हॉकी के लीजैंड बलबीर सिंह सीनियर ने सांझा की बचपन की यादें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Mar, 2018 04:52 PM

sports literature festival

कई बार बड़ों का लिया गया फैसला जिंदगी में नया परिवर्तन लाता है। यह बात हॉकी के लीजैंड बलबीर सिंह सीनियर ने स्पोर्ट्स लिट्रेचर फैस्टीवल के दौरान बचपन की यादों को सांझा किया।

चंडीगढ़(लल्लन) : कई बार बड़ों का लिया गया फैसला जिंदगी में नया परिवर्तन लाता है। यह बात हॉकी के लीजैंड बलबीर सिंह सीनियर ने स्पोर्ट्स लिट्रेचर फैस्टीवल के दौरान बचपन की यादों को सांझा किया। उन्होंने अपने जीवन में आए परिवर्तन को बताते हुए कहा कि जब वह मोगा में पढ़ते थे, तो उस समय हॉकी खेलने इतने व्यस्त थे कि क्लास ही नहीं लगाते थे, जिस कारण 10वीं में फेल हो गए। 

 

इसके बाद पिता ने पढ़ाई के लिए मोगा से लाहौर भेज दिया और किस्मत ने वहां पर साथ दिया। इसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। लाहौर में हॉकी के कोच ने मेरी प्रतिभा को समझा। हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह सीनियर तीन बार ओलिम्पिक स्वर्ण पदक विजेता हैं, जिन्होंने लंदन, हेलसिंकी और मेलबॉर्न ओलिम्पिक में भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

 

माता-पिता और कोच के आदेश माने : 
इस मौके पर 95 साल के बलबीर सिंह सीनियर ने अपने बचपन से कुछ मनोरंजक कहानियों का वर्णन करते हुए बताया कि हॉकी के खेल के लिए उनका प्यार कैसे शुरू हुआ। उनके किस्सों से उपजे हास्य ने भी दर्शकों ने मंत्रमुग्ध किया। बलबीर सिंह सीनियर ने कहा कि वे माता-पिता का अहसान कभी नहीं भूल सकते, जिन्होंने उन पर भरोसा किया और खेल के प्रति अपने प्यार को और बढ़ाने का मौका दिया। उन्होंने ने कहा कि माता-पिता तथा कोच के आदेशों का सदा पालन करना चाहिए।

 

तिरंगा लहराना जिंदगी का सबसे बड़ा गर्व : 
बलबीर सिंह सीनियर ने कहा कि मुझे अभी भी याद है, जब 1948 के ओलिम्पिक में भारतीय ध्वज फहराया गया था। तब हमने भारत का पहला ओलिम्पिक स्वर्ण जीतने के लिए ब्रिटेन को 4-0 से हराया था। वह देशभक्ति का भाव, जिसे मैं महसूस करता हूं, दुनिया में किसी भी अन्य भावना से परे है। 

 

उन्होंने कहा कि मुझे यकीन है कि वर्तमान पीढ़ी भी खेल के क्षेत्र में अपने सपने को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित होगी। इस मौके पर मौजूद कार्यक्रम के सह-संस्थापक विवेक अत्रे और पंजाब के मुख्य सचिव करन अवतार सिंह ने भी अपने विचार रखे। इस मौके पर धावक फौजा सिंह, स्पोर्ट्स लेखक और कई महान खिलाड़ी शामिल हुए। 

 

मैं दौड़ सकता हूं, सो सकता हूं, लेकिन मैं कभी भी ठहर नहीं सकता हूं : फौजा सिंह
लिट्रेचर फैस्ट के दौरान ब्रिटिश सिख सेनटेनेरियन मैराथॉन फौजा सिंह और उनकी जीवनी लिखने वाले स्पोर्ट्स लेखक खुशवंत सिंह और पवन खैतान के बीच काफी दिलचस्प बातचीत हुई। डिबेट में स्पोर्ट्स लेखक खुशवंत सिंह ने फौजा सिंह से उनके फिट रहने की कला के बारे में जाना। 

 

फौजा सिंह ने बातचीत के दौरान बताया कि अभी वह 106 वर्ष के हैं। वह हर रोज अभी भी घी में डूबी पिन्नीयों को कस कर खाते हैं और उन्हें वह काफी अधिक पसंद हैं। मैं दौड़ सकता हूं, सो सकता हूं, लेकिन मैं कभी भी ठहर नहीं सकता हूं। दौडऩा मेरे जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है। मैं अपने अंतिम सांस तक एथलैटिक्स में योगदान करता रहूंगा। 

 

पंजाब में जरनैल सिंह जैसा कोई भी विश्व प्रसिद्ध फुटबॉल खिलाड़ी नहीं हुआ :
फैस्ट में ‘द वल्र्ड एंड योअर फीट’ सत्र में फुटबॉल पर डिबेट हुई। डिबेट में मिनर्वा फुटबॉल क्लब के संस्थापक रंजीत बजाज और स्पोर्ट्स लेखक खुशवंत सिंह ने लेखक नोवी कपाडिय़ा के साथ बातचीत की। अर्जुन पुरस्कार विजेता खिलाड़ी जरनैल सिंह ढिल्लों को याद करते हुए ‘बेयरफुट टू बूट्स’ के लेखक नोवी कपाडिय़ा ने कहा कि पंजाब में जरनैल सिंह जैसा कोई भी विश्व प्रसिद्ध फुटबॉल खिलाड़ी नहीं हुआ।

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