Edited By ,Updated: 05 Nov, 2015 04:06 PM
पिछले अंकों में पाठकों ने आचार्य चाणक्य प्रतिपादित ‘नीतिशास्त्र’ के सिद्धांतों के विषय में पढ़ा। इस अंक से हम ‘चाणक्य सूत्रों’ का धारावाहिक प्रकाशन आरंभ कर रहे हैं जिनमें
पिछले अंकों में पाठकों ने आचार्य चाणक्य प्रतिपादित ‘नीतिशास्त्र’ के सिद्धांतों के विषय में पढ़ा। इस अंक से हम ‘चाणक्य सूत्रों’ का धारावाहिक प्रकाशन आरंभ कर रहे हैं जिनमें जीवन के मूल्यवान आदर्शों, नीति, धर्म, सदाचार, व्यावहारिकता, राजा, समाज, राजनीति और कूटनीति के गूढ़ तत्वों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
सुखस्य मूलं धर्म :।
सुख का आधार धर्म है।
जो राजा धर्म में आस्था रखता है, वही देश के जन-मानस को सुख पहुंचा सकता है। सद्विचार और सद् आचरण को धर्म कहा गया है।
धर्मस्य मूलमर्थ:।
धर्म का आधार अर्थ अर्थात धन है।
जो राजा प्रजा का पालन करने के लिए धन की समुचित व्यवस्था करता है और राज्य संचालन के लिए यथोचित राज-कोष एकत्र करता है, उसकी सुरक्षा को कभी भय नहीं रहता।