Edited By ,Updated: 04 Jan, 2015 01:37 PM
शास्त्रों का अंत नहीं है, विद्याएं बहुत हैं, जीवन छोटा है, विध्न-बाधाएं अनेक हैं।
अनन्तशास्रं बहुलाश्च विद्या: अल्पश्च
कालो बहुविघनता च
यत्सारभूतं तदुपासनीयं, हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्
भावार्थ: शास्त्रों का अंत नहीं है, विद्याएं बहुत हैं, जीवन छोटा है, विध्न-बाधाएं अनेक हैं। अत: जो सार तत्व है उसे ही ग्रहण करना चाहिए जैसे हंस जल के बीच से दूध को पी लेता है।।
भाव यह है कि मानव जीवन बहुत छोटा है और इस संसार में ज्ञान अपरिमित है। पूरे जीवन में सारे ज्ञान को नहीं पाया जा सकता इसलिए ज्ञान के उस सार तत्व को ग्रहण करना चाहिए जो सत्य है।