर के पेड़ विकसित हो रहे हैं।

 

प्रोजैक्ट की सफलता ने बनाया मॉडल :
इसकी सफलता ने नैशनल वाटरशैड मैनेजमैंट प्रोग्राम का मॉडल बना दिया। वर्ल्ड बैंक की सहायता से चालू इंटरग्रेटिड वाटरशैड मैनेजमैंट प्रोग्राम को भी इसकी तर्ज पर चलाने का आगाज हुआ। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल व जम्मू-कश्मीर में कई प्रोग्राम आधार बना कर अमल में लाए गए। सैंट्रल सॉयल एंड वाटर कंजर्वेशन रिसर्च एंड ट्रैनिंग इंस्टीच्यूट के अफसरों की मानें तो प्रोजैक्ट ने देश के वाटरशैड प्रोग्राम को नई दिशा दी। अवधारणा को मजबूत किया कि सामाजिक भागेदारी से वाटरशैड मैनेजमैंट को सफल बनाया जा सकता है।

 

20 साल लगे सुखोमाजरी प्रोजैक्ट को सफल बनाने में :
सुखोमाजरी वाटरशैड प्रोजैक्ट को सफल बनाने में करीब 20 साल लग गए। वर्ष 1976 से 1985 तक सुखोमाजरी गांव से सटे पहाड़ी क्षेत्र में एक के बाद एक चार बांध बनाने की योजना बनाई गई। सैंट्रल सॉयल एंड वाटर कंजर्वेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट की टीम ने मौका-मुआयना के बाद बांध के निर्माण का आगाज किया। 

 

टीम ने सर्वे में पाया कि पहाड़ी के निचले क्षेत्र में सुखोमाजरी व आसपास के कुछ गांव सुनियोजित सिंचाई व्यवस्था न होने के कारण पूरी तरह पहाड़ी क्षेत्रों पर निर्भर हैं। सब बारिश पर निर्भर था। पूरे साल में एक फसल मिल जाए तो गनीमत थी। इसलिए भेड़-बकरियां पाल रखी थीं। 

 

चारे का दारोमदार पहाडिय़ों पर था। गांववासी दूध लेने के बाद पशुओं को जंगल (पहाड़ी) में छोड़ देते थे। पूरा दिन चरने के बाद शाम को वापस लाते थे। रोजमर्रा की जरूरत के लिए लकडिय़ां भी जंगलों से ही लाई जाती थीं। इसलिए कई पहाडिय़ों पर हरियाली और घास गायब हो चुकी थी। बारिश के दौरान पहाड़ों से मिट्टी कटने लगती थी। बरसाती नालों के जरिए सुखना तक पहुंचती थी। 

 

टीम ने पाया कि सुखना में आने वाली गाद का 66 फीसदी हिस्सा सुखोमाजरी के पहाड़ी क्षेत्रों से आता है। इसलिए समस्या के निपटारे की पहल की। टीम ने लोगों से बात कर बांध निर्माण का आगाज किया ताकि पहाड़ी इलाके में बांध से पानी की सप्लाई हो सके व गांववासी खेतों में ही पशुओं के लिए चारा पैदा कर सकें।

 

हरियाणा सरकार के डिवैल्पमैंट प्लान में बदलाव से मंडराया संकट :
सुखोमाजरी वाटरशैड मैनेजमैंट प्रोजैक्ट पर संकट की एक वजह हरियाणा सरकार का डिवैल्पमैंट प्लान में बदलाव है। 3 साल पहले हरियाणा ने पिंजौर-कालका अर्बन काम्पलैक्स-2031 का रिवाइज्ड डिवैल्पमैंट प्लान रिलीज किया तो बद्दी-नालागढ़ पिंजौर बाईपास के लिए प्रस्तावित 100 मीटर चौड़ी सड़क (एम-3) को सुखोमाजरी के ऊपर पहाड़ी क्षेत्र तक विस्तार दे दिया।

 

इससे पहले पिंजौर-कालका अर्बन काम्पलैक्स-2025 के प्लान में चौड़ी सड़क केवल सुखोमाजरी और धमाला गांव के बीच तक ही सीमित थी, जो आगे पिंजौर-स्वारघाट नैशनल हाईवे-21ए (एम-2) के साथ जुडऩी थी। धमाला से आगे 60 मीटर चौड़ी सड़क (एम-4) का प्रस्ताव था लेकिन 2031 के प्लान में चौड़ी सड़क (एम-3) को विस्तार देते हुए सुखोमाजरी के पहाड़ी क्षेत्रों से मोड़कर एन.एच.-21ए से कनैक्ट करने का प्रावधान कर दिया गया। इसे सुखोमाजरी के पहाड़ी इलाके से आगे 60 मीटर चौड़ी सड़क (एम-4) प्रस्तावित कर दी गई।

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