Edited By ,Updated: 02 Jul, 2015 01:27 PM
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जो व्यक्ति किसी दूसरे के गुणों के महत्व को नहीं जानता वह उसकी सदैव निंदा करता है। जबकि पारखी ही किसी वस्तु के महत्व को समझ सकता है...
न वेत्ति यो यस्यगुणप्रकर्ष स तं सदा निन्दति नाऽत्र चित्रम्।
यथा किराती करिकुम्भजाता मुक्तां परित्यज्य बिर्भित गुंजा:।।
व्याख्या : इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जो व्यक्ति किसी दूसरे के गुणों के महत्व को नहीं जानता वह उसकी सदैव निंदा करता है। जबकि पारखी ही किसी वस्तु के महत्व को समझ सकता है। जिस तरह जंगल में रहने वाली भीलनी हाथी के मस्तक से प्राप्त होने वाले बहुमूल्य काले मोती को छोड़कर लाल रत्तियों की माला पहनती है क्योंकि वह उस मोती के महत्व को नहीं जानती। इसी प्रकार हर कोई गुणों को नहीं जान पाता। जौहरी ही रत्नों की पहचान करता है।