Edited By ,Updated: 30 Nov, 2015 12:14 PM
जितात्मा सर्वार्थै: संयुज्येत्।
आत्मविजयी
जितात्मा सर्वार्थै: संयुज्येत्।
आत्मविजयी सभी प्रकार की सम्पत्ति एकत्र करने में समर्थ होता है।
जो राजा अपनी समस्त इंद्रियों पर विजय प्राप्त करके अपनी आत्मा पर नियंत्रण कर लेता है, उसे सभी तरह की सुख-सम्पत्ति सुलभ हो जाती हैं।