Edited By ,Updated: 11 Jan, 2015 01:06 PM
अचानक दूर से आए थके-हारे पथिक से बिना पूछे ही जो स्वयं भोजन कर लेता है वह चाण्डाल होता है।
दूरागतं पथि श्रान्तं वृथा गृहमागतम्
अनर्चयित्वा यो भुक्तेस वै चाण्डाल उच्यते
भावार्थ: अचानक दूर से आए थके-हारे पथिक से बिना पूछे ही जो स्वयं भोजन कर लेता है वह चाण्डाल होता है।
भाव यह है कि अतिथि को भारतीय संस्कृति में देवता समान माना गया है जो व्यक्ति अतिथि से पूछे बिना अर्थात उसका आदर-सत्कार किए बिना ही भोजन कर लेता है वह किसी नीच से कम नहीं।