Edited By ,Updated: 08 Mar, 2015 10:34 AM
भाव यह है कि जिन लोगों ने न तो इस भौतिक संसार का ही उपयोग किया और न परलोक को सुधारने के लिए ईश्वरोपासना ....
न ध्यातं पदमीश्वरस्य विधिवत्संसार विच्छित्तये,
स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्धर्मोऽपि नोपार्जित:।
नारीपीनपयोधरोरुयुगलं स्वप्रेऽपि नालिंगितं,
मातु: केवलमेव यौवनवनच्छेदे कुठारा वयम्।।
भावार्थ : भाव यह है कि जिन लोगों ने न तो इस भौतिक संसार का ही उपयोग किया और न परलोक को सुधारने के लिए ईश्वरोपासना तथा धर्म का ही संग्रह किया, ऐसे लोगों को जन्म देना माता के लिए व्यर्थ ही हुआ।
सफलता तो तभी मिलती है, जब इस लोक में सुख उठाते हुए परलोक-सुधार के लिए धर्माचरण किया जाए ।