चाणक्य के देश प्रेम की अद्भुत मिसाल, आपके अंदर है ऐसा जज्बा

Edited By ,Updated: 02 Mar, 2016 12:42 PM

chanakya niti

एक बार की बात है, मगध साम्राज्य के सेनापति किसी व्यक्तिगत काम से चाणक्य से मिलने पाटलिपुत्र पहुंचे। शाम ढल चुकी थी, चाणक्य गंगा तट

एक बार की बात है, मगध साम्राज्य के सेनापति किसी व्यक्तिगत काम से चाणक्य से मिलने पाटलिपुत्र पहुंचे। शाम ढल चुकी थी, चाणक्य गंगा तट पर अपनी कुटिया में दीपक के प्रकाश में कुछ लिख रहे थे।

कुछ देर बाद जब सेनापति भीतर दाखिल हुए उनके प्रवेश करते ही चाणक्य ने सेवक को आवाज लगाई और कहा, ‘‘आप कृपया इस दीपक को ले जाइए और दूसरा दीपक जला कर रख दीजिए।’’ 

सेवक ने आज्ञा का पालन करते हुए ठीक वैसा ही किया। जब चर्चा समाप्त हो गई तब सेनापति ने उत्सुकतावश प्रश्र किया, ‘‘हे महाराज, मुझे एक बात समझ नहीं आई। मेरे आगमन पर आपने एक दीपक बुझवाकर रखवा दिया और ठीक वैसा ही दूसरा दीपक जलाकर रखने को कह दिया, जब दोनों में कोई अंतर न था तो ऐसा करने का क्या औचित्य है?’’

इस पर चाणक्य ने मुस्कुराते हुए सेनापति से कहा, ‘‘भाई पहले जब आप आए तब मैं राज्य का काम कर रहा था, उसमें राजकोष का खरीदा गया तेल था, पर जब मैंने आपसे बात की तो अपना दीपक जलाया क्योंकि आपके साथ हुई बातचीत व्यक्तिगत थी, मुझे राज्य के धन को व्यक्तिगत कार्य में खर्च करने का कोई अधिकार नहीं इसलिए मैंने ऐसा किया।’’ 

उन्होंने कहना जारी रखा, ‘‘स्वदेश से प्रेम का अर्थ है अपने देश की वस्तु को अपनी वस्तु समझकर उसकी रक्षा करना। ऐसा कोई काम मत करो जिससे देश की महानता को आघात पहुंचे। प्रत्येक देश की अपनी संस्कृति और आदर्श होते हैं, उन आदर्शों के अनुरूप काम करने से ही देश के स्वाभिमान की रक्षा होती है।’’

 

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